अंग्रेजी वाला न्यू ईयर और कॉकटेल पार्टी

अंग्रेजी वाला न्यू ईयर नजदीक आते ही दारू की याद आती है और दारू से याद आता है कि हमारे गांव-घर और समाज में ‘दारू’ की और ‘दारु पीने वाले’ ; दोनों की कभी स्याला इज्जत ही नहीं रही। बैसवारा क्षेत्र या यूँ कहे कि लगभग पूरे उत्तर भारत में दारु पीने वालों की छवि कुछ ऐसी है :-

  1. एक हाथ से नमक चाटकर , दूसरे हाथ से माधुरी, सोनपरी या ऐसे ही किसी लोकल ब्रांड की देसी दारू के पाउच को दांत से कटकर एक ही सांस में पी जाता है।
  2. दीनहीन दरुवल वह अभागा है जो बिस्तर से ज्यादा सड़क और नाली में पड़ा मिलता है।
  3. बिगड़े बेवड़े की आम छवि ऐसी है जो अपनी पत्नी के गहने और घर के लोटे -बर्तन बेचकर भी नशा करता है।
  4. सच्चा शराबी वह है जो बच्चों की स्कूल फीस और बूढ़े माता-पिता की दवाई पर अपनी ‘शाम वाली दवाई’ को प्राथमिकता देता है।
  5. पक्के पियक्कड़ को कोई सीरियसली नहीं लेता। कोई भी उसकी बात का विश्वास नहीं करता है। उसकी गवाही सच नहीं मानी जाती। पीकर कही गई बिल्कुल सच बात को भी यह कहकर नकार दिया जाता है कि वह अभी होश में नहीं है।
  6. मद्यपान करने वालों को सामान्यतः नालायक, नकारा और चरित्रहीन समझा जाता है।
  7. लड़की का पिता लड़के के चाहे अन्य सौ अवगुण बर्दाश्त कर ले। लेकिन जैसे ही उसे पता चलता है कि लड़के का ‘अंगूर की बेटी’ से रिश्ता है, फिर वह अपनी बेटी का रिश्ता ऐसे लड़के से कदापि नहीं करता है।

हमारे यहां मधुशाला जाने वालों की छवि इतनी मलिन है कि ‘अच्छे खानदान का गंगाजल’ भी उन्हें पाक साफ नहीं कर पाता है। ‘ऊंचे कद का इत्र’ और ‘गोरे रंग का गुलाबजल’ भी उनके चरित्र की बदबू दूर नहीं कर पाता है। शराबियों की सामाजिक प्रतिष्ठा इतनी पतित होती है कि कई बार ‘सरकारी नौकरी का ब्रह्मास्त्र’ भी उनके पापों की परत भेद नहीं पाता है। मैं एयर फोर्स में जाते समय शराबियों की यही छवि अपने मन मस्तिष्क में लेकर गया था। वहाँ पर मैं जिसे भी शराब पीते देखता या इसकी बात भी करते सुनता तो मेरे मन में फर्स्ट इम्प्रेशन यही आता कि यह तो ‘गिरा हुआ आदमी’ है; चारित्रिक रूप से भ्रष्ट आदमी है; इसका कतई भरोसा नहीं किया जा सकता है। लेकिन कुछ दिनों बाद ही मुझे यह एहसास हो गया कि शराब पीने वाले भी हम जैसे हाड़-मांस से बने मनुष्य होते हैं। उनमें भी आम लोगों की तरह गुण-दोष होते हैं। दोष तो मैंने पहले ही गिना दिए, गुण यह होते हैं कि वे यारों के यार होते हैं, दिलदार होते हैं, सदाबहार होते हैं। जो आर्थिक, शारीरिक सहायता करने के लिए आपका ‘टीटोटलर’ मित्र दस बार विचार करेगा, दारू पीने वाला तुरंत ही कर देगा। आपके लिए पर्स खाली कर देगा, दिसंबर की कड़क सर्दी में बाइक से आपको स्टेशन छोड़ देगा। आपके लिए लड़ जाएगा, किसी से भी भिड़ जाएगा। दारू न पीने वाला दिमाग से बोलता है जबकि दारू पीने वाला दिल से। मुझे तो अब यह मजाक भी सच लगने लगा है कि कोर्ट कचहरी में मजहबी किताबों की जगह यदि शराब पिलाकर गवाही ली जाए, तो बेहतर परिणाम प्राप्त होगा। दरअसल अधिक नशा और उसके बाद का सारा नाटक शराब से नहीं, नादानी से होता है। दोष शराब का नहीं बल्कि पीने वालों का होता है। हमारे यहां के शराबियों को पीने का सलीका ही नहीं आता। वह लोग दारू पीते हैं- ‘नशा’ करने के लिए या अपनी ‘खुन्नस’ निकालने के लिए। उनके लिए भड़ास निकालने का साधन बन गया है मद्य सेवन। जबकि यहां लोग शराब का सेवन नशा करने के लिए नहीं बल्कि आनंद के लिए , क्वालिटी टाइम स्पेंट करने के लिए करते हैं। मैंने यहां आकर समझा कि दारू पीना अनाड़ियों का कार्य नहीं है, यह समझदारों का शगल है। पीना एक कला है, हुनर है। इसके कुछ नियम हैं, कायदे हैं-

1. पहला तो यह कि कभी अकेले न पिएं। अकेले पीने का मतलब यह है कि दारू ‘आनंद’ के लिए नहीं बल्कि ‘नशे’ के लिए पी जा रही है।

2. दूसरा यह कि ‘चियर्स’ से एक साथ शुरू करें और बॉट्स अप (बॉटम अप) से एक साथ समाप्त करें। इससे कोई ज्यादा नहीं पियेगा। नाली और सड़क में गिरने की स्थिति में कोई दोस्त आ भी गया तो साथी उसे घर या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर छोड़ आएंगे।

3. तीसरा यह की 3D नियमों का कड़ाई से पालन करें। थ्री डी यानि -डाइल्यूशन, ड्यूरेशन और डाइट।

(क) डाइल्यूशन से तात्पर्य यह कि अगर दारू बहुत अच्छी क्वालिटी की नहीं है तो उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी या सोडा मिलाएं।

(ख) ड्यूरेशन से तात्पर्य यह कि कभी जल्दबाजी में दारू न पियें। सिप-सिप करके दारू पियें, खूब समय लें, बीसी (बातचीत) करें, म्यूजिक सुने, अपने बॉस औऱ उसके चमचों को गरियायें, शादीशुदा हैं तो अपनी एक्स को याद करें, कुंवारे हैं तो गर्लफ्रैंड के किस्से कहें और सुनें।

(ग) डाइट से तात्पर्य है कि पेट भर भोजन करने के बाद दारू को हाथ न लगाएं। दारु पियें चखने (सलाद, मूंगफली, काजू, चना, तीखी नमकीन) के साथ और पीने के बाद पर्याप्त और पौष्टिक भोजन करें।

4. अगर आपका चेयर पर बैठने वाला जॉब है तो शराब पीने से शरीर में जितनी एक्स्ट्रा कैलोरी इकट्ठा हुई हैं, उसको बर्न करने के लिए पर्याप्त फिजिकल एक्सरसाइज करें (जिम जाएं, दौड़ें, स्विमिंग, साइक्लिंग करें)।

5. कॉकटेल तभी करें जब दोनों की तासीर और अनुपात ठीक से पता हो। अन्यथा एकदारुव्रता बने रहें। नहीं तो जितना पियेंगे, उससे ज्यादा उलट देंगे।

6.याद रखें कि Excess of everything is bad. इसलिए कम पियें, कभी-कभी पियें। आप दारू को एन्जॉय करें, दारू आपको न एन्जॉय करने पाए। दारू से दूरी बनाएं रखें, इससे बेहतर बात हो ही नहीं सकती। लेकिन सुरा के शौकीन हैं तो उपर्युक्त नियमों का पालन करेंगें तो दारू, दवा का काम करेगी। इससे न दारू बदनाम होगी और न दारू पीने वाले।

(विनय सिंह बैस)