हिन्दीपत्रकारिता-दिवस का आयोजन
कल (३० मई) हिन्दी साहित्य सम्मेलन और सर्जनपीठ के संयुक्त तत्त्वावधान मे सम्मेलन के प्रचार-विभाग मे ‘हिन्दीभाषा के उत्थान मे हिन्दी-पत्रकारोँ की भूमिका’ विषय पर बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया।
आरम्भ मे, दीप-प्रज्वलन कर समारोह का उद्घाटन किया गया। पत्रकार-पुरुष पं० मदनमोहन मालवीय और बाबू राव विष्णु पराड़कर के चित्रोँ पर माल्यार्पण कर समादर व्यक्त किया गया। पं० राकेशकुमार मालवीय ‘मुसकान‘ ने माँ शारदा का गान किया। स्वागताध्यक्ष सम्मेलन के प्रधानमन्त्री कुन्तक मिश्र ने समुपस्थित अतिथियोँ और श्रोता-दर्शकोँ का स्वागत किया।
आयोजन मे मुख्य अतिथि आर्यकन्या महाविद्यालय की पूर्वहिन्दी-विभागाध्यक्षा डॉ० कल्पना वर्मा ने कहा– जैसे कम्प्यूटर के सॉफ़्टवेअर को अपडेट करना पड़ता है वैसे ही पत्रकारोँ को भी स्वयं को अपडेट करना पड़ेगा, तभी हिन्दी-भाषा के उत्थान मे उनकी महती भूमिका सिद्ध होगी। जो घटना जिस रूप मे है, उसे उसी रूप मे प्रकाशित करना चाहिए, यद्यपि पत्रकारोँ को पहले की तुलना मे आज बहुत दबाव रहता है।”
वरिष्ठ छाया-पत्रकार अरविन्द मालवीय ने कहा– पहले की फ़ोटो-पत्रकारिता अत्यन्त जटिल थी, जबकि आज की प्रौद्योगिकी इतनी उन्नत है कि आप जो कुछ कह रहे हैँ, उसे उसी समय जनता तक पहुँचाया जा सकता है।”
वरिष्ठ पत्रकार उर्वशी उपाध्याय ने कहा– पहले के पत्रकार पढ़ते थे; क्योँकि उन्हेँ समय मिल जाता था, जबकि आज विपरीत स्थिति है।
वरिष्ठ पत्रकार अजामिल ने कहा– आज के पत्रकार ऐसे समाचार खोजते रहते हैँ, जिनसे उन्हेँ बाज़ार मिले। हमारे पाठक के जिस सोच की भाषा है, वही पत्रकारोँ की भाषा होनी चाहिए।
अध्यक्षता कर रहे मेरी लुकस स्कूल ऐण्ड कॉलेज मे हिन्दी-प्रवक्ता डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी ने कहा– कोई कुछ भी कहे, पत्रकार को अपने विवेक का प्रयोग करते हुए उसे स्वस्थ रूप मे ग्रहणीय बनाना चाहिए; न कि उसे भड़काऊ रूप मे प्रस्तुत करना चाहिए।”
भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा– पराड़करयुगीन पत्रकारिता मे पत्रकार पहले साहित्यकार और भाषा के जानकार होते थे और साधक का जीवन जीते थे; क्योँकि तब इतना बाज़ार नहीँ था; पत्रकारोँ पर दबाव भी नहीँ था, जितना कि आज दिख रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ झा ने कहा– हम यह कहकर मुक्त नहीँ हो पायेँगे कि अमुक पत्रकार की भाषा-स्तर पर ग़लत भूमिका है, इसलिए पाठकोँ का दायित्व बनता है कि वह सम्पादकोँ को टोके।
विचारक हरिशंकर तिवारी ने कहा– पत्रकार चाहेँ तो वे अपनी भाषा मे परिष्कार कर सकते हैँ।
लेखक सतीशचन्द्र तिवारी ने पहले की पत्रकारिता की शब्दावली की विशेषताओँ को समझाया।
इस अवसर पर शेषमणि पाण्डेय, डॉ० पूर्णिमा मालवीय, डॉ० अभिषेक केसरवानी, गीता सिँह, तौक़ीर अहमद ख़ान, दीपक अग्रवाल, अंजनी शुक्ल, के० के० केसरवानी, पवित्र तिवारी इत्यादिक श्रोता और दर्शक के रूप मे उपस्थित थे।
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने समारोह का संयोजन, संचालन एवं आभार-ज्ञापन किया।