‘वैचारिकी’ का सांस्कृतिक आयोजन

कवि-सम्मेलन में 'कविता' अपनी ऊँचाइयों पर!

नगर की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘वैचारिकी’ की ओर से अल्लापुर के मुक्तांगन में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत एक भव्य कवि-सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें प्रतिष्ठित कवि कृष्णेश्वर डींगर ने अध्यक्षता करते हुए रचना सुनायी— झील का पानी सिमटता जा रहा है। घेर कर सीमेंट लोहा ईंट के जंगल खड़े हैं। मछलियों का वंश घटता जा रहा है। दिल्ली से पधारे कवि-साहित्यकार डॉ० ब्रज कुमार मित्तल मुख्य अतिथि के रूप में अपनी कविता सुनाई– कभी अच्छा लगे है वो कभी अच्छा नहीं लगता। वो इतना बोलता है सच कि वो सच्चा नहीं लगता।। सारस्वत अतिथि के रूप में भाषाविद् डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने सुनाया– कवि! हरे-भरे खेतों में चल। तू देख चुका शहरी जीवन, वैभव के सब नन्दन कानन। क्या देखा क्या पाया तूने, धनिकों के उर का सूनापन? विशिष्ट अतिथि की हैसियत से प्रसिद्ध गीतकार मुनेन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने सुनाया— हर साँस तुम्हारे आँचल की परछाईं, हर भोर तुम्हारी रूपराशि अरुणाई।
अना इलाहाबादी ने सुनाया– तू ही साँसें तू ही धड़कन, तू ही ईमान लगता है, तेरे बिन मैं लगूँ बुत सी ये तन बेजान लगता है। कार्यक्रम के संयोजक प्रख्यात शायर तलब जौनपुरी की ग़जल की पंक्तियाँ थीं— अनबन में टूटे हो रिश्तों को निभाना क्या? बेबात जो रूठे हों उनको है मनाना क्या? ईश्वरशरण शुक्ल ने सुनाया– वह उठाता है रौशनी, लेकिन रहता अँधेरे में है, निहारता है सजी-धजी बारात पर वह बिन कपड़े में है। डॉ० राज कुमार शर्मा ने सुनाया— एक चोट ऐसी लगती है कि पाषाण बदल जाते हैं, देखते-ही-देखते तूफ़ान बदल जाते हैं। जयन्त मिश्र की रचना थी– बेबसी में चाँद ने कुछ तो कहा था रात से, चाँदनी ख़ामोश थी तन्हा शम्मा जलती रही। डॉ० इन्दु कुमार जैन की रचना है— ज़िन्दगी श्लोक है मंत्र है पूजा है, चाहता हूँ पूजन करके जीवन गुज़र जाये। उमा सिंह की रचना थी-काश! मैं तुम्हारा मोबाइल होता।कविता उपाध्याय ने सुनाया-तितलियो! तुमने क्यों आना छोड़ दिया गुलशन में, गुलों की खु़शबू तारी अभी तो गुलशन में।
इनके अतिरिक्त सरिता मिश्र, राकेश श्रीवास्तव, रामायण प्रसाद पाठक, शिवराम गुप्त, कैलाशनाथ पाण्डेय, जितेन्द्र कुमार मिश्र, आनन्द कृष्ण द्विवेदी, महक जौनपुरी, नज़र इलाहाबादी, केशव सक्सेना, मुकुल मतवाला, के०पी० गिरि, देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ‘देवेश’, शेषधर तिवारी आदिक कवियों ने काव्यपाठ किये।
डॉ० रवि कुमार मिश्र ने संचालन किया।