प्रधानमंत्री आवास योजना में मृत व्यक्तियो को पात्र बनाया गया और उनके खाते से पैसा भी निकल गया

विजय कुमार-


सरकार कैशलेस को बढ़ावा दे रही है, डी.बी.टी. का विस्तार करते हुए पात्रों को सीधे लाभ दिलवाने का प्रयास कर रही है । ताकि अंत्योदय को साकार करते हुए वास्तविक लाभार्थी तक पूरा का पूरा लाभ पहुँचाया जा सके और सामाजिक असमानता व असंतोष को कम करते हुए जरूरतमंदों के साथ वास्तविक न्याय किया जा सके । परन्तु यह समझ नहीं आता कि नौकरशाहों एवं कर्मचारियों को अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान बनाने की दिशा में उसी गति से कार्य क्यों नहीं कर रही है? सरकार नौकरशाहों व अपने कर्मचारियों के कर्तव्य के प्रति उनकी जिम्मेदारियों में लापरवाही या अनैतिक संलिप्तता से निपटने हेतु कठोर कानून क्यो नहीं बनाती । साथ ही उनकी जिम्मेदारियो के निर्वहन में बाधक तत्वों से सुरक्षा के कवच से उन्हें आच्छादित करती है ?

क्या सरकार भ्रष्ट बैंक कर्मियों एवं अधिकारियों के रहते बैंकिंग तंत्र के इस्तेमाल से लाभार्थियों तक लाभ पहुँचाने की दिशा मे या निष्पक्ष रूप से मानकों के अनुरुप वास्तविक लाभार्थियों के चयन में अपने उद्देश्य को पूरी तरह प्राप्त करते हुए सफल हो सकती है । सरकार भ्रष्ट नौकरशाहों से निपटने की दिशा में कड़े कानून बनाने की दिशा में कार्य क्यों नही करती कि गड़बड़ी करने के स्पष्ट एवं पर्याप्त साक्ष्य पाये जाने पर तुरंत हमेशा के लिए सेवामुक्त करने, सभी अग्रिम लाभों से वंचित करने एवं दस या बीस साल के कठोर सश्रम करावास की सजा आदि निर्धारित करती। रक्षा क्षेत्र की भाँति प्रत्येक सरकारी क्षेत्र में हड़ताल करने के अधिकार को निरस्त करने की दिशा मे कानून बनाकर सेवायोजन के समय की शर्तों में इसे क्यों नही लाती? सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के वेतन,सुविधाओं आदि में समय समय पर वृद्धि से संबधित एक नियत नियमावली बनाते हुए उसकी शर्तो के आधीन ही सेवायोजन सुनिश्चित करती है। वैसे भी देश मे योग्य बेरोजगारों की कोई कमी नही है फिर भ्रष्टाचारियों एव अकर्मण्य कर्मचारियो को मोटे वेतन व सुख सुविधाओ से आच्छादित करते हुए व्यर्थ में ढ़ोना कहाँ तक तर्कसंगत व न्यायसंगत है? आपने कह दिया कि डी.बी.टी. के माध्यम से भ्रष्टाचार की गुजाइंश नहीं है क्योंकि हम सीधे लाभार्थी के खाते में पैसा भेजते हैं तो फिर ऐसा कैसे हो गया कि प्रधानमंत्री आवास योजना में मृत व्यक्तियो को पात्र बनाया गया और उनके खाते से पैसा भी निकल गया? हम कैसे मानें कि आप सही कह रहे हैं हम तो तभी मानेंगे जब आप हमारे प्रश्न का सर्वमान्य एवं न्यायिक उत्तर दें। साहब सिर्फ सिस्टम बदलने से वास्तविक सुधार नहीं आता है सिस्टम में छेद करने वालों के विरुद्ध कठोर विधान भी बनाने होगे कि गलत करने के बारे में सोंचने मात्र से उनकी रूह काँप जाए। क्या आपको पता है कि आप जो करना चाहते हैं उसमें रुकावट कौन हैं तो साहब कान खोलकर सुन लीजिए इसमें सबसे बड़ी रुकावट वहीं लोग हैं जिनकी जवाबदेही आप पर है।