
चंद्रशेखर आजाद और क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में जानना चाहते हैं तो उनके क्रांतिकारी साथियों द्वारा लिखी यह चारों किताबें जरूर पढ़े!

गूगल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की अफवाहों में न ही फँसे,यहाँ तक कि तमाम मीडिया संस्थानों के लिंक में भी संघ की शह पर झूठी बातें फैलायी जा रही।
आजाद की मां चाहती थीं कि वो संस्कृत पढें और प्रकाण्ड विद्वान बनें. संस्कृत की पढ़ाई करने के लिए 12 साल की उम्र में आजाद बनारस गए. जहां पं. शिव विनायक मिश्र उनके लोकल गार्जियन की तरह थे. शिव विनायक मिश्र खुद उन्नाव से थे और आजाद के दूर के रिश्तेदार भी थे. पं. शिव विनायक मिश्र नगर कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी थे और बनारस के बड़े कांग्रेस नेताओं में से एक थे.घरेलू परिवेश ने आजाद को प्रभावित किया।
उन दिनों देश में गांधीजी का असहयोग आंदोलन जोरों पर था जिसमें आजाद ने भी हिस्सा लिया. गिरफ्तारी हुई और 14 बेंतो की सजा मिली. आजाद को जितनी बार बेंतें पड़ीं उतनी बार उनके मुंह से भारत माता की जय और वंदे मातरम जैसे नारे निकले. उस वक्त आजाद की उम्र 15 साल थी. बनारस में सेंट्रल जेल से निकलने के बाद आजाद का लोकल कांग्रेस लीडरशिप ने बनारस के ज्ञानवापी में हुए अभिनंदन समारोह में सम्मान किया. इस सम्मान समारोह में मिश्र ने आजाद की तस्वीर खिंचवाई। यही एकमात्र आजाद की उपलब्ध तस्वीर है।
कांग्रेस और क्रांतिकारियों के रिश्ते सहयोगी के थे न कि शत्रुता के, उप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी क्रांतिकारियों के अनन्य सहयोगी थे, उनके पत्र ‘प्रताप’ का दफ्तर क्रांतिकारियों का अघोषित कार्यालय था,जहाँ आजाद और भगत सिंह अक्सर आते जाते थे,अक्सर जो घोषित रुप से कांग्रेसी होते थे,वह अघोषित रुप से क्रांतिकारियों के सहयोगी,क्योंकि दोनों का प्राथमिक उद्देश्य एक ही था आजाद भारत का सपना पूरा करना!
इसीलिए लाला लाजपतराय राय का बदला लेने के लिए भगत सिंह सांडर्स की हत्या करते हैं और आजाद जब रुस जाना चाहते हैं तो चंदा लेने नेहरू के पास जाते हैं,गाँधी-इरविन समझौते के तहत भगत सिंह को बचाने पर भी संभावना तलाशने की बात होती है।
आजाद के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सेंट्रल कमेटी मेम्बर वीरभद्र तिवारी संघ और हिंदू महासभा के प्रभाव से अंग्रेजो के मुखबिर बन गए थे और आजाद की मुखबिरी की थी. संगठन के क्रांतिकारी रमेश चंद्र गुप्ता ने उरई जाकर तिवारी पर गोली भी चलाई थी. लेकिन गोली मिस होने से वीरभद्र तिवारी बच गए और गुप्ता की गिरफ्तारी हुई और फिर 10 साल की सजा. रमेश चंद्र गुप्ता के बेटे विजय अग्रवाल ने बताया कि रमेश चंद्र गुप्ता ने अपनी आत्मकथा ‘क्रांतिकथा’ में इसका पूरा विवरण दिया है.
आजाद के शव को चुपचुपाते अंग्रेज अंतिम संस्कार कर देना चाहते थे, लेकिन उन्हें ढ़ूढते हुए वहाँ पं०नेहरु की पत्नी कमला नेहरू पहुँच गयीं, उनको पता था कि पं. शिव विनायक मिश्र आजाद के करीबी हैं इसलिए उनको भी बनारस बुलवाया गया. इलाहाबाद में रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार किया गया. फिर आजाद के अंतिम संस्कार में कमला नेहरू,पुरुषोत्तम दास टंडन सहित पूरी कांग्रेस उमड़ आयी थी।
आजाद की शहादत के बाद उनकी माता जगरानी देवी ने सामाजिक कृतघ्नता की बड़ी भारी कीमत चुकाई. तंगहाली के चलते उनको बहुत दिनों तक कोदो खाकर अपने पेट की आग बुझानी पड़ी. यह बात किसी तरह पंडित जवाहरलाल नेहरू को मालूम हुई तो उन्होंने उनके लिए 500 रुपये पेंशन बँधवाई.
सुधांशु बाजपेयी (प्रवक्ता उ०प्र० कॉन्ग्रेस)