आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘हिन्दी हैं हम’ के कुशल प्रवक्ता थे : डॉ० पृथ्वी नाथ पाण्डेय

●आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का पुण्यतिथि-समारोह सम्पन्न

“भाषा की दृष्टि से आचार्य द्विवेदी एक विलक्षण साधक थे। वे सरल और सुबोध भाषा के पक्षधर थे। गूढ़ विषयों के निदर्शन में उनकी भाषा संयत और आचार्यत्व की भावना लेकर विषय को स्पष्ट करती हुई चलती है। आचार्य ने अपनी परिश्रम, लगन तथा प्रतिभा से हिन्दीभाषा और साहित्य की उन सभी त्रुटियों को दूर किया था, जो हिन्दी की उन्नति में बाधक हो रही थीं। वास्तव में, आचार्य जी ‘हिन्दी हैं हम’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता थे।”

‘भाषाशिक्षण-केन्द्र’, इलाहाबाद इकाई की ओर से २१दिसम्बर को बेनीगंज, इलाहाबाद में आयोजित ‘आचार्य द्विवेदी और हिन्दीभाषा-साहित्य’ विषयक राष्ट्रीय महोत्सव में भाषाविद्-समीक्षक डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अध्यक्षता करते हुए उपर्युक्त उद्गार व्यक्त किये थे।

कानपुर के बी०डी० एम० एस० डिग्री कॉलेज में हिन्दीविभाग के अध्यक्ष डॉ० के०सी० पाठक ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा,”सम्पादक के रूप में आचार्य द्विवेदी अद्वितीय थे। ‘सरस्वती’ का सम्पादन उन्होंने जिस कौशल से किया था, वह आगे चलकर, एक आदर्श बन गया। वे लेखों की भाषा शुद्ध करने, क्रम देने तथा सजाने में अत्यधिक परिश्रम करते थे। गद्य के क्षेत्र में उनकी प्रतिभा का विकास हम कई रूपों में पाते हैं।” वाराणसी से पधारीं डॉ० मुक्ति यादव ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कहा,”आज जो हिन्दी में उपन्यास, नाटक, राजनीति, दर्शन तथा इतिहास का अधिकाधिक लेखन हो रहा है, उसकी रुचि आचार्य द्विवेदी ने ही उत्पन्न की थी। प्रतिभा और योग्यता के अनुरूप अनेक बालकवियों को उन्होंने काव्यरचना की स्फूर्ति प्रदान की; मार्गदर्शन किया तथा निरन्तर उनके साहित्यिक संवर्द्धन में गुरुवत् संरक्षण करते रहे।”

उन्नाव से आये हुए डॉ० शाश्वत प्रचंडिया ने बीजवक्ता के रूप में कहा, “पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी की कृतित्व और साहित्यिक देन का गुणानुवाद निरन्तर तब तक चलता रहेगा जब तक हिन्दीभाषा और साहित्य-संवाद होता रहेगा। आचार्य जी का जीवनभर प्रयास रहा कि हिन्दीभाषा-दौर्बल्य से मुक्त होकर शक्तिमती और प्रसारगामिनी बने।” मेरठ से पधारीं अफ़रोज़ बेग़म ने कहा,” आचार्य द्विवेदी जी ने विविध विषयों पर बहुत-से ग्रन्थ लिखे हैं। द्विवेदी जी हिन्दी के ऐसे प्रथम लेखक हैं, जिन्होंने आलोचना, पुरातत्त्व, सम्पत्तिशास्त्र, नाट्यशास्त्र, तथा राजनीति-जैसे विषयों पर सफलतापूर्वक ग्रन्थ लिखे थे।” रीवा से पधारी शकुन्तला वसिष्ठ ने कहा, “पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी जी हिन्दी के प्रचारक और सुधारक थे। इन दोनों रूपों में उनकी प्रतिभा का विकास की दिशाओं में हुआ था। उनकी प्रतिभा पद्य की अपेक्षा गद्य के अधिक अनुकूल थी।”

इनके अतिरिक्त डॉ० रजनी मीणा, सुभाष पटेल, यशस्वी कुशवाहा, डॉ० शिखा शर्मा आदि ने भी आचार्य द्विवेदी के भाषा-संस्कार को विधिवत् निरूपित किया।

महोत्सव का संयोजन डॉ० वर्णिका त्रिपाठी और डॉ० केवल गोस्वामी ने संचालन किया था। अभ्यागतगण के प्रति श्रीमती नन्दिनी भास्कर ने आभारज्ञापन किया था।