

(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
बच्चे कल के ‘भविष्य’ हैं। बच्चे बदलते भारत की सच्ची तस्वीर हैं। बच्चे कल के राष्ट्र-कर्णधार हैं। हमारे देश का सारा समाज, सारे राजनेता एक स्वर में इन सारी बातों को स्वीकार करते हैं, परन्तु देश के किसी एक बच्चे के साथ उसके विद्यालय में कोई निर्मम घटना-दुर्घटना हो जाती है तब कोई भी स्वत:-स्फूर्त्त चेतना का परिचय देते हुए, उस बच्चे और उसके माँ-बाप के साथ खड़े दिखायी नहीं पड़ते। ऐसे में, समाज और राजनेता कितने दोगले हैं, इसका प्रमाण मिल जाता है।
स्वास्थ्य और शिक्षा प्राप्त करना ‘हमारा संवैधानिक अधिकार’ है। इसकी डुगडुगी वर्षों से हमारे राजनेता पिटते आ रहे हैं; हमारी सरकारें चलानेवाले लोग हमें बरगलाते आ रहे हैं। वे सब जानते हैं कि देश की कुल आबादी में अधिकतर संख्या उन लोग की है, जो ग़रीबी रेखा के नीचे रहते आये हैं और ऐसे लोग के लिए समुचित स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था है ही नहीं। स्वास्थ्य और शिक्षा इतनी महँगी है कि सामान्य वर्ग चाहकर भी ‘अच्छे’ स्कूलों में अपने बच्चों का दाख़िला नहीं करा सकते।
देश की शिक्षापद्धति वैसे ही दोयम दर्ज़े की है, उस पर बहुत बड़ी संख्या में फीस ली जाती है, जो नियमत: अवैध है। मध्य और उच्च-वर्ग का समाज अपने बच्चों को इस उम्मीद से महँगे स्कूलों में दाख़िला कराते हैं कि उनका बच्चा उत्तम शिक्षा अर्जित करे और उनका सामाजिक ‘स्टेटस’ भी दिखता रहे। वहीं जब हम ऐसे स्कूलों पर नज़रें दौड़ाते हैं तब ज्ञात होता है कि हमारे रहमो करम पर चुनाव जीतनेवाले राजनेताओं, विधायकों, सांसदों तथा मन्त्रियों ने अपने बीवी, भाई, बेटी-बेटा, बहू, रिश्तेदारों आदिक के नाम पर एक नहीं, दस-दस स्कूल खोल रखे हैं। कुछ व्यवसायी-वर्ग भी थोक के भाव स्कूल चलाते हैं और तरह-तरह के मद में फीस के नाम पर एक मोटी रक़म वसूल करते हैं।
इतनी बड़ी संख्या में फीस के नाम पर धनराशि देनेवाले माँ-बाप अपने बच्चों को स्कूलों में इसलिए भेजते हैं कि उनके बच्चे उन्नत शिक्षा ग्रहण कर अच्छी सेवाओं में जा सकेंगे, किन्तु यह क्या, यहाँ तो स्थिति कुछ और ही दिखती है। स्कूल राजनीति के अड्डे के रूप में सामने आते हैं। कुछ पुरुष, कुछ महिला अध्यापक तथा कुछ शिक्षणेतर कर्मचारी मिलकर स्कूल को भ्रष्टाचार, निकम्मेपन, व्यभिचार, बलात्कार, अप्राकृतिक दुष्कर्म, अन्य कुकर्म, हत्या आदि के अड्डे बना देते हैं। ऐसे गर्हित कृत्यों में जाने-अनजाने प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य तथा स्कूल-प्रबन्धक भी शामिल रहते दिखते हैं। यदि हम यह मान लेते हैं कि वे शामिल रहते दिखते नहीं हैं तो प्रश्न उठता है : किसकी शह पे उक्त लोग घिनौने और जघन्य वारदातों को अंजाम तक पहुँचा देते हैं?
अभी तो देश के हस्पतालों में प्रतिदिन सैकड़ों बच्चों के मरने की ख़बरें मिल रही हैं, परन्तु अब स्कूलों में बच्चों को मारने का दौर शुरू किया जा चुका है। इस सन्दर्भ में गुरुग्राम, हरियाणा के ‘रेयान इण्टरनेशनल स्कूल’ के ‘बाथ रूम’ में सात वर्षीय बालक प्रद्युम्न ठाकुर के रक्तरंजित शव और उसी के पास ख़ून से सने चाक़ू के मिलने से उस स्कूल-प्रबन्धन की दरिन्दगी सामने आ चुकी है।
देश के कई स्कूल ऐसे हैं, जहाँ के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी और विद्यामन्दिर को कलंकित करनेवाले अध्यापक वहाँ के बच्चों और महिला अध्यापकों के साथ वर्षों से अमानवीय व्यवहार करते आ रहे हैं। इसके लिए विद्यालय-प्रबन्धन पूर्णत: उत्तरदायी है, परन्तु आश्चर्य की बात है कि प्रबन्धन-तन्त्र की आँखें अभी तक खुल नहीं पायी हैं। ऐसे विद्यालयों की बसें चलानेवाले चालकों में से अधिकतर शराबी-कबाबी होते हैं। वहीं कुछ अध्यापक जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी किस सीमा तक गिर जाते हैं, जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता।
ऐसा ही एक विद्यालय थरवई, इलाहाबाद का है, जिसमें ‘जयश्रीराम’ करनेवाले एक-से-बढ़कर-एक खलीफ़ा अध्यापक हैं, जो पढ़ाते कम हैं और घृणित राजनीति करते हुए, महिला अध्यापकों को हर स्तर पर अपमानित करने का मौक़ा ढूँढ़ते रहते हैं, जबकि वहाँ का ‘नपुंसक प्रधानाचार्य’ मौन साधकर उन सबको बढ़ावा देता रहता है। यह भी ज्ञात हुआ है कि वह प्रधानाचार्य शराबी है; रिश्वतख़ोर है, अपने कक्ष में सिगरेट पीता है तथा एक नम्बर का व्यभिचारी भी।
दु:ख इस बात का है कि प्रबन्धन-समिति में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का एक पूर्व-विभागाध्यक्ष (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अधिकारी), सी०एम०पी० डिग्री कॉलेज में हिन्दीविभाग का एक पूर्व-प्रवक्ता तथा कई व्यवसायी आदिक सम्मिलित हैं, परन्तु सबके-सब सब-कुछ जानते-समझते हुए भी मौन बने रहते हैं। इस विद्यालय के कुछ पुरुष और महिला अध्यापकों का बेहद घिनौना चेहरा है और वे सब मिलकर कुछ बच्चों और महिला अध्यापकों के साथ किस तरह का बरताव करते हैं; चरित्र-हनन् करने के उद्देश्य से बस के ड्राइवरों, क्लीनरों, कण्डक्टरों की मदद से ऐसे अध्यापक आपराधिक प्रकार के पर्चे विद्यालय के विद्यार्थियों में बँटवाते हैं। वह पर्चा मेरे भी हाथ लग चुका है। यह भी पता चला है कि उस पर्चे को उसी विद्यालय में टाइप कराया गया है। उस पर्चे पर अंकित शब्द स्वयं को ‘ब्राह्मण’ कहनेवाले सी० बी० एस० सी० मान्यता-प्राप्त उसी हायर सेकण्डरी कॉलेज के दो शातिर, मक्कार अध्यापकों ने वहाँ के अय्याश और महा भ्रष्ट प्रधानाचार्य की शह पर मिलकर लिखे थे, जिससे उस महिला अध्यापक का परिवार सदमे में है। ‘मातृशक्ति’ की वकालत करनेवाले उस विद्यालय के अध्यापकों-द्वारा लिखे गये एक-एक शब्द से ‘साम्प्रदायिकता’ की चिनगारी फूटती है। ये सब जानते-समझते हुए भी स्कूल-प्रशासन अभी मौन बना हुआ है। उस पर्चे में लिखे एक-एक शब्द से लगता है कि पढ़ते समय आँखें जल जायेंगी। ऐसे विद्यालयों को तत्काल प्रभाव से मान्यता निरस्त करते हुए, आपराधिक धाराओं के अन्तर्गत कठोर न्यायिक कार्यवाही की जानी चाहिए। इलाहाबाद ज़िला-प्रशासन-द्वारा सारी आपराधिक गतिविधियों की जाँच करायी जानी चाहिए।
मेरे पास बहुत सारे प्रमाण हैं और यदि मेरा अभियान आरम्भ हो गया तो इन सबके चरित्र ‘राष्ट्रीय मीडिया’ के माध्यम से सारे प्रमाणों के साथ पीड़िता और उसके परिवार के सदस्य उस हायर सेकण्डरी की आड़ में खेले जा रहे घिनौने खेलों का परदाफ़ाश करते नज़र आयेंगे। तब सारा देश उन सबके चरित्र पर थूकते हुए दिखेगा। वहीं कुछ दिनों पहले सत्येन्द्र द्विवेदी नामक शान्तिपुरम्, इलाहाबाद के ही एक स्कूल-प्रबन्धक-द्वारा अवैध विद्यालय संचालित करने और लाठी-डण्डों से मासूम बच्चे को निर्ममतापूर्वक मारने का प्रकरण सामने आ चुका है। उसके विरुद्ध ज़िला-प्रशासन ने कार्रवाई की है; वह जेल भी जा चुका है।
और अब जब ८ सितम्बर, २०१७ ई० को गुरुग्राम (हरियाणा) के ‘रेयान इण्टरनेशनल’ में सात वर्षीय बालक के गले पर धारदार हथियार से प्रहार कर उसे मार डालने की ख़बर पूरे देश में आग की तरह से फैल चुकी है तब ऐसे में, इन सारे स्कूलों की मान्यता रद्द कर एक सिरे से न्यायिक कार्यवाही करायी जानी चाहिए। एक साल के भीतर इस स्कूल में बच्चों की यह तीसरी हत्या है। इस विद्यालय को तुरन्त ‘सीज’ कर उच्चस्तरीय जाँच करायी जानी चाहिए। यदि इस विद्यालय में अकस्मात् मरे बालक की मृत्यु के कारणों की जाँच हो गयी रहती तो प्रद्युम्न की हत्या नहीं हुई रहती। ऐसे विद्यालय-प्रबन्धन के पास धनबल, पहुँचबल तथा गुण्डाबल रहता है, जिसके भय के कारण पीड़ित माँ-बाप सामने आने से डरते रहे हैं। वहीं प्रश्न है, यह डर कब तक बना रहेगा। धर्म की आड़ में दुर्दान्त कृत्यों को करनेवाला ‘डेरा सच्चा सौदा’ का महारथी जब घुटनों के बल चलने लगा है तब ऐसे स्कूलों में मध्यम वर्ग के आपराधिक कृत्यों में संलिप्त लोग तो बौने हैं; मात्र इच्छाशक्ति की आवश्यकता है, सारे गुनहगार अदालत में दिखेंगे।
बताया जाता है कि उस विद्यालय में १६ सी०सी०टी० कैमरा लगाये गये हैं। ऐसे में, प्रश्न है, वे सारे कैमरे सक्रिय थे या फिर विद्यालय-प्रबन्धन-द्वारा छेड़ख़ानी कराकर ‘सुबूत’ नष्ट करा दिये गये हैं। ऐसे में, प्रश्न उठता है, उस मृतक बालक की बीते ८ सितम्बर को स्कूल में क्या-क्या गतिविधियाँ थीं, उन्हें सार्वजनिक किया जाये। माँ-बाप अपने बच्चों को स्कूल इसलिए भेजते हैं कि स्कूल-प्रबन्धक उनके साथ मनमाना करें। शोचनीय विषय यह है कि ऐसी घटनाएँ थम नहीं रही हैं। ८ सितम्बर को रेयान इण्टरनेशनल स्कूल, गुरुग्राम (हरियाणा) में सात साल के बच्चे की हत्या कर दी गयी थी; दूसरी ओर, ९ सितम्बर को सिल्वर लाइन स्कूल, मेहरौली, ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश) की आठ वर्ष की बालिका सौम्या स्कूल-बस से उतरते समय अपने ही स्कूल की बस से कुचल कर मृत्यु को प्राप्त कर गयी थी।
ये दोनों ही घटनाएँ हृदय- विदारक हैं और इनसे ज़ाहिर होता है कि स्कूल-प्रशासन पूरी तरह से अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति सौ फ़ीसद लापरवाह है। माँ-बाप अपने बच्चों को जब स्कूल में ले जाकर छोड़ आते हैं तब स्कूल-प्रबन्धन का पूर्ण दायित्व होता है कि वह उन बच्चों की सुरक्षा-व्यवस्था करे। मृतक प्रद्युम्न ठाकुर की निर्मम हत्या करने के अपराध को बस के कण्डक्टर अशोक कुमार ने स्वीकार कर लिया है। ऐसे में, एक पक्ष यह भी उभर कर आता है : उस अबोध बालक के साथ कथित कण्डक्टर की कैसी शत्रुता थी? यदि नहीं तो उसने प्रद्युम्न की हत्या क्यों की थी? ‘पब्लिक स्कूल’, ‘इण्टरनेशनल स्कूल’, ‘महापुरुषों’, ‘देवी-देवताओं’ आदिक के नाम पर संचालित किये जा रहे अधिकतर स्कूलों में व्यभिचार, बलात्कार किये जाते रहे है और तज्जनित हत्याएँ की जाती रही हैं तथा ‘प्रभुत्व’ और ‘रिश्वत’ के बल पर उन्हें दफ़्न करा दिया जाता रहा है।
ऐसे में, अब कई प्रश्न उठते हैं :——-
१- क्या प्रद्युम्न ने किसी महिला/ किसी महिला अध्यापक/ कार्यवाहक महिला प्रधानाचार्य के साथ मनायी जा रही रँगरलियों को देख लिया था?
२- बालक को रक्तरंजित अवस्था में देखने के बाद स्कूल-प्रबन्धन ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी थी?
३- क्या वास्तव में, आरोपित कण्डक्टर अपराधी है? यदि हाँ तो उसने सात वर्षीय मासूम प्रद्युम्न की हत्या क्यों की थी?
४- स्कूल-प्रबन्धन की ओर से कथित आरोपित कण्डक्टर को बड़ी संख्या में रुपये देकर के उसे किसी और का आरोप अपने ऊपर लेने के लिए तैयार किया गया था क्या?
५- स्कूल के १६ सी० सी० टी० ह्वी० कैमरे यदि काम कर रहे थेे तो कथित कण्डक्टर मृतक बच्चे के पास कैसे पहुँच गया था? तब कैमरे पर निगरानी करने के लिए किसे दायित्व सौंपा गया था?
६- स्कूल का सुरक्षा-प्रबन्धन क्या कर रहा था?
७- अभी तक स्कूल पर एफ० आई० आर० दर्ज़ क्यों नहीं की गयी है?
वहीं ग़ाज़ियाबाद में ९ सितम्बर को अपनी ही बस से उतरते समय उसी बस से कुचलकर जिस बच्ची की मृत्यु हो गयी थी, उसके उतरते समय, वह बालिका सुरक्षित तरीक़े से बस से उतर पायी है या नहीं, इसे देखने की ज़िम्मेदारी स्कूल-प्रबन्धक ने किसे सौंपी थी? बस-कण्डक्टर ने देखा था? यदि नहीं तो क्यों?
वैसे देश में जितने भी सी०बी०एस०सी० से मान्यता प्राप्त विद्यालय हैं, उनमें से अधिकतर प्रतिवर्ष मनमाने तरीक़े से बच्चों की फीस पढ़ाते हैं और बालक-बालिकाओं की सुरक्षा के नाम पर पीठ दिखाते रहते हैं। फीस की सीमा नये सिरे से अब निर्धारित करनी होगी। अभिभावकों से जो फीस के अतिरिक्त अनुदान-धनराशि ली जाती है, उसे समाप्त करना होगा। प्रत्येक नगर में सुदृढ़ और प्रभावकारी ‘अभिभावक-संघटन’ का गठन करना होगा, ताकि किसी भी विद्यार्थी के साथ विद्यालय में कुछ भी अप्रिय घटने पर अभिभावक-संघटन आक्रामकता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा सके। ऐसी स्थिति में ‘विद्यार्थियों की सुरक्षा’ के लिए अब नये मानक निर्धारित कर, उनको लागू कराना सुनिश्चित किया जाना चाहिए, अन्यथा हमारे देश के स्कूलों में बच्चे-बच्चियों की हत्याएँ की जाती रहेंगी और देशवासी ‘अच्छे दिन’ की माला जपते रहेंगे। स्कूलों की बसों को चलानेवालों में अधिकतर ड्राइवर, क्लीनर, कण्डक्टर आदिक शराबी होते हैं, इस पर गम्भीरतापूर्वक अब विचार करना होगा। किसी भी प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक दबाव से दूर रहकर पुलिस-प्रशासन और ज़िला-प्रशासन को उन्हें अपना कर्त्तव्य-निर्वहन करने देना होगा।
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