सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

कृष्ण जी की जिज्ञासा

प्रश्न-:
न्याय तो सबकों चाहिए लेक़िन कोई भी जल्दी सत्यनिष्ठ बनने को तैयार नहीं हैं।
लेकिन अगर उनके साथ अन्याय होता है तो उन्हें सत्य एवं न्याय की याद अवश्य आती है।

उत्तर-:
जी!
अभी प्रायः लोगों को सत्यनिष्ठा व सत्यानुशासन की महिमा की जानकारी नही है।
धूर्तों ने बड़ी धूर्तता के चलते हजारों/लाखों सालों से सत्य की राह पर न चलने पाए कोई इसलिए यह कहकर डराया है कि
“सत्य बहुत कड़वा होता है”
जबकि
“सत्य से बढ़कर मीठा व सरल कुछ भी नही।”

बस इतनी सी बात जिसदिन हम-आपलोग अन्य लोगों को बता पाए व समझा पाए समझो वही उनका अन्तिम दिन होगा अन्याय रूपी व दासता रूपी अंधकार से मुक्ति का।

लगे रहो!
सत्यात्मक न्याय ही सभी मनुष्यों की अत्यन्तिम मंजिल है।

लोग चींखेंगे, भागेंगे, आपको-हमको पागल समझेंगे, उनमें से कुछ स्वघोषित कुशिक्षित/अल्पशिक्षित बुद्धिजीवी टाइप के लोग अंटशंट कुछ भी सलाह/मशवरा देने की व्यर्थ कुचेष्ठा भी करेंगे।
क्योंकि हज़ारों सालों से उन लोगों को असत्य/अन्याय रूपी अंधेरे में ही रहने की आदत है।

इसलिए
अचानक उनके ऊपर पड़ा सत्यात्मक न्याय प्रकाश अभी उन्हें चुभ रहा है।
वे सहन करने योग्य नही होते।

लेकिन धीरे-धीरे ही सही प्रयास जारी रखें, 1% धूर्तों व 4% मूर्खों को छोड़कर एकदिन सभी सत्यात्मक न्याय प्रकाश से निजी जीवन/पारिवारिक जीवन/सामाजिक जीवन/समष्टिक जीवन अवश्य ही प्रकाशित करने हेतु आपके साथ खड़े मिलेंगे।

प्रेम से बोलो…
“सत्यं शरणं गच्छामि।”
।।सादर।।

✍?? राम गुप्ता, स्वतन्त्र पत्रकार, नोएडा