
‘धन्धेबाज़ यूट्यूबर अमरनाथ सर’ उर्फ़ अमरनाथ गुप्ता विद्यार्थियोँ के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध होता हुआ!– बारह
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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यहाँ यूट्यूबर अमरनाथ गुप्ता के वीडियो के दो स्थिर चित्र हैँ :– पहला, अँगरेज़ी-भाषा का और दूसरा, हिन्दीभाषा का।
आश्चर्य होता है– जिसे हिन्दीभाषा और व्याकरण के ‘कखगघ’ का बोध नहीँ, वह ‘अँगरेज़ी-भाषा’ का ज्ञान कैसे बघार रहा है! आश्चर्य का विषय है।
अमरनाथ गुप्ता यूट्यूब मंच पर ‘विद्यातरु परिवार’ नामक ‘एजेंसी’ चलाता है, जिसकी दो दुकाने हैँ :– (१) हिन्दी भास्कर (पहले अमरनाथ गुप्ता ‘हिंदी भास्कर’ प्रयोग करता था; हमारे धारावाहिक ‘खुलासा’ के बाद से अब अपनी उसी ‘हिंदी’ मे पंचमाक्षर लगा दिया है।) (२) ज्ञान भास्करम्। यहाँ अमरनाथ गुप्ता के एजेंसी-सहित दोनो दुकानो के नाम व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध और अनुपयुक्त है। चूँकि उक्त वीडियोबाज़ विद्यार्थियोँ को हिन्दीभाषा एवं व्याकरण बताता-लिखाता है इसलिए उसे विद्यार्थियोँ के लिए भविष्यघातक नहीँ बनना चाहिए।
हम अब अँगरेज़ी-दाँ अमरनाथ गुप्ता के अँगरेज़ी-भाषाज्ञान को व्याकरण की कसौटी पर परखेँगे।
आप अब ‘एकाक्षी-सा’ दिखता और लगता, पटरे पर आँखेँ मूँदे ध्यानावस्था मे बैठे हुए, अमरनाथ गुप्ता के चेहरे के ऊपर अँगरेज़ी मे अंकित वाक्य को देखेँ :–
Why Shiv ji is called Adiyogi
उपर्युक्त वाक्य एक सिरे से अशुद्ध है, जिसके वाक्यान्त मे किसी विरामचिह्न का भी प्रयोग नहीँ है। अमरनाथ गुप्ता एक ऐसा वीडियोबाज़ है, जो ‘नख-शिख’ शातिर-चरित्र का धनी है। वह अपनी लफ्फ़ाज़ी के लिए चर्चित रहा है, जिसे उसके सारे वीडियो देखकर समझा जा सकता है। हम अब अपने मूल बिन्दु पर आयेँगे। अँगरेज़ी-वाक्य गठन करने के लिए सबसे पहले ‘काल’, ‘शब्दभेद’ तथा ‘वाक्यभेद’ का बोध होना चाहिए।
वास्तविकता तो यह है कि पहले ‘अनएकेडमी’ नामक कोचिंग-केन्द्र मे सामान्य हिन्दी/हिन्दीभाषा पढ़ानेवाले अमरनाथ गुप्ता ने अब अपना ‘धन्धालय’ शुरू कर दिया है।
अँगरेज़ी-व्याकरण के अन्तर्गत जितने भी प्रकार के वाक्य हैँ, उनमे से अँगरेज़ी-मास्टर अमरनाथ गुप्ता-द्वारा लिखी गयी ऊपर की शब्दावली किसी के अन्तर्गत नहीँ आती; क्योँकि वाक्य की दृष्टि से उसका कोई अर्थ ही नहीँ है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो उसने किसी अन्य धार्मिक ढोँगी के वीडियो से उक्त वाक्य की चोरी ज्योँ-की-त्योँ कर ली हो।
यहाँ उसके विद्यार्थियोँ को जानना होगा कि प्रश्नात्मक वाक्य और प्रश्नात्मक-नकारात्मक वाक्य गठन करने से पूर्व साधारण वाक्य के गठन की व्याकरणात्मक जानकारी अनिवार्य है; क्योँकि उस प्रक्रिया के अन्तर्गत ही शेष प्रकार के वाक्योँ का गठन किया जाता है।
यहाँ उक्त वाक्य-गठन करने के लिए दो प्रक्रियाओँ से ग़ुज़रना होगा; इसप्रकार से–
(१) Shiv ji is called Adiyogi.
(२) Is Shiv ji called Adiyogi?
उल्लिखित दोनो वाक्योँ के गठन के पश्चात् तीसरा और अन्तिम वाक्य होगा :–
(३) Why is Shiv ji called Adiyogi?
हो सकता है, अमरनाथ गुप्ता ‘कल’ की तारीख़ मे ‘उर्दू-दाँ’ भी बन जाये। हमारी उसकी इस विशेषज्ञता पर भी नज़रेँ बनी रहेँगी।
यदि हमे उक्त शुद्ध वाक्य का व्यवहार करना होता तो हम अपने विद्यार्थियोँ को बताते :–
Why is Lord Shiwa known as Aadiyogi? (v और w तथा a और aa का कहाँ और क्योँ प्रयोग होता, हम यह भी बताते।)।
अमरनाथ गुप्ता ने अपने वीडियो से हिन्दीभाषा-शिक्षण करनेवाले विद्यार्थियोँ को ग़लत लिखे गये अँगरेज़ी शब्दोँ का जो वाक्यात्मक अनुवाद किया है, वह भी अशुद्ध और अनुपयुक्त है। जब आप इस चित्र का स्पर्श करेँगे तब सबसे नीचे नीली स्याही से घेरे हिन्दी-अनुवाद को समझेँगे। उसने अनुवाद किया है, “भगवान् शिव क्योँ कहे जाते हैँ आदियोगी”। अनुवादक की भूमिका मे दिख रहा, धन्धेबाज़ यूट्यूबर अमरनाथ गुप्ता की न तो शुद्ध अँगरेजी-वाक्य गठित करने की क्षमता है और न ही हिन्दी-अनुवाद करने की। व्याकरण की दृष्टि से दो प्रकार के वाक्य गठित होँगे :–
(१) शिव जी आदियोगी क्योँ कहे जाते हैँ?
(२) शिव जी को आदियोगी क्योँ कहा जाता है?
बाज़ारू मास्टर अमरनाथ गुप्ता-द्वारा इसी वीडियोवाले स्थिर चित्र मे सबसे नीचे से दूसरी पंक्ति मे लिखे गये उन शब्दोँ को देखेँ, जिन्हेँ गुलाबी रंग से घेरा गया है। वे सभी शब्द अशुद्ध हैँ; क्योँकि निरर्थक हैँ। हमे उन तीनो शब्दोँ को सार्थक रूप देने के लिए एकसाथ (मिलाकर लिखना होगा।) वा फिर उन्हेँ योजित करके लिखना होगा; क्योँकि अमरनाथ गुप्ता ने अपने विद्यार्थियोँ को अशुद्ध और आपत्तिजनक ज्ञान कराया है। यहाँ तीनो शब्दोँ मे कारकीय और सामासिक दोष हैँ।
हमने यहाँ उक्त शब्दोँ को शुद्ध किया है, देखेँ और समझेँ–
◆ दक्षिणभारतयात्रा
◆ दक्षिणभारत-यात्रा
◆ दक्षिण-भारतयात्रा
◆ दक्षिण-भारत-यात्रा
◆ दक्षिण-भारत की यात्रा
विद्यार्थी इनमे से किसी का प्रयोग कर सकते हैँ।
(क्रमश:)
(आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ फ़रवरी, २०२५ ईसवी।)