जीवन का अर्थ

निशा कुलश्रेष्ठ-


सुबह सुबह का वक्त है
मैं चाहती हूँ
कुछ खिडकियाँ और दरवाजे खोल देना

चाहती हूँ खुली हवा में साँस लेना
जैसे ही खोलती हूँ अपने कमरे की एक बंद खिड़की
भक्क से अंदर को आया है
एक ठंडी सी हवा का तेज झोंका
चीर कर घुस गया है देह की देहरी पार कर
मन की चौखट पर खड़ा मुस्कराता सा

धीरे धीरे बुदबुदाता सा जैसे
गा रहा है भजन कोई पुराना
” घूंघट के पट खोल री तोहे पिया मिलेंगे”

समझ नहीं पाई हूँ अब तक कि
पहले पट घूघट के खोलूँ या
पिया की राह देखूँ
असमंजस में हूँ!

सुबह का सूरज
जब तक आसमान में है, उम्मीदों
की गाँठ बंधी है
साँझ के उतर आने से पहले
रात के गहराने से पहले
जीवन का अर्थ पता करना है ॥