‘सनातन संस्कृति’ को ललकारता ‘आदिपुरुष’!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


इन दिनो एक ऐसी फ़िल्म जन-जन के दिलो दिमाग़ को बेचैन किये हुए है। ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ के बाद ‘द केरल स्टोरी’ का असर अभी ख़त्म होने की शुरूआत होने ही वाली थी कि वॉलीवुड’ मे ‘आदिपुरुष’ फ़िल्म को दिखाकर एक और धमाका कर दिया गया है, जिसे आदित्यनाथ योगी, पुष्कर धामी, मनोहरलाल खट्टर तथा भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो चुका है। इसके बाद भी ‘आदिपुरुष’ सनातन हिन्दू की जिस तरह से एक-एक पर नोचता हुआ, ‘दिव्यांग’ करता जा रहा है, वह नितान्त निर्लज्जतापूर्ण कृत्य है।

कथित फ़िल्म मे संवाद, चरित्र-चित्रण, रूप और वस्त्रसाज-सज्जा को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, उसके प्रति जिस प्रकार का जनाक्रोश हिन्दूवादी संघटनो मे दिखना चाहिए, वह गधे के सींग की तरह से ग़ायब है।

इस अन्वेषणात्मक लेख मे भाषाविज्ञानी और उन्मुक्त चिन्तक ‘आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय’ ने बारीक़ी से विश्लेषण किया है। आप पढ़ें, समझें तथा अनुभव करें।

फ़िल्म-लेखकों और निर्माताओं को इस दिशा मे गम्भीरता बरतनी होगी कि उसका शीर्षक क्या है। किसी भी रचना वा लेखन का आकर्षण ‘शीर्षक’ होता है; क्योंकि शीर्षक ही लेखन के केन्द्र मे रहता है, जिसे समझकर व्यक्ति को लेखन के अन्तर्गत किस प्रकार की विषयवस्तु है, इसका अनुमान होता है। इधर, कुछ वर्षों से हमने कई फ़िल्मो के शीर्षक देखे थे और उससे सम्बन्धित फ़िल्मपोस्टर भी, जिन्हें किसी समुदाय-विशेष की भावनाओं पर प्रहार करता हुआ बताया जाता रहा तो किसी जाति-विशेष पर। इन विषयों को लेकर देश मे आतंकी और विध्वंसक वातावरण बनाया जाता रहा है। इसके पीछे बहुसंख्य वे लोग होते हैं, जिन्हें सम्बन्धित विषयों की सर्वथा समझ नहीं होती है; परन्तु विरोध करने के लिए उन्हें जुटाया जाता रहा है, इसलिए वे विरोध करने के लिए समूची भीड़ का एक हिस्सा बन जाते हैं।

दूसरी ओर, देश मे कुछ लोग ऐसे हैं, जो अपने कुकृत्यों से समाज मे कुछ ऐसा संदेश देना चाहते हैं कि समाज मे ‘अलगाव’ की स्थिति उत्पन्न हो जाये और देश की सुख-शान्ति विध्वंसक आन्दोलन की भेंट चढ़ जाये। इसमे उस सरकार का विशेष योगदान है, जो केवल और केवल ‘धर्म’ के नाम पर देश मे घृणा का भाव फैलाती आ रही है; क्योंकि उसे मालूम है कि उसकी अयोग्यता और कुपात्रता को देश की जनता अब समझने लगी है, इसलिए ‘हिन्दू’, ‘हिन्दुत्व’, ‘टीपू सुलतान’, ‘ज़िन्ना’, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’, ‘नफ़्रती गैंग’, ‘जय श्री राम’, ‘बजरंग बली’, ‘मन्दिर-मस्जिद’, ‘भारत-पाकिस्तान’, ‘हिन्दू-मुसलमान’, ‘लव-जिहाद’ आदिक के ज़ह्र उगलते रहो और भारतीय समाज को बाँटते रहो। ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरल स्टोरी’ जैसी विवादास्पद फ़िल्म का असर जैसे ही समाप्त हो रहा था वैसे ही ‘हिन्दूवादी सरकार’ मे हिन्दुओं के धर्मग्रन्थों को घोर अपमानित करनेवाला एक और उपक्रम रच दिया गया।

इधर, कुछ समय से एक व्यक्ति का ‘ग़ुलाम मीडिया’ के माध्यम से ज़रूरत-से-ज़ियादा महिमा-मण्डन किया जाता रहा है, जिसका नाम ‘मनोज मुंतशिर’ है। पहले उस व्यक्ति के नाम का अर्थ समझ लें। मनोज का अर्थ ‘कामदेव’ और ‘मुंतशिर’ का ‘बिखरा हुआ’ है। उस व्यक्ति का चरित्र बेशक, बिखरा हुआ है, तभी उसने ‘वाल्मीकि रामायण’ (‘बाल्मीक’, ‘वाल्मीक’ तथा ‘वाल्मीकी’ अशुद्ध हैं।), ‘श्री रामचरितमानस’, ‘कम्बरामायण’, ‘अध्यात्मरामायण’, ‘आनन्दरामायण’ जैसे शताधिक रामायण-विषयक कृतियों के कथानक का घोर अपमान किया है।

‘आज तक’ समाचार-चैनल पर श्वेता सिंह ने जब उससे भाषा-विषयक प्रश्न किये थे तब उस जाहिल और ख़ुद को ‘गीतकार’ कहनेवाला मनोज मुंतशिर ने कहा, “भाषा बहुत ज़रूरी नहीं है।” फिर कहता है, “भाषा ‘अज़ीम’ (शीर्षस्थ) है।” उसके बाद बोलता है, “भाषा ‘ग़ैर-जरूरी’ है।” इसे कहते हैं, ‘आचरण मे दोगलापन का दिखना’।

उसी मनोज मुंतशिर ने अभी हाल ही मे एक फ़िल्म के संवाद लिखे हैं, जो बेहद बाज़ारू हैं वा यों कहें, लगता है, किसी लम्पट-मवाली ने लिखे हैं। उस ‘फ़िल्म’ का नाम है, ‘आदिपुरुष’। उस फ़िल्म मे ‘राम’ को ‘आदिपुरुष’ बताया और दिखाया गया है, जबकि यह दिग्दर्शन ‘सत्य’ से परे है। ‘आदिपुरुष’ नामकरण करनेवालों को सम्भवत: यह बोध न हो कि ‘आदिपुरुष’ का शाब्दिक अर्थ क्या है। ‘आदिपुरुष’ मे दो शब्दों का योग है :― (१) आदि (२) पुरुष। आदि का अर्थ ‘आरम्भिक’ है; अर्थात् ‘मूल’ और पुरुष का अर्थ है, ‘पौरुष से युक्त’। ऐसा मूल पुरुष, जो पौरुषयुक्त हो। हिन्दुओं के प्राचीन ग्रन्थों मे ‘मनु’ को ‘आदिपुरुष’ कहा गया है, जिससे ‘मनुज’ और ‘मनुष्य’ शब्द का सर्जन होता है। ऐसे मे, प्रश्न का उठना स्वाभाविक है :– क्या राम को आदिपुरुष कहा जा सकता है? ‘विष्णु’ को भी ‘आदिपुरुष’ कहा गया है और शंकर को भी।ऐसे मे, वास्तव मे, कौन ‘आदिपुरुष’ है, इसे लेकर धार्मिक पुराण-ग्रन्थों मे ही अन्तर्विरोधी उल्लेख हैं। वस्तुत: आदिपुरुष वह कहलाता है, जिसकी सृष्टि मे ‘पुरुष’ के रूप मे सर्वप्रथम उत्पत्ति हुई हो और उससे किसी वंश का आरम्भ हुआ हो। इस दृष्टि से ‘मनु’ को ही ‘आदिपुरुष’ कहा जायेगा, जिनकी उत्पत्ति के अनन्तर ‘मनुष्य-वंशावली’ आरम्भ हुई थी। राम तो त्रेतायुग मे पैदा हुए थे, उससे पूर्व सत्ययुग रहा था। त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग तो बाद के युग रहे हैं। ऐसे मे, ‘राम’ को ‘आदिपुरुष’ कहना हास्यास्पद स्थिति कहलायेगी।

हम पहले ‘विवादास्पद’ फ़िल्म ‘आदिपुरुष’ के संवाद पर विचार करेंगे। कथित संवादलेखक मनोज मुंतशिर को यही नहीं बोध कि देव-देवी ‘संस्कृतभाषा’ मे संवाद किया करते थे, इसीलिए संस्कृत को ‘देववाणी’ की संज्ञा दी गयी है। संस्कृतभाषा सहज नहीं है, इसलिए उनके व्यक्तित्व-कर्त्तृत्व से परिचय कराने के लिए सुसंस्कृत ‘देवनागरी लिपि’ और हिन्दीभाषा को माध्यम बनाया गया था; परन्तु शेरो शाइरी करनेवाला मनोज मुंतशिर ने रामायणकालीन वातावरण से परिचय कराने के लिए जिस सतही भाषा का आश्रय लिया है, उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाये, अत्यल्प है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो अल्पवेत्ता ‘मुंतशिर’ सनातन भारतीय संस्कृति के क ख ग घ तक से परिचित नहीं है। यही यदि किसी मुसलमान व्यक्ति ने संवादलेखन किया होता तो चारों ओर से ‘सनातन हिन्दू’ की तलवारें म्यान से बाहर आ चुकी रहतीं और बजरंग दल के तथाकथित भक्त देशभर मे ताण्डव कर रहे होते। ‘आदिपुरुष’ फ़िल्म का संवादलेखक वह व्यक्ति है, जो वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का भक्त बना रहा है और जातीय उपाधि से ब्राह्मण रहा है। उसका नाम ‘मनोज मुंतशिर शुक्ला’ (‘शुक्ल’ शुद्ध है।) है। वह उत्तरप्रदेश के अमेठी जनपद-अन्तर्गत गौरीगंज का रहनेवाला है।

आश्चर्य तो तब होता है जब १६ जून से देशभर मे दिखाये जा रहे उस अति विवादास्पद फ़िल्म को उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड तथा हरियाणा के मुख्यमन्त्रियों :– आदित्यनाथ योगी, पुष्कर धामी तथा मनोहरलाल खट्टर-सहित भारतीय जनता पार्टी के कई दिग्गज नेताओं का समर्थन प्राप्त है। उस फ़िल्म मे राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान् आदिक का चरित्र-चित्रण करने मे घोर लापरवाही हुई है; परन्तु भारतीय जनता पार्टी के राजनेता उस फ़िल्म का महिमामण्डन करते हुए दिख रहे हैं।

इस पर तुर्रा यह कि फ़िल्म का संवादलेखक मनोज मुंतशिर तर्क देता है,”क्या अन्त मे सत्य की असत्य पर जीत नहीं हुई? अगर हमने ऐसा दिखाया है तो हम आपके अपराधी हैं और हम आपसे क्षमा माँग लेते हैं। अगर हमने यह दिखाया है तो कैसे दिखाया है; किस ‘क्रिएटिव लिवर्टी’ के साथ दिखाया है।” फिर वह निर्लज्ज संवादलेखक कहता है, “आपने जो बाबा तुलसीदास को थोड़ी-सी स्वतन्त्रता दी, तो थोड़ी-सी मुझे भी स्वायत्तता दें और समझें कि मनोज मुंतशिर ने कहानी को ऐसे देखा।”

अब हम आपको ‘आदिपुरुष’ फ़िल्म के उन बाज़ारू संवादों से अवगत कराते हैं, जिनसे रामायण की मर्यादा का मर्दन हुआ है और सनातन हिन्दू-हिन्दूराष्ट्र की बात करनेवाले लोग अभी तक जिस स्तर की मुखरता के लिए ‘विश्वप्रसिद्ध रहे हैं, उसका प्रदर्शन करते नहीं देखे जा रहे हैं।

आइए! हम आपको घोर आपत्तिजनक संवादों के साथ जोड़ते हैं :–

‘आदिपुरुष’ फ़िल्म का संवाद : एक दृष्टि मे
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◆ जब बात सही है तो फर्क नहीं पड़ता, किसने कही है?

◆ राम अवतारी है; पर एक दशानन दस राघव पर भारी है।

◆ आप काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं।

◆ तेरी बुआ का बगीचा है क्या, जो हवा खाने चला आया? (रावण हनुमान् से कहता है।)

◆ मरेगा बेटे।

◆ जली न? और भी जलेगी! (मेघनाद बोलता है।)

◆ कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग तेरे बाप का, जलेगी भी तेरे बाप की। (हनुमान् रावण से कहता है।)

◆ बोल दिया, जो हमारी बहनो को हाथ लगायेंगे, हम उनकी लंका लगायेंगे।

◆ मै इक्ष्वाकु-वंश का राघव, आपकी छाती में ब्रह्मास्त्र गाड़ने को विवश हूँ। (राम कहता है।)

◆ रघुपति राघव राजा राम बोल और अपनी जान बचा ले, वरना आज खड़ा है, कल लेटा हुआ मिलेगा। (रावण को ललकारते हुए अंगद कहता है।)

◆ चुपचाप अपना तमाशा समेट और निकल अपने बन्दरों को ले कर! मेरे एक सपोले ने तेरे शेषनाग को लम्बा कर दिया।

◆ गाड़ दो भगवाध्वज, भारत की बेटी!

ये तो रहे फ़िल्म के संवाद। अब विचार करते हैं, पात्रों के वस्त्र और रूप-विन्यास पर। हमे नहीं भूलना चाहिए कि फ़िल्म का नाम 'आदिपुरुष' है, इसलिए सारी व्यवस्था आदिकालीन दिखनी चाहिए थी। फ़िल्म का निर्देशक ओम राउत भी इस फ़िल्म से उपजी विसंगतियों के लिए उत्तरदायी है। रावण के पास अद्भुत 'पुष्पक विमान' था, जिसकी विशेषता थी कि सभी के बैठ जाने के बाद भी एक स्थान रिक्त रहता था। उस फ़िल्म मे पुष्पक विमान के स्थान पर 'चमगादड़', 'रावण का स्नेक मसाज' तथा स्वर्णमयी लंका को कालिमायुक्त लंका दिखाकर निर्देशक ओम राउत ने अपनी भद्द पिटवा ली है। इतना ही नहीं, लंकेश रावण-जैसे प्रकाण्ड पण्डित और तेजस्वी मुखमण्डलवाले को 'हब्शी' जैसा दिखाकर ओम राउत ने अपने भीतर की असभ्यता प्रकट कर दी है। राउत को मालूम नहीं, रावण शिव का अनन्य भक्त था और अपने मस्तक पर भस्म वा चन्दन से रचित 'त्रिपुण्ड' (त्रिरेखीय) धारण करता था।

हनुमान्-जैसे प्रमुख पात्र के संवाद इतने सतही हैं, जिसकी जितनी भी भर्त्सना की जाये, अत्यल्प है। कथित निर्देशक ओम राउत को यह बोध नहीं था कि हनुमान् एक सुसंस्कृत आचरण को जीनेवाले कालजयी पात्र रहे हैं। वे सामवेद के ज्ञाता थे और उनके लिए 'गलीछाप' संवाद और रूप-वस्त्रविन्यास की व्यवस्था की गयी है।
   
अब नायक पात्र 'राम' और सहनायक लक्ष्मण की बात करते हैं। अभी तक दोनो के जितने भी चित्र सामने आये हैं, उनमे वे मूँछरहित हैं; उनके चेहरे पर बाल नहीं हैं, फिर 'आदिपुरुष' के निन्दनीय निर्देशक को क्या सूझा, जो दोनो को 'मूँछसहित' दिखा दिये हैं? इतना ही नहीं, राम के वनागमन के समय उनके पैरों मे चप्पलें पहना दी हैं। तब एकमात्र 'खड़ाऊँ' का व्यवहार किया जाता था।

अब उस दृश्य को समझें, जिस समय रावण सीता का अपहरण कर रहा होता है। 'आदिपुरुष' मे मन्दबुद्धिवाले निर्देशक ने दिखाया  है :– सीता छद्मवेशी रावण को जैसे ही भिक्षादान करने के लिए बढ़ती हैं वैसे ही आँखों को चकाचौंध करनेवाला प्रकाश होता है और सीता रावण के पीछे-पीछे चल पड़ती हैं।

इतना सब बेहयाई के साथ घटाने के बाद निर्माता, निर्देशक तथा संवादलेखक बोलते हैं कि उनकी फ़िल्म ने पहले ही दिन ₹८५ से ९० करोड़ की कमाई कर ली है तो उन्हें यह भी जानना चाहिए कि आज का दर्शक 'शास्त्रीय नृत्य' की तुलना मे 'नाइट क्लब' के 'कैबरे डांस' और 'नंगा नाच' को देखना अधिक पसन्द करता है।

निस्सन्देह, 'आदिपुरुष' एक कार्टून फ़िल्म से अधिक कुछ नहीं हैं, जिसे बच्चे देखकर अपना भरपूर मनोरंजन कर सकते हैं।