जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद-
दीपावली की स्निग्धिता में,
नव दीप फिर से जल उठे।
आशा और विश्वास के ,
नव पुष्प फिर से खिल उठे।।
चहुँओर ओर हैं दुश्वारियाँ,
जीवन में हैं कठिनाइयाँ।
अंधकार और प्रकाश मिलकर,
स्नेह से दो हृदय फिर से मिल उठे।।
दीपावली………………….. .
दीपों की फैली हैं अवलियाँ,
मोहित हुई है फिर से कुमुदिनी।
प्रफुल्लित चाँद और सूरज गगन में ,
सर्वत्र पूजित हैं धरा में माया मोहिनी।
हर घर को नव रंग से रंग दिया,
पर मन की कलुषता रोक ली।
न तो मन मिले न दिल ही मिले,
एक नई ईर्ष्या फिर से ठोंक ली।
उद्गलित न हो सके वह सभी,
जो भी मन में फैले भेद थे।
देखो जड़ें जज़्बात की ,
फिर नव सिरे से हिल उठे।।
दीपावली………………….. ………
दीप के उल्लास की है ,
मेरी भी सबको बधाई।
हर घर में आए खुशी ,
हर जुबां से बरसे मिठाई।
सबके हृदय में हो स्नेह की ,
अनुपम मनोहर सी छटा ।
हर हृदय हर्षित रहे ,
मन में न हो कोई ढिठाई।
कुछ तो सीखो तुम भी ‘जगन’
उस पतंगे के त्याग से।
दीप और उस जीव के ,
इस अटल अनुराग से।
निर्जीव और एक जीव के ,
इस विशद सी चाह से।
देखो मनुज संसार के ,
मुँह तो फिर से सिल उठे।।
दीपावली………………….. ………………..