★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
उत्तरप्रदेश के मुख्यमन्त्री का कहना है कि उनके राज्य में सातों दिन चौबीसों घण्टे कोरोना-रोगियों के लिए उपचार की व्यवस्था है, जबकि वास्तविकता है कि ३२ करोड़ की आबादीवाले इस राज्य में लाखों की संख्या में ऐसे गाँव हैं, जहाँ ग्रामीण कोरोना से मर रहे हैं और सरकार हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हुए है। सच तो यह है कि मुख्यमन्त्री आदित्यनाथ योगी अपने ज़िलाधिकारियों से काम नहीं करवा पा रहे हैं। हो सकता है, इसी कारण से ‘न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को १८ मई, २०२१ ई० को देश के समस्त ज़िलाधिकारियों को सम्बोधित करना पड़ा हो। एक प्रधानमन्त्री यदि देश के जिलाधिकारियों को सम्बोधित करे तो यह प्रश्न करना स्वाभाविक हो जाता है– राज्यों के मुख्यमन्त्री किसलिए हैं?
आज उत्तरप्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे ‘प्राथमिक स्वास्थ्य-केन्द्र’ हैं, जिनमें ताले लगा दिये गये हैं। किसी भी गाँव में समुचित ढंग से न तो परीक्षण किये जा रहे हैं और न ही किसी भी प्रकार की जाँच-पड़ताल की जा रही है। इस प्रकार उत्तरप्रदेश के गाँवों में ‘मौत का सामान’ उपलब्ध करा दिया गया है।
ग्रामीणों पर यह आरोप लगता है कि वे परीक्षण कराने के लिए तैयार नहीं हैं तो उन ग्रामीणों का इसके पीछे एक ‘ईमानदार भय’ है। वे जानते हैं कि यदि उन्हें कोरोनारोगी ठहरा दिया गया तो किसी भी सरकारी अस्पताल में भरती कराकर उनकी एक प्रकार से ‘हत्या’ करा दी जायेगी, जो कि सच से परे नहीं है; क्योंकि गाँव के सरकारी हस्पतालों में उपचार की कोई सुविधा नहीं है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि २५ गाँवों पर एक ‘प्राथमिक स्वास्थ्य-केन्द्र’ निर्धारित किया गया है। ऐसे में, सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि गाँव में सरकारी स्वास्थ्य-सुविधा ‘नहीं’ के बराबर है। सभी ग्रामीण निजी चिकित्सालयों में जाकर उपचार कराने में असमर्थ हैं। मूल तथ्य यह है कि ग़रीब ग्रामीणों के पास उतने रुपये नहीं हैं जितने कि आज निजी चिकित्सालयवाले माँग रहे हैं। निजी चिकित्सालयों में उपचार का मतलब है कि आपसे अनावश्यक परीक्षणों और चिकित्सकों-द्वारा की गयी फ़र्ज़ी देखभाल आदिक को जोड़कर लाखों रुपये लूट लिये जायेंगे। सरकार ने तथाकथित ‘ऑन-लाइन’ के माध्यम से गाँवों में पंजीकरण कराने की व्यवस्था की है; परन्तु ९० प्रतिशत ग्रामीण ‘ऑन-लाइन’ जुड़ने की प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं, फिर उस तरह का मोबाइल सभी ग्रामीणों के पास नहीं है।
ज़िला-प्रशासन की गाँव में लाखों की संख्या में संक्रमित लोग के स्वास्थ्य के प्रति कोई चिन्ता नहीं है। यदि होती तो आज देश के सभी गाँव, विशेषत: उत्तरप्रदेश के गाँवों में नितान्त शोचनीय स्थिति नहीं होती।
सच यह है, आज उत्तरप्रदेश का गाँव ‘जयश्रीराम’ भरोसे है और वे भी अपने हाथ खड़े कर चुके हैं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १९ मई, २०२१ ईसवी।)