स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर मशहूर अदाकारा एवं समाज सेविका प्राची अधिकारी ने कहा कि भारत तो सत्य को पा लेने की प्यास का नाम है । उस सत्य को, जो हमारी चेतना की तहों में सोया है। वह जो हमारा होकर भी हमारे द्वारा भुला दिया गया है। पावन संस्कृति और देशप्रेम में फ़ना होने का स्मरण ही भारत के प्रति सच्ची आस्था का प्रतीक है।
उन्होंने आगे कहा कि पृथ्वी के इस भूभाग में मनुष्य ने जो सपने देखे, उस सपने की माला में कितने गौतम बुद्ध, कितने महावीर, कितने कबीर, कितने नानक अपने प्राणों को न्यौछावर कर गए। वह सपना मनुष्य का, मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है। उस सपने को हमने एक नाम दे रखा था। हम उस सपने को भारत कहते हैं। भारत कोई भूखंड नहीं है। न ही कोई राजनैतिक इकाई है, न ऐतिहासिक तथ्यों का कोई टुकड़ा है। न धन, न पद, न प्रतिष्ठा की पागल दौड़ है।
कहा कि हमारी संस्कृति रही है कि ‘अमृतस्य पुत्र:! हे अमृत के पुत्रो!’ जिन्होंने इस उद्घोषणा को सुना, वे ही केवल भारत के नागरिक हैं। भारत में पैदा होने से कोई भारत का नागरिक नहीं हो जाता है। कुछ लोग दुर्घटना की तरह भारत में इसके विपरीत भी पैदा हो गए हैं। मैं चाहती हूं कि भारत अपनी आंतरिक गरिमा और गौरव को, अपनी हिमाच्छादित ऊंचाइयों को पुन: पा लें। क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मनुष्यता का भाग्य जुड़ा हुआ है। अगर भारत अंधेरे में खो जाता है, तो आदमी का कोई भविष्य नहीं है। और अगर हम भारत को पुन: उसके पंख दे देते हैं, तो हम उनको भी बचा लेते हैं, जो आज सोए, हैं, लेकिन कल जागेंगे जो आज खोए हैं, कल घर लौटेंगे। क्योंकि हमने मनुष्य के भीतर जैसे दिए जलाए थे, जैसे फूल हमने उसके भीतर खिलाए थे, दुनिया में वैसा कोई भी नहीं कर सका था। यह कोई दस हजार साल पुरानी सतत् साधना है। हमने इसके लिए और सब कुछ खो दिया। हमने इसके लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया।