हे नाग देवता! तुम बैस राजपूतों के ध्वज में हो

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मेरी पोस्टिंग जब हैदराबाद से कोलकाता हुई तो मुझे इस बात का दुख था कि मैं अपने सिस्टम से बाहर जा रहा हूं । वहां मेरी जान पहचान का कोई न होगा।

लेकिन इस बात की खुशी भी थी कि एक बड़े, पुराने और रहस्यमयी शहर जा रहा हूं जिसके बारे में मैंने कई दंतकथाएं सुन रखी थी।

बैरकपुर पहुंचने पर मुझे सुब्रतो पार्क में सरकारी क्वार्टर मिल गया। इस क्वार्टर की विशेषता यह थी कि गार्डरूम के बिल्कुल पास था। सिंगल स्टोरी था यानी जमीन और छत दोनों के मालिक हम थे। इसके अलावा क्वार्टर के अंदर एक बड़ा सा आम का पेड़ भी था। बाहर पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था थी । दिल्ली के हिसाब से इस सरकारी आवास को एक छोटी मोटी कोठी भी कहा जा सकता है।

पहले दिन ऑफिस पहुंचा तो समझदार लोगों ने “Dos and Donts” के अलावा दो बातों की विशेष हिदायत दी। एक यह कि स्टेशन के बाहर लड़कियों से और स्टेशन के अंदर सांपों से सावधान रहना। लड़कियों वाली बात तो मुझे पहले से ही पता थी । सांपों वाला मामला मेरे लिए बिल्कुल नया था। अतः सांपों से बचने के लिए मैंने तैयारी शुरू कर दी।

मेरे घर के आगे काफी घास थी और घर के पीछे एक नाली और बड़ी-बड़ी घास थी। सबसे पहले मैंने सारे दरवाजों को ठीक से सील किया और नाली के पास कार्बोलिक एसिड रख दिया। इससे कुछ दिन आराम से कटे।

एक शाम फ्रिज स्टैंड ( यह सिर्फ transferrable सेवा वाले लोगों के पास मिलेगा। फ्रिज को सुरक्षित तरीके से एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए फौजी लकड़ी या लोहे का स्टैंड बनवा लेते हैं।) से कुछ सामान निकालने गया तो देखता हूं कि उसके नीचे एक हाथ का एक सांप घुसा हुआ है। हालांकि देखने से ही जहरीला नहीं लग रहा था। लेकिन सांप को घर में रखकर आप चैन से सो भी तो नहीं सकते। इसलिए मैंने उसे भगाने का निर्णय लिया । लेकिन समस्या यह थी कि वह फ्रिज स्टैंड के नीचे छुपा हुआ था। भारी-भरकम फ्रिज स्टैंड को एक तरफ से हटाता तो वह दूसरी तरफ घुस जाता । ऐसा काफी देर तक चलता रहा।

बैरकपुर की ह्यूमिडिटी वाली गर्मी ऐसी है कि आप पंखे के नीचे भी खड़े रहो तो पसीना आता रहता है । इसलिए 5 मिनट में ही मैं पसीने से पूरी तरह लथपथ हो चुका था। लेकिन सांप को बाहर नहीं निकाल पाया। तब मैंने किचन जा कर दो गिलास ठंडा पानी पिया और फिर वापस आकर किसी तरह स्टैंड को टेढ़ा करके सांप को उसके नीचे दबाकर मारने में सफल रहा ।

15 दिन ही गुजरे होंगे की एक सुबह सो कर उठा और चप्पल के पास पैर रखते ही लगा कि कुछ हरकत हो रही है । मैं पूरी तरह से जगा भी नहीं था । उनींदी आंखों से देखा तो एक छोटा सांप चप्पलों से दो तीन फीट की दूरी पर चला जा रहा है । सांप छोटा हो या बड़ा, जहरीला हो या गैर जहरीला लेकिन उसको देख कर डर तो लगता ही है। अतः मेरी नींद पूरी तरह से उड़ गई।

मैंने कुछ सेकंड अपने आप को संभालने में लगाए और फिर बेड के दूसरी तरफ रखा हुआ एक मोटा डंडा उठाया और सांप के सिर पर दे मारा। चूंकि यहां पर पिछली बार की तरह फ्रिज स्टैंड जैसा कोई अवरोध नहीं था इसलिए एक बार के प्रहार में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए ।

हालांकि इस घटना के बाद मैंने घर की सुरक्षा और अधिक बढ़ा दी। नालियों में फिनायल डाल देता। हर बिल जैसी दिखने वाली चीज को ठीक से भर देता। जिधर से भी सांप आने की संभावना होती उधर कार्बोलिक एसिड रख देता। सारे दरवाजों के नीचे औऱ ऊपर रबर लगाकर सील कर दिया। परिणाम यह रहा कि अगले एक साल तक सांप के दर्शन नहीं हुए ।

एक शाम ऑफिस से घर आ रहा था तो देखता हूं घर के सामने वाले बड़े से पेड़ के पास से एक 5-6 फुट का , कलाई से भी मोटा बिल्कुल काला सांप जा रहा है। थोड़ा और पास आकर देखा तो पाया कि यह काला नाग था । जब भी वह रुक कर सिर ऊपर उठाता गाय के खुर के निशान उसके फन में स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

हालांकि इससे पहले मैं दो छोटे सांपों को मार चुका था । लेकिन नाग देवता को देखते ही मेरी हिम्मत जवाब दे गई । मैं चुपचाप घर के अंदर आ गया और दरवाजों को अच्छी तरह से बंद कर लिया। फिर मैंने वहीं से आंख बंद करके विचार किया – “हे नाग देवता! तुम बैस राजपूतों के ध्वज में हो और मेरे प्रिय भगवान शिव-देवी पार्वती के अति प्रिय भी। इसलिए तुम मेरे लिए दोनों तरह से पूज्य हो। “

पता नहीं मेरे विचार का असर था या कोई दैवीय कृपा। लेकिन कुछ देर बाद देखता हूँ कि नाग देवता बड़ी तेजी से बाहर वाली सड़क की तरफ चले जा रहे हैं।

उसके बाद मैं बैरकपुर में 2 वर्ष और रहा किंतु उन नाग देवता से मेरी फिर कभी मुलाकात नहीं हुई।

(आशा विनय सिंह बैस)