उसका ग़र अहसास ख़ुद में चाहिए |
रूहों में पाक़ीज़गी ले आइए ||
काशी क़ाबा हैं बसे दिल में कहीं |
दिल को लेकर रौशनी में जाइए ||
लगता है मुश्क़िल अगर जीना बहुत |
ख़ुद को मेरी ज़िन्दगी दिखलाइए ||
होती हैं कुछ मंज़िलें भी बे’वफ़ा |
फिर भी इनको बा’वफ़ा फ़रमााइए ||
साँसों की लय तक परस्तिश कर रही |
नुक्ताचीं को क्या भला समझाइए ||
जब भी रौशन चाँद से जाकर मिलो |
मिलने ‘मन’ आया समझ शरमाइए ||