लोक-संसद्- शिक्षालयों में ‘हिन्दू’ और ‘मुसलिम’ की राजनीति : कितनी घातक?

सूत्रधार : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय –


अभी हाल में मानव संसाधन विकास केन्द्रीय मन्त्री प्रकाश जावड़ेकर के आदेश पर 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' ने एक समिति गठित की और उसे 'अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय' में लगे 'मुसलिम' शब्द को हटाने के लिए ठोस रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा था। उस समिति में कुछ लोग समझदार थे। आपस में विमर्श किया गया कि यदि 'अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय' से 'मुसलिम' शब्द हटाना पड़ेगा तब 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' से भी 'हिन्दू' शब्द हटाना पड़ेगा। जब इस तर्क से प्रकाश जावड़ेकर को अवगत कराया गया तब साम्प्रदायिक विषय को 'ठण्ढे बस्ते' में डाल देना ही बुद्धिमत्ता समझी गयी।
 यहाँ प्रश्न है, महामना मदनमोहन मालवीय और सर सय्यद की महा देन इन दोनों विश्वविद्यालयों के बहाने देश के शिक्षण-संस्थानों को विषाक्त क्यों किया जा रहा है? शैक्षणिक संस्थानों में पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन तथा चिन्तन-अनुचिन्तन के लिए कौन-सी व्यवस्था की जा रही है? क्या शिक्षा हिन्दू-मुसलिम विद्यार्थियों का विभाजन कर, दोनों की पृथक्-पृथक् सीमा तय करती है? छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के लिए सरकार कौन-सी नीति अपना रही है? विश्वविद्यालय-प्रशासन विद्यार्थियों के हितों का कितना पोषण कर रहे हैं? इस दिशा में शिक्षा-मन्त्रालय 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' को समिति गठित करने का निर्देश क्यों नहीं करता है?
 भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए अत्यन्त लज्जा का विषय है कि विश्व में वरीयता-क्रम में गुणवत्ता के आधार पर जब सौ विश्वविद्यालयों की सूची प्रसारित होती है तब देश के एक भी विश्वविद्यालय का नाम नहीं दिखता। आख़िर क्यों? कहाँ है, भारतीय विश्वविद्यालयों की ख्याति? कहाँ छुप गये हैं, हमारे शिक्षाशास्त्री?

इस विषय पर आप क्या सोचते हैं? देशहित में अब स्वस्थ संवाद-प्रतिसंवाद करने की आवश्यकता है।
तो आइए! बिना किसी पूर्वग्रह के इस परिसंवाद में सक्रिय भागीदारी करते हुए, निर्भीक, किन्तु शालीन विचारों की अभिव्यक्ति करें। निस्सन्देह, नीतियों और नीयत पर प्रहार करना है, न कि व्यक्तिगत स्तर पर।
वैचारिक हस्ताक्षरों का स्वागत है :———


धर्मेन्द्र कुमार ओझा- ज्ञान के मन्दिर का जिस तरह धार्मिक तुष्टीकरण किया जा रहा है उससे तो केवल छात्रों का भविष्य चौपट किया जा रहा है और शिक्षण संस्थान से केवल हिन्दू मुस्लिम योद्धा तैयार करने का लक्ष्य सरकार ने बना रखा है, यही है इस सरकार का असली सेकुलरिज्म । देश कहाँ जाएगा इसकी परवाह नही ।बड़ी सार्थक बहस छेड़ी है सर ने।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- ओझा जी! विद्यार्थी को संस्कार घर से अधिक, बाहर से मिलता है। यदि शैक्षणिक संस्थानों में ऐसी दुर्भावनाएँ लायी जायेंगी तो क्या शिक्षा की अवधारणा सिद्ध होगी?

धर्मेन्द्र कुमार ओझा- सर! सरकार लक्ष्य से भटक चुकी है उसका कार्य विद्वेष फैलाना और शासन करना मात्र रह गया है विद्वान कहाँ से पैदा होंगे जब विचारधारा ही संकीर्ण है ।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- अहम्मन्यता दुरवस्था तक ले जायेगी।

अनिवेर्ति तिवारी- वाह ओझा जी बहुत सुन्दर लेकिन एक शंका का समाधान करें यह धार्मिक तुष्टिकरण है या राजनीतिक तुष्टिकरण है । सर 1875 में सैय्यद अहमद ने मुहम्डन एंग्लो ओरिएंटल स्कूल की स्थापना की जो 1920 में अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में परिवर्तित हुआ । 1898 में एनी बेसेंण्ट ने वाराणसी में सेंट्रल हिन्दू कालेज की स्थापना की जो 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बना ।

धर्मेन्द्र कुमार ओझा- धर्म के आधार पर विभाजन धार्मिक तुष्टीकरण के अन्तर्गत आएगा तिवारी जी । मैं इसे राजनीतिक तुष्टीकरण नहीं मानता ।