● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आज देश की अति विशिष्ट टी० जी० टी०-पी० जी० टी० (हिन्दी) शिक्षण-संस्था ‘हिन्दी-संसार’ मे हमारा जाना हुआ, जहाँ संस्थान के निदेशक एवं परम प्रिय शिष्य उदारमना डॉ० अशोक स्वामी जी ने एक ऐसा भव्य आयोजन किया था, जिससे देश के समस्त शिक्षण-संस्थानो को सीख ग्रहण करनी चाहिए। इस अवसर पर शब्दप्रधान पुस्तक ‘आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ का लोकार्पण विद्यार्थीवृन्द ने किया था। वहाँ हमारी भाषिक कर्मशाला कई घण्टे तक संचालित होती रही और विद्यार्थी तन्मयतापूर्वक श्रवण करते रहे; प्रश्न-प्रतिप्रश्न करते रहे तथा उत्तर-प्रत्युत्तर पाते रहे।
प्रतिभा-सम्मान, परिसंवाद एवं हिन्दीभाषाविशेषज्ञ-सम्मेलन की सारस्वत गरिमा, प्रभा एवं आभा देखते ही बनती थी। ‘हिन्दी-संसार’ से ‘ऑन-लाइन’ शिक्षा ग्रहण करनेवाले विद्यार्थियोँ मे से वरीयताक्रम मे चार विद्यार्थियोँ की विशिष्ट कोटि की मेधा का सम्मान करते हुए, प्रथम चयनित विद्यार्थी को कार, द्वितीय को स्कूटी, तृतीय को लैपटॉप तथा चतुर्थ को टैबलेट पुरस्कार/पारितोषिक के योग्य समझा गया। जिनके पास पहले से ही लैपटॉप और टैबलेट थे, उन्हेँ उतने मूल्य की धनराशि प्रदान की गयी। इनके अतिरिक्त शताधिक विद्यार्थियोँ को राजस्थानी पगड़ी धारण कराकर स्मृतिचिह्न, शॉल, घड़ी, परीक्षोपयोगी पुस्तकेँ आदिक प्रदान कर, उनका उत्साहवर्द्धन किया गया।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सलोरी, प्रयागराज-स्थित ‘हिन्दी-संसार’ से ‘ऑफ़-लाइन’ और ‘ऑन-लाइन’ शिक्षण ग्रहण करनेवाले विद्यार्थियोँ की संख्या लगभग एक लाख है, जोकि एक शैक्षिक कीर्तिमान है एवं अप्रतिम उपलब्धि भी, जिसका श्रेय जाता है, उस व्यक्तित्व को, जिसने बचपन से लेकर युवावस्था के पूर्वार्द्ध को अभाव मे जिया; अन्धकार मे भी रहकर धैर्य के साथ अपना जीवन-यापन किया; परन्तु अपने भीतर की जिजीविषा (जीने की इच्छा) एवं जिगीषा (जीतने की इच्छा) को कुन्द नहीँ पड़ने दिया। उस जुझारू व्यक्तित्व का नाम है, ‘डॉ० अशोक स्वामी’, जिन्होँने अभाव मे भी जिसप्रकार से भावदर्शन कराया है, वह श्लाघ्य है एवं अनुकरणीय भी। यही कारण है कि आज ‘हिन्दी-संसार’ का सभागार देश के विभिन्न अंचलोँ से आये हुए विद्यार्थियोँ से भरा हुआ था; केवल मध्य मे एक दीर्घा थी, जो गमनागमन (‘आवागमन’ अशुद्ध है।) के लिए सुरक्षित थी।
आयोजन का विशिष्ट पक्ष यह रहा कि इस अवसर पर प्रियवर डॉ० अशोक स्वामी अपनी माँ एवं अन्य स्वजन-परिजन को अपने मूल निवास राजस्थान से समारोह मे समादृत करने के लिए ले आये थे। मंचस्थ माँ का मुखमण्डल अपने सुयोग्य पुत्र के सत्कर्म को देखकर गर्व से कान्तिमान था।
निश्चित रूप से उपर्युक्त आयोजन उन विद्यार्थियोँ के लिए प्रेरणा का विषय रहा, जो अपने लक्ष्यप्राप्ति-हेतु अध्यवसाय के साथ अध्ययन-अनुशीलन के प्रति प्रवृत्त हैँ।
हम प्रियवर डॉ० अशोक स्वामी जी के स्वस्थ रहते हुए, दीर्घ जीवन की कामना करते हैँ, जिससे कि वे शिक्षण-क्षेत्र मे अपनी उपलब्धि मे सम्वृद्धि करते हुए, उसका विस्तार करते रहेँ।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ जनवरी, २०२५ ईसवी।)