शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय, बैंकाक मे विजिटिंग प्रोफ़ेसर के रूप मे अपनी सेवाएँ देनेवाले डॉ० शरद पगारे का ९३ वर्ष की आयु मे पिछले २८ जून को उनके निवास-स्थान इन्दौर मे निधन हो गया था। २९ जून को उनकी अन्त्येष्टिक्रिया जूनी, इन्दौर रीजनल पार्क मुक्तिधाम मे की गयी। उनका इलाहाबाद के साथ गहरा नाता था। वे मध्यप्रदेश के ऐसे पहले साहित्यकार थे, जिन्हेँ ‘व्यास सम्मान’ से आभूषित किया गया था। वे म० प्र० के उच्चशिक्षा-विभाग मे तीन दशक तक इतिहास का प्राध्यापन करते रहे।
५ जुलाई, १९३१ ई० मे खण्डवा (म० प्र०) मे जन्मे स्मृति-शेष डॉ० पगारे के साहित्यिक मित्र भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया– डॉ० शरद जी देश के एक प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। उन्हेँ उनके ऐतिहासिक उपन्यास ‘पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी’ पर के० के० बिरला फाउण्डेशन, दिल्ली का व्यास सम्मान से विभूषित किया गया था। वे शाहजहाँ प्रेमिका गुलारा बेग़म (पाँच भाषाओँ मे प्रकाशित), ‘औरंगज़ेब की महबूबा जैनाबादी’, ‘उजाले की तलाश’, ‘ज़िन्दगी के बदलते रूप’ इत्यादिक कई कृतियोँ के प्रणेता थे।
आचार्य पाण्डेय ने बताया– जब भी शब्दप्रयोग से सम्बन्धित कोई शंका होती थी तब वे मुझसे परामर्श करते थे। उनकी हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के अधिवेशनो मे सहभागिता महत्त्व की रहती थी। उन्हेँ सम्मेलन की ओर से भी सम्मानित किया जा चुका है। आचार्य पं० अपने अपूर्ण उपन्यास ‘तमंचा जान’ के लिखने से पूर्व डॉ० शरद पगारे से यथोचित परामर्श भी किया था। उन्होँने डॉ० पगारे के निधन को अपनी व्यक्तिगत क्षति बतायी है।