प्रयागराज में प्रतिदिन एक साहित्यकार का आकस्मिक निधन होता आ रहा है, जो कि शोचनीय विषय है। उसी क्रम में एक वयोवृद्ध सन्त-साहित्यकार डॉ० राजाराम शुक्ल का कल (१५ मई) नागवासुकि, दारागंज, प्रयागराज-स्थिति उनके निवासस्थान पर निधन हो गया था, जिनकी अन्त्येष्टि आज दारागंज-स्थित श्मशानघाट पर की गयी।
डॉ० राजाराम शुक्ल दस के कृतियों के प्रणेता थे, जिनमें ‘मारिषा’, ‘कैवल्य’, ‘गंगायतन’, ‘पाँखुरी’, ‘अतृप्त’ आदिक पुस्तकें हैं।
डॉ० शुक्ल ने नागवासुकि, दारागंज-स्थित गंगातट पर निवास करते हुए, अपनी चर्चित कृति ‘गंगायतन’ नामक महाकाव्य से अतीव प्रसिद्धि प्राप्त की थी।
ऐसे महान् शब्दशिल्पी पं० राजाराम शुक्ल के देहावसान पर ‘सर्जनपीठ’ की ओर से आज एक आन्तर्जालिक शोकसभा का आयोजन किया गया, जिसमें उनके सारस्वत मित्रों, उनकी रचनाओं को पढ़ने-समझने तथा उनसे संवाद करनेवालों ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि व्यक्त की थी।
शाइर (शायर अशुद्ध है।) तलब जौनपुरी ने बताया, ‘वे मेरे सरपरस्त थे। वे एक सन्त-साहित्यकार थे। मैं जिन चन्द साहित्यकारों से मिला करता हूँ, उनमें वे प्रमुख थे।”
कवि मुकुल मतवाला ने कहा,”मृदु व्यवहारसम्पन्न डॉ० शुक्ल प्रयाग के बहुचर्चित कवियों में से एक थे। उनकी साहित्यसाधना उच्च कोटि की थी।”
शोकसभा-आयोजक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “डॉ० शुक्ल काव्यशास्त्र के ज्ञाता थे। मेरा उनसे काव्यांग :– रस, छन्द तथा अलंकार के विशिष्ट पक्षों पर अनेक बार संवाद हो चुका था। काव्य के विषयों- उपविषयों पर उनका गहन चिन्तन लक्षित होता है।”
समाजशास्त्री डॉ० रवि मिश्र ने कहा, “भारतीय संस्कृति की गहरी समझ रखना और उसे समझना डॉ० शुक्ल की पहचान थी, इसीलिए उन्होंने अपने साहित्य में अध्यात्म और संस्कृति को प्रमुखता दी है।”
कवयित्री उर्वशी उपाध्याय ने बताया,”भारतीय रेलवेसेवा से वरिष्ठ अनुभाग-अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य के प्रति अपना जीवन समर्पित करनेवाले डॉ० राजाराम शुक्ल सादगी के समर्थक थे।”