हमारी ‘हिन्दीभाषा’ की गरिमा ध्वस्त की जा रही है!

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-

                  नीचे एक अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का 'निमन्त्रणपत्र' है, जिसे आयोजकगण ने  'मुक्त मीडिया' के माध्यम से सार्वजनिक किया है। 'विश्व हिन्दी संस्थान' कनाडा की ओर से उक्त आयोजन किया जायेगा किन्तु  इस पत्र में 'हिन्दीभाषा' के सामान्य शब्द भी 'अशुद्ध' रूप में लक्षित हो रहे हैं। उन शब्दों पर जैसे मेरी दृष्टि निक्षेपित हुई, विस्मित रह गया।
      आप पहले हिन्दी के सन्दर्भ में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन के  हिन्दी-शब्दप्रयोग को समझें, उसके बाद मेरी टिप्पणी को पढ़ें :--------
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अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 
निमन्त्रण पत्र
श्रीमान/श्रीमति/डॉ/
शोधार्थी
आप को जानकर अति प्रश्नता होगी की दूरवर्ती शिक्षा निदेशालय कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय कुरुक्षेत्र एव विश्व हिंदी संस्थान कनाडा द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है जिसका  विषय:वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी: विस्तार और चुनौतियाँ । सब विषय :-,राष्ट्रीय भाषा ,राज भाषा ,वैश्विक परिप्रेक्ष्य में  हिंदी का  स्थान ,हिंदी की तकनिकी शब्दावली,हिंदी में मीडिया की भूमिका,हिंदी में सिनेमा का महत्व ,वेब दुनिया और हिंदी ,पत्रकारिता में हिंदी का प्रयोग ।इन विषयोँ पर आप अपना आलेख 20 अक्टूबर 2017 तक  भेज सकते हो अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें 
डॉ कामराज सिंधु
8708592400
hindiseminarkuk2017@gmail.com
डॉ दीपक कुमार 
9991536363  
पंजीयन  प्रात : 8 बजे आरम्भ होगा आप अपने साथ अपना रिसर्च पेपर व  उसकी CD साथ लाये, प्रथम सत्र 9.30 पर  प्रारम्भ होगा जिसके सब विषय :राष्ट्र भाषा ,राज भाषा ,वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी,हिंदी की तकनिकी शब्दावली और हिंदी से सम्बन्धित  विषय और उसके बाद 11:00
जलपान तुरन्त बाद  11.30 बजे संगोष्ठी का आरम्भ ।और फिर  1.30 बजे भोजन और उसके बाद  प्रथम तकनिकी सत्र प्रारम्भ 2.30से4.00बजे तक और समापन अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी 2017  ।जो भी संगोष्ठी में शामिल होना चाहता हैं वह अपनी सूचना दिये गए नम्बर पर दे सकते है ताकि आप को सभी सविधा दे सके जिसमे भोजन की व्यवस्था, बैठने की व्यवस्था जल पान की व्यवस्था आदि आदि आने से पहले सूचना जरूर दे 
आप का आभार
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डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की टिप्पणी :-------
घोर आश्चर्य है! 
   संस्था का नाम 'विश्व हिन्दी संस्थान' और हिन्दी-शब्दप्रयोग का स्तर अति निम्नस्तरीय!..?
   आयोजक महोदय!
     
    संशोधित रूप देखें : श्रीमती, प्रसन्नता,कि, दूरवर्त्ती, आयोजित किया जायेगा, विषय : , उप विषय, तकनीकी,  महत्त्व, अक्तूबर, २०१७, भेज सकते हैं। करें :----
डॉ०, पूर्वाह्न ८ बजे, सुविधा। इनके अतिरिक्त बहुत अशुद्धियाँ हैं। पहले हिन्दीभाषा सम्पन्न बनिए फिर आयोजन कीजिए। 
  दूसरी बात, विषय और उप विषय-निर्धारण करते समय गम्भीरता नहीं बरती गयी है। आप जब अन्तरराष्ट्रीय स्तर का आयोजन करने जा रहे हैं तब आलेख-लेखन के लिए निर्धारित विषयों में वैश्विक झलक दिखनी चाहिए और उनमें गम्भीरता रहनी चाहिए, जो दूर-दूर तक नहीं दिख रही है। कई विषयों के शीर्षक ही अनुपयुक्त हैं।
     ऐसे में, आयोजन और विषय-निर्धारण करनेवालों का बौद्धिक स्तर नितान्त शोचनीय है!..?
      ऐसे आयोजनों की तुलना में तो हम अपने 'इलाहाबाद-स्तर' पर ही अत्युत्तम विषय-निर्धारण कर भव्य आयोजन करते हैं।
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    आयोजक ने मुझसे विषय और उप-विषय-निर्धारण करने का अनुरोध किया है। चूँकि आयोजन सफलतापूर्वक गम्भीर विषयों-उप-विषयों के साथ सम्पन्न हो सके, इसी हेतु मैंने अभी १५ मिनट-पूर्व वाँछित सामग्री सम्प्रेषित कर दी है; आप भी देखिए और इनके औचित्य को समझिए :----

मुख्य विषय : १- हिन्दीभाषा और मीडिया का परीक्षण और समीक्षण : वैश्विक सन्दर्भ में

उप-विषय : २- हिन्दी के विकास में राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय संघटनों की भूमिका
३- हिन्दीभाषा के संवर्द्धन में बोलियों का योगदान
४- हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आप्रवासी हिन्दी लेखकों और साहित्यकारों की भूमिका
५- हिन्दीभाषा : कल, आज और कल
६- भाषा को विकृत कर रही उपभोक्तावादी संस्कृति
७- समाचार-संज्ञान और शब्दानुशासन
८- मीडिया की भाषाई स्वच्छन्दता समाज के लिए घातक!
९- वेब पत्रकारिता का वर्तमान सन्दर्भ
१०- मीडिया का बदलता चरित्र : कितना सकारात्मक?
११- कल हिन्दी ढूँढ़े नहीं मिलेगी!
१२- संयुक्त राष्ट्रसंघ और हिन्दी-भाषा
१३- हिन्दी की शुचिता पर ग्रहण लगा रहा बाज़ारवाद
१४- समाज-परिवर्त्तन में मुक्त मीडिया (सोसल मीडिया) की प्रभावकारी भूमिका
१५- मीडिया का बदलता चरित्र-चाल-चेहरा
१६- वैश्विक क्षितिज पर हिन्दी की स्थिति
१७- विश्व हिन्दी-सम्मेलन : कितना खोया-कितना पाया?
१८- आँचलिक पत्रकारिता : दृश्य-परिदृश्य
१९- राष्ट्रभाषा बनाने के मार्ग में संवैधानिक बाधाएँ क्यों?
२०- हिन्दी के संवर्द्धन में भारतीय भाषाओं की भूमिका
(यायावर भाषक-संख्या : ९९१९०२३८७०)
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