कल श्रद्धेय द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी का जन्मदिनांक (१ दिसम्बर) था।
उन दिनो, मै आगरा से प्रकाशित प्रतियोगितात्मक मासिकी ‘प्रतियोगिता विकास’ का सम्पादक था, तब मैने उस पत्रिका मे अँगरेज़ी-व्याकरण के स्तम्भ-लेखन का दायित्व जिन्हें सौंपा था, वे थे, डॉ० विनोद माहेश्वरी। वार्त्तालाप के क्रम मे उन्हीं से ज्ञात हुआ था कि वे विश्रुत बालसाहित्य-कवि सम्मान्य द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के सुपुत्र हैं।
डॉ० माहेश्वरी जी मुझे अपने निवास-स्थान पर ले गये थे। वहीं पर मेरी स्मृति-शेष सम्माननीय द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के साथ उनके कर्त्तृत्व के संदर्भ मे बालसाहित्य-विषयक एक संक्षिप्त भेंटवार्त्ता भी हुई थी। चूँकि मैने बालसाहित्य-विषय पर लगभग ६०० पुस्तकों (पद्य, गद्य :– शब्दकोश, व्याकरण, निबन्ध, उपन्यास, कहानी, नाटक, जीवनी, ज्ञान-विज्ञान आदिक) के प्रणयन किये हैं अत: एक सच्चे बालसाहित्यकार की रचनात्मक संवेदना के साथ सम्बद्ध होने मे कोई कठिनाई नहीं हुई थी।