सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

‘भारत बनाम इण्डिया’ की छिछली राजनीतिक कोख से निकलता यक्ष-प्रश्न

आज ‘भारत’ के करोड़ों क्रिकेटप्रेमी एक स्वर मे कह रहे हैं :– ‘इण्डिया’ जीतेगा। इण्डिया!-इण्डिया!’

कल अहमदाबाद-स्टेडियम मे लाखों स्वर एक साथ ‘इण्डिया-इण्डिया’ का जयघोष करेंगे।

कल वे दो व्यक्ति भी होंगे, जो ‘इण्डिया’ शब्द के प्रयोग पर किसी भी स्तर तक जाने की अपनी मानसिकता सार्वजनिक कर चुके हैं; उन व्यक्तियों मे से एक ‘प्राइम मिनिस्टर ऑव़ इण्डिया’ है, जिसने अपने जीते-जी सरदार पटेल का नाम हटवाकर उस स्टेडियम को अपने नाम करा दिया था और दूजा ‘होम मिनिस्टर ऑव़ इण्डिया’ है, जिसने नरेन्द्र मोदी-द्वारा वर्ष २०१४ के लोकसभा-चुनाव मे भाषण करते हुए, प्रतिवर्ष २ करोड़ नौकरी और प्रत्येक भारतवासी के खाते मे १५ लाख रुपये जमा करने की सार्वजनिक घोषणा को ‘चुनावी ज़ुम्ला’ बताया था। वे वही दोनो प्रभुत्वसम्पन्न व्यक्ति हैं, जिन्होंने ‘जी–२४’ आयोजन मे ‘प्रेसीडेण्ट ऑव़ इण्डिया’ को ‘प्रेसीडेण्ट ऑव़ भारत’ के नाम से लिखित रूप मे प्रचार-प्रसार कराये थे। तथा प्रतिपक्षी महागठबन्धन ‘इण्डिया’ को ‘घमण्डिया’ कहा था। इतना ही नहीं, वे दोनो महागठबन्धन का नाम ‘इण्डिया’ रखते ही, ‘इण्डिया’ शब्द के अस्तित्व को चुनौती देने लगे थे।

अब यक्ष प्रश्न है :–
जब उक्त स्टेडियम वे दोनो प्रमुख सत्ताधारी व्यक्ति बैठे रहेंगे और उसी स्टेडियम से ‘इण्डिया! इण्डिया!’ का नारा उनके सामने पूरी आक्रामकता और पूरे उत्साह के साथ लाखों दर्शक लगायेंगे तब क्या वे दोनो वहाँ से उठकर चल देंगे वा फिर सभी दर्शकों के विरुद्ध काररवाई करायेंगे अथवा स्टेडियम मे मैच शुरू होने से पूर्व सभी दर्शकों से कहेंगे :– आप लोग ‘इण्डिया’ के स्थान पर ‘भारत!-भारत!’ का नारा लगायें, ‘इण्डिया!-इण्डिया’ का नहीं; क्योंकि वह नारा ‘महागठबन्धन’ को बल प्रदान करता अनुभव करायेगा?

इसे कहते हैं, ‘धूमिल चरित्र का किरदार’।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १८ नवम्बर, २०२३ ईसवी।)