भींनी-भींनी बदरिया छाई मोरी नगरी

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- 

भींनी -भींनी बदरिया छाई मोरी नगरी।

टूटी – फ़ूटी अटरिया की मोरी बखरी।।
करम करता हूँ भाग्य फिर भी स्थिर बना,
मेरे जीवन में छाया कुहासा घना।
मेरी मासूमियत है बिखर सी रही,
अँधेरा घिरा है मेरी हर  गली।
उजाले के खातिर मैं दर -दर भटकता रहा,
झींनी- झींनी चदरिया की मोरी कथरी।
भींनी -भींनी…………………………….
जो हवायें चलें सब ख़िलाफ़त करें,
जो वफायें मिलीं सब सियासत करें।
पाप की राह से खुद को बचाता रहा,
हर क़दम मैं करीने से धरता रहा।
सर्द मौसम से तन – मन छुपाता रहा,
ऊँची – नीची जमिनिया में मोरी सथरी।
भींनी -भींनी ………………………………