‘अतिवादी’ राष्ट्रवादियों से बचें!

एक और ‘भारत’ के साथ बँटवारे का बीभत्स खेल शुरू हो गया है। पहली ओर हिन्दू है और दूसरी ओर मुसलमान। भारतवासियों का मानसिक स्तरवर्द्धन करने के स्थान पर उनके मन-बुद्धि में ‘साम्प्रदायिकता’ का विष-बीज-वपन किया जा रहा है।

   डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
 (प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

जिस प्रकार कोई भी ‘सम्प्रदाय’ किसी की निजी सम्पदा नहीं है उसी प्रकार ‘राष्ट्रीयता’ भी किसी की निजी नहीं है। कोई यह प्रदर्शित करना चाहे कि राष्ट्रीयता उसी की रक्तवाहिनियों में उबाल मार रही है तो यहउसके ‘एकपक्षीय’ संज्ञान का निकृष्ट दृष्टान्त है।
इससे बढ़कर ‘राष्ट्रीय’ विडम्बना और क्या हो सकती है कि राष्ट्रीयता के नाम पर किसी ‘सम्प्रदाय-विशेष’ को ‘कठघरे’ में ला खड़ा किया जाए और अन्य (हिन्दू) सम्प्रदाय को महा राष्ट्रभक्त बताकर समादृत किया जाये। कोई भी ‘बलप्रयोग’ करके राष्ट्रीयता का परचम नहीं लहरवा सकता। राष्ट्रीयता का ‘अतिरिक्त जोश’ मार रहा हो तो ऐसे वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है, जिससे प्रभावित होकर देश का एक-एक व्यक्ति “वन्दे मातरम्” का गायन करने के लिए तत्पर हो जाए। ‘घृणा’ का प्रचार-प्रसार कर अपने उल्लू सीधा करनेवाले मुखौटेधारियों से आज देश की सम्प्रभुता की रक्षा करने की आवश्यकता है। पराधीन राष्ट्रीयता का औचित्य क्या है?
आप ऐसा वातावरण तैयार कीजिए, जिससे प्रभावित होकर सभी समवेत स्वर में ‘भारतीयता’ का परिचय दे सकें। हर समय किसी एक के पीछे पड़ना, राष्ट्रीयता के मूल में ‘मट्ठा’ डालने के समान है।