शोध का विषय : नरेन्द्र मोदी का मिथ्यावादी व्यक्तित्व-कर्त्तृत्व

  • ‘नरेन्द्र मोदी’ नामक जीव को ऊपरवाले ने बहुत फ़ुर्सत से बनाया है।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


देश के राज्यों में पढ़े-लिखे युवा बेरोज़गार चार हज़ार-पाँच हज़ार की नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं और मुख्य मन्त्रियों की कार्यकुशलता पूर्णत: सन्दिग्ध दिख रही है। किसान-वर्ग संत्रस्त जीवन जीते हुए, आत्महत्या करते हुए ‘जय किसान’ के यथार्थ को कोसता आ रहा है। निर्दोष सैनिकों की हत्याएँ और शासन की किंकर्त्तव्यविमूढ़ता से उद्विग्न और आक्रोशित होकर, सैनिकों की सन्तानें, भाई-भतीजे अब प्रमुख सत्ताधारी से प्रश्न कर रहे हैं : कब तक हमारे पिता, चाचा, भाई मारे जाते रहेंगे? कोरा आश्वासन देने की जगह पर तुरन्त कार्रवाई करने का आदेश करने से पीछे क्यों हट रहे हैं, नरेन्द्र मोदी जी? कब तक शहीदों के शवों को तिरंगे में लिपटवाकर फूल-माला चढ़ाते रहोगे? ‘एक के बदले ग्यारह सिर’ लाने का वादा उड़न-छू कैसे हो गया? ‘जय जवान’ का उद्घोष अब देश को मुँह चिढ़ा रहा है।
पिछले चार वर्षों से काग़ज़ात पर समाज का ऐतिहासिक विकास होता आ रहा है। उन काग़ज़ात की गठरियों को देखकर ऐसा लगता है, मानो मर्त्त्यलोक से देवलोक तक सशरीर जाने की ‘हिन्दुत्व’ की सीढ़ी ‘मोदी’ ने लगा दी है और ‘त्रिशंकु’ की तरह से सर्कसी अन्दाज़ में नरेन्द्र मोदी ‘देवमुक्त शासन’ चिंग्घाड़ते हुए समाचार-चैनलों पर दिखेंगे।
प्रश्न है : नरेन्द्र मोदी इन आधारमूलक विषयों पर मौन क्यों धारण किये हुए हैं? चुनाव के समय अधिकतर राज्यों में अपनी पीठ थपथपाते हुए, तत्कालीन सरकारों की कार्य-संस्कृति पर अभद्र शब्दों की बौछारें करते हुए, अपनी पार्टी के सत्ता में आ जाने पर नरेन्द्र मोदी ने जिन-जिन आश्वासनों का पिटारा खोला था, उन्हें अपने शासनकाल के चार सालों की कार्यावधि में भी पूर्ण न कर सके और अपनी आदत से मज़बूर रहनेवाले नरेन्द्र मोदी देश के पूर्वोत्तर राज्यों में जाकर वहाँ की जनता को सब्ज़बाग़ दिखाने से पीछे नहीं हैं।
आश्चर्य है, वे महोदय किस मिट्टी के बने हुए हैं कि उन्हें अपने ऐसे कर्मों पर अपराध-बोध तक नहीं होता।