जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद-
देख मनुज मैं तो पौधा हूँ,
आज मैं फिर से औंधा हूँ।
तूने काटा मेरे रग- रग को,
तेरे लिए मैं केवल धंधा हूँ।।
तूने तो मेरा तन लूट लिया,
मेरे मन को अब टूट दिया।
मैंने तो तुझको दी प्राणवायु ,
तूने तोड़ी मेरी ही स्नायु ।
मैंने तो दी सबको मुफ़्त छाँव,
छाले न दिए किसी के पाँव।
तूने किया मुझे एक मूल्य,
जबकि मैं हूँ तेरे लिए अमूल्य।
तूने तो निर्दयता दिखलाई,
तुझको तनिक दया न आई।
मैंने नहीं कभी कुछ माँगा,
जोड़ा एक प्रेम का धागा।
मुझे काट तू है बना महान,
तू केवल होना चाहे धनवान।
तुझे नहीं जीवन से लगता मोह,
तभी दिया है तूने मुझे बिछोह।
जीवन मेरा तो हरपल है दान,
लेकिन तुम न समझे नादान।
तुम भी तो एक दिन पछताओगे,
जब जीवन अपना स्वतः गँवाओगे।
आज गई है मेरी मुस्कान,
इससे होगा तुझको ही नुकसान।