मूल अधिकारों पर जमी धूल

राघवेन्द्र कुमार-


लोकतंत्र के महाग्रंथ भारतीय संविधान में मूल अधिकारों के खाने में एक समता का अधिकार रखा हुआ है । निद्रा देवी के थोड़ी जल्दी जाने के कारण मन में कुछ इच्छा जगी कि आज क्यों न समता के अधिकार की सुध ले ली जाए । जब मैं मूल अधिकारों के पास गया तो देखा वहाँ बड़ी धूल जमी हुई थी । खैर मैने धूल हटाई और अपने गाँव के बाहर रहने वाली काकी के अधिकार ढूढने लगा । यहाँ तो था कि सब समान हैं, लेकिन कैसे ? काकी तो घास के सूखे तिनकों से रोटियाँ सेंकती है और अक्सर तो उसे खाने के लिए किसी की दया की ही जरूरत पड़ती है, पर यहाँ दिल्ली में मैने देखा कि सैकड़ों लोगों का निवाला गलियों में बिखरा रहता है । ये कैसी समता है ? वैसे बड़े – बड़े कानूनी खिलाड़ी समता की चटनी बनाकर उसे चटाने की बात करते हैं, अब चटनी तो चटनी राह में ही खत्म हो जाती है । फिर से बनवाकर भेजने की बात कहकर पर्दा गिरवा देते हैं और कहते हैं बस एक मौका और दे दो !