भारत की चरमराती अर्थव्यवस्था के लिए उत्तरदायी कौन?— दो और अन्तिम भाग

अर्थतन्त्र

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

भारत की चरमराती अर्थव्यवस्था के लिए उत्तरदायी कौन?— एक

हम इस तथ्य को अस्वीकार नहीं कर सकते कि मोदी-सरकार लगातार क़र्ज़ लेती आ रही है; किन्तु उसे पटा नहीं पा रही है, जिसका सीधा दुष्प्रभाव भारत की जनता पर तरह-तरह की महँगाई, जी० एस० टी०-असन्तुलन, इक्साइज़ ड्यूटी, भाँति-भाँति करों, अघोषित वृद्धि आदिक के रूप मे देखा जा सकता है।

९ दिसम्बर, २०२१ ई० को मोदी-सरकार ने ‘एशियन डीवेलपमेण्ट बैंक’ (ए० डी० बी०) से ₹ २, ६४५ लाख करोड़ ऋण लिये थे। उसी सरकार ने सितम्बर, २०२१ से मार्च, २०२२ ई० के अन्त तक ₹ १३.३ लाख करोड़ ऋण और लेने की योजना बनायी थी, जिसे वह अब ले चुकी है। ज़ाहिर है, इससे प्रत्येक भारतीय पर क़र्ज़ की धनराशि और बढ़ती जायेगी। इतना ही नहीं, वर्ष २०२२-२३ के बजट-अनुमान पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि ३१ मार्च, २०२३ ई० को उक्त क़र्ज़ मे बढ़ोतरी होगी, जो ₹ १५५ लाख करोड़ हो जायेगा। इस प्रकार ३१ मार्च, २०२२ ई० से लेकर ३१ मार्च, २०२३ ई० के मध्य मोदी-सरकार पर ₹ १६.३ लाख करोड़ का अतिरिक्त क़र्ज़ लद जायेगा। नवीनतम आँकड़े के अनुसार, मोदी-सरकार पर सितम्बर, २०२१ ई० तक ₹ १२५.७ लाख करोड़ का कर्ज़ हो गया था, जो कि वर्ष २०२१-२२ की संशोधित सकल घरेलू उत्पाद (जी० डी० पी०) का लगभग ५५ प्रतिशत है। इसे ऐसे समझें– वर्ष २०२१ की अनुमिति जनसंख्या के अनुसार, सितम्बर, २०२१ ई० तक प्रति व्यक्ति पर ₹ ९२,३४८ का क़र्ज़ हो गया था। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, यह सरकार सितम्बर, २०२१ तक ₹ १२५.७ लाख करोड़ का ऋण ले चुकी है।

स्मरणीय है कि मोदी-सरकार के गठन से पूर्व केन्द्र-सरकार पर ₹ ५३.१ लाख करोड़ का ऋण था, जो ३१ मार्च, २०२३ ई० तक बढ़कर ₹ १५५.३ लाख करोड़ हो जायेगा। वस्तुस्थिति यह है कि मोदी-सरकार अपनी नाकामी का ठिकरा लगातार ‘भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस’ पर फोड़ती आ रही है और अपनी उस विफलता को छुपाने के लिए सरकारी संस्थाएँ बेची जा रही हैं; आम जनता को जी० एस० टी०, इक्साइज़़ ड्यूटी, अन्य करों तथा अघोषित अधिभार के जाल मे बुरी तरह से फँसा दिया गया है। मोदी-सरकार को वर्ष २०२२-२३ मे ₹ ९.४१ लाख करोड़ ब्याज के रूप मे भुगतान करने हैं। प्रश्न है, इतने रुपये कहाँ से आयेंगे?

भारत की आर्थिक दुर्दशा से भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी राजनीतिक संघटन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ और ‘विश्वहिन्दू परिषद्’ के प्रमुख नेताओं की ओर से भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं। इसे समझने के लिए हमे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले के उस सार्वजनिक कथन की समीक्षा करनी होगी, जिसमे उन्होंने कहा था– एक तरफ़ तो भारत दुनिया की छठी अर्थव्यवस्था मे से एक है और दूसरी ओर, यहाँ के २३ करोड़ लोग हर दिन ३७५ रुपये से भी कम कमाते हैं। शीर्ष के एक फ़ीसदी लोग के पास राष्ट्र की २० फ़ीसदी आय है और २० करोड़ लोग ग़रीबी-रेखा से नीचे रहकर गुज़र-बसर कर रहे हैं। मोदी-मन्त्रिपरिषद् के केन्द्रीय मन्त्री नितिन गडकरी का मानना है– भारत के लोग भुखमरी, जातिवाद, बेरोज़गारी तथा बढ़ती महँगाई से जूझ रहे हैं; ग़रीबी-अमीरी की खाई और गहरी होती जा रही है।

‘ऑक्सफैम इण्टरनेशनल रिपोर्ट’ पर यदि विश्वास किया जाये तो उसके अनुसार, भारत की १० प्रतिशत जनसंख्या के पास राष्ट्रीय सम्पत्ति का कुल ७७ प्रतिशत भाग है, जबकि वर्ष २०१७ मे देश की ७३ प्रतिशत आय १ प्रतिशत अमीर लोग के हिस्से मे गयी थी। अब ये सभी आँकड़े हैरान करनेवाले हैं। भारत के २३ करोड़ लोग प्रतिदिन केवल ₹ ३७५ कमा पा रहे हैं, जबकि दूसरी ओर, एक उद्योगपति प्रतिघण्टे ₹ ४२ करोड़ बना रहा है। इस प्रकार उसकी प्रतिसप्ताह-आमदनी ₹ ४२ करोड़ दिखती है। इससे अधिक आश्चर्यजनक बात और क्या हो सकती है कि १ प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जिनके पास भारत की कुल सम्पत्ति का २० प्रतिशत हिस्सा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था मे विरोधाभास

● भारत का विदेशी मुद्रा-भण्डार पिछले दो वर्षों मे सबसे निचले स्तर पर पहुँच चुका है।
● भारत विश्व की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्थावाला देश है।
● भारत मानवविकास-सूचकांक मे श्रीलंका से भी नीचे आ चुका है।
● भारत के २३ करोड़ लोग प्रतिदिन मात्र ₹ ३७५ कमा पा रहे हैं।
● भारत का व्यापार-घाटा लगातार बढ़ रहा है, जो कि लगभग $ ३० अरब प्रति महीना हो चुका है।

इन दिनो सरकार की ग़लत आर्थिक नीतियों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से ग़ुज़र रही है। उसका व्यापार-घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। फ़रवरी, १९२१ ई० के बाद सितम्बर-माह मे भारत के निर्यात मे गिरावट देखी गयी है और एक वर्ष पहले की तुलना मे व्यापार-घाटा १९ प्रतिशत अधिक हो गया है। स्मरणीय है कि सितम्बर-माह मे भारत का निर्यात $ ३२.६२ अरब का रहा, जबकि उसी माह मे उसका आयात $ ५९.३५ अरब का रहा। आयात का यह आँकड़ा एक वर्ष पहले की तुलना मे ५.४४ प्रतिशत अधिक है। सितम्बर मे भारत का व्यापार-घाटा $ २६.७३ अरब का रहा। स्थिति यह है कि भारत का व्यापार-घाटा प्रतिमाह लगभग $ ३० अरब का रहा है। घाटा की यह राशि सामान्य नहीं है, जिससे कि भारत की वर्तमान सरकार सहजता से उबर पाये। वास्तविकता यह है कि वह अपनी ग़लत दिशा मे जा रही आर्थिक नीतियों के दुष्चक्र मे बुरी तरह से फँस चुकी है। यही स्थिति एक-डेढ़ वर्षों तक बनी रही तो भारत-सरकार पर विदेशी मुद्रा-भण्डार का संकट आना तय है। वर्तमान समय मे भारत का विदेशी मुद्रा-भण्डार पिछले दो वर्षों मे सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है। उसका विदेशी मुद्रा-भण्डार $ ५५० डॉलर से नीचे आ गया है। ऊपर हम बता चुके हैं कि भारतीय मुद्रा ‘रुपया’ ‘डॉलर’ की तुलना मे लगातार कमज़ोर पड़ता जा रहा है। उसे $१ के लिए ₹ ८२.८३ देने पड़ रहे हैं। जब रुपये की क़ीमत गिरती है तब उसका सर्वाधिक प्रभाव आयात पर होता है; क्योंकि तब किसी वस्तु का आयात करना बहुत महँगा हो जाता है और दूसरी ओर, निर्यात बहुत सस्ता हो जाता है। इसका सीधा दुष्प्रभाव देश की जनता पर पड़ता है। यही कारण है कि सरकार लगातार ‘सच’ से आँखें चुराती आ रही है और ग़ैर-ज़रूरी विषयों को उपस्थित कराकर, देश को महा आर्थिक संकट की आग मे झोंकती जा रही है, जो कि आनेवाले कल मे भारत के लिए ‘भस्मासुर’ साबित होगा, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता।

prithwinathpandey@gmail.com
● लेखक भाषाविज्ञानी और उन्मुक्त विचारक हैं।
यायावर-भाषकसंख्या– ९९१९०२३८७०
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ९ अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)