गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की दुःखद मृत्यु पर मार्मिक अभिव्यक्ति

सर्वेश मिश्र-


गोरखपुर मेडिकल कॉलेज जैसी घटनाऐं सुनकर जिंदगी की बहुत सी गलतफहमियां दूर हो जाती हैं । सस्ते लोगो की मौत भी कीमती होती है, मौतों पे भी राजनीति होती है लेकिन बच्चों को ये सब पता नही होता । शहरों के बच्चे इतने अमीर नही होते जितने गांव के बच्चे इन्हें समझते है । बड़े शहरों में मजदूरों के बच्चे वैसे भी जल्दी बड़े हो जाते हैं । अब ये बच्चे हर महीने नए कपड़ो की जिद नहीं करेंगे । माचिस की डिब्बियों के बनाए इनके घर अब कभी नही टूटेंगे । नदी किनारे की शंख और सीपियाँ अब इनके इंतज़ार में रेत में ही दफन हो जाएंगी । मेलों के लकड़ी के धनुष वाण और गुब्बारे बस इनके आने का जिक्र करते रहे जाएंगे । परचून की दुकान से खरीद कर इनकी लाई हुई कांच की गोली वाली कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतल वापस लौटाने अब कोई नही जाएगा । तोतली आवाज़ में हाय हैल्लो और नमस्ते अंकिल यहीं इसी दुनियां में छूट गया । ट्विँकल ट्विँकल जैसे कितने ही गीत बिना आवाज़ के खामोश हो गए । नानी की कहानियों वाला परियों का उड़नखटोला अधूरी कहानियों में ही टूट गया । क्रिकेट के बल्ले को ताउम्र अपने एक कोने में पड़े रहने की वजह कभी पता नही चलेगी । अधूरे सपने, जिन्हें शायद ये बच्चे पूरा कर सकते थे, अब इन्हें नींद से जगा नही सकते । अपने ही हाथों से लगाए पेड़ खिलने से पहले ही मुरझा कर आपकी आंखों के सामने गिर जाए तो मुट्ठी भींच के दीवार पर मारने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखता । ये बच्चे आज भले ही रूठ कर अपनों से दूर किसी और दुनियां में चले गए हो पर मुझे यकीन है अपने अधूरे सपने पूरे करने के लिए ये एक दिन रोशनी बन कर इस धरती पर उतरेंगे और सारा आसमान घेर लेगें ।