उत्तरप्रदेश की राजनीति में ‘बग़ावत’ का झण्डा बलन्द!

'मुक्त मीडिया' का 'आज' का सम्पादकीय

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

  उत्तरप्रदेश-विधानसभा-चुनाव का समय जैसे-जैसे निकट आता दिख रहा है, वैसे-वैसे उत्तरप्रदेश के योगी-सरकार का राजनीतिक संकट उनके सिर चढ़कर बोलता नज़र आ रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अब उत्तरप्रदेश से योगी आदित्यनाथ का सिंहासन डोलता नज़र आने लगा है। आदित्यनाथ की जनविरोधी और जातिवादी राजनीति किसी से छुपी नहीं है। वे अपने दल के दुर्दान्त अपराधियों को संरक्षण दे रहे हैं और अयोग्यों और कुपात्रों को प्रश्रय भी। इनके अतिरिक्त उन्होंने 'हिन्दू-हिन्दुत्व' और 'जय श्रीराम' के नाम पर जिस तरह की अमानवीय राजनीति की है, वे सभी अब मिलकर आदित्यनाथ की सियासी ताबूत में आखिरी कील ठोंकने के लिए छप्पन इंच का सीना तान चुके हैं। योगी-सरकार जितने भी लोकलुभावन घोषणाएँ कर लें, राज्य की जनता अब 'समझदार' होने और दिखने की प्रक्रियाओं के साथ जुड़ चुकी है।

 उत्तरप्रदेश के प्रबल राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी दल 'समाजवादी पार्टी' के नेता अखिलेश यादव ने 'पुरुआ-पछुआ' का संदेश प्राप्त कर लिया है और अब उसे पढ़ने में जुट गये हैं। उत्तरप्रदेश की औसत जनता ने आदित्यनाथ को अपने हृदय से निकाल बाहर कर दिया है। इसे भी अखिलेश यादव पढ़ और समझ चुके हैं। यही कारण है कि अब वे 'सेंधमारी'-कला में दक्ष होने की दिशा में क्रियाशील हो चुके हैं। दूसरे वाक्य में हम कह सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की योगी-सरकार को उत्तरप्रदेश से उखाड़ फेंकने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी में सेंधमारी कर दी है। वह दिन बहुत दूर नहीं जब हमें बहुजन समाज पार्टी के कुल १९ विधायकों में से ११ विधायक  समाजवादी पार्टी में शामिल होते दिख जायें।

 उत्तरप्रदेश की राजनीति ऊँट पर सवार हो चुकी है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३ जून, २०२१ ईसवी।)