राष्ट्र को संबोधित करते हुए अपने विदाई भाषण में राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहाबी कि केवल एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों, विशेषकर वंचित और कमजोर वर्गों की, भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है । भारत की आत्मा बहुलतावाद और सहिष्णुता में निवास करती है और राष्ट्र अपनी शक्ति सहिष्णुता से प्राप्त करता है । राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने कहा है कि भारत का संविधान ही पिछले पचास वर्षों के उनके सार्वजनिक जीवन का पवित्र ग्रंथ रहा है । लोक विमर्श शारीरिक और शाब्दिक हिंसा सहित सभी प्रकार की हिंसा से मुक्त होना चाहिए ।
महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि वे भारत को एक ऐसे समावेशी राष्ट्र के रूप में देखते थे जहां जनसंख्या का प्रत्येक वर्ग समानता में जीता हो और उसको समान अवसर प्राप्त हों । विश्वविद्यालयों को रटी-रटाई शिक्षा देने की जगह छात्रों में जिज्ञासा पैदा करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे वह अन्वेषण की दिशा में बढ़ें और देश के लिए कुछ सकारात्मक परिणाम भी मिल सकें । कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मनोनीत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी और अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे । इस अवसर पर उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने नवाचार, शिक्षा और अनुसंधान में श्री मुखर्जी की दिलचस्पी पर प्रकाश डाला । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को उच्चकोटि का विद्वान और अत्यधिक सरल व्यक्ति बताया । श्री रामनाथ कोविंद का दिल स्वागत करते हुए प्रणब दा ने कहा कि कल से मैं भी गौरवशाली भारत का एक आम नागरिक बन जाऊँगा । मैं श्री रामनाथ कोविंद के कार्यकाल के लिए सफलता और उनके लिए प्रसन्नता की कामना करता हूँ ।