मौत बाँटते ‘बलिया’ के सरकारी चिकित्सालय!..?

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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इन दिनो उत्तरप्रदेश मे गरमी के महाप्रकोप से जनता त्रस्त हो चुकी है; ऊपर रोज़-रोज़ की बिजली की कटौती से जनता हलकान हो चुकी है।

इस समय उत्तरप्रदेश मे सर्वाधिक प्रभावित जनपद बलिया है, जहाँ भीषण गरमी के प्रभाव से रोगग्रस्त होकर अब तक १०० से अधिक लोग की मृत्यु हो चुकी है और बलियाजनपद-प्रशासन चैन की बंशी बजाता दिख रहा है। १०० से अधिक लोग की मृत्यु का विवरण बलियाजनपद-चिकित्सालय की सम्बद्ध विवरणिका मे अंकित किया जा चुका है। इस पर आश्चर्य का विषय यह है कि ७२ घण्टों मे बलिया मे ५७ लोग की मौत हो गयी थी। वहाँ पिछले २५ जून को २३ लोग मरे थे। पाँच दिनो के भीतर कुल ६८ लोग मृत्यु को प्राप्त कर चुके थे। बलिया के चिकित्साधिकारी ने बताया था कि १८ जून को १४ और लोग की मृत्यु हो चुकी थी। प्रशासन-स्तर पर मृतकों की वास्तविक संख्या छिपायी जा रही है। मरने का कारण क्या है, इसे भी प्रशासन नहीं बता पा रहा है। लोग अपने रोगियों को चिकित्सालय मे भरती (‘भर्ती’ अशुद्ध है।) करा रहे हैं और उनके मरीज़ मरते देखे जा रहे हैं।

बलिया के जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार को २१ जून को एक समाचार-चैनल के माध्यम से बलिया जनपद-चिकित्सालय मे एक फ़ार्मासिस्ट को डाँटते हुए दिखाया जा रहा था और उसे ‘सस्पेण्ड’ करने का हुक़्म जताते हुए भी। वह जिलाधिकारी जब बहुत कुछ घट गया था तब बदतर हाल मे दिख रहे बलिया के सरकारी अस्पताल का निरीक्षण करने आया था। उस जिलाधिकारी को यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि उस चिकित्सालय मे हवा, पानी, बिजली, दवा, उपचार-सुविधा-साधन आदिक की व्यवस्था तो है ही नहीं। यहीं पर उस कथित जिलाधिकारी से प्रश्न करना बनता है :― बलिया के जिलाधिकारी-पद पर तुम कितने समय से हो और तबसे से लेकर अबतक तुमने कितनी बार जिला-चिकित्सालय और कस्बाई चिकित्सालयों के निरीक्षण किये हो? यहाँ तो प्रथम दृष्टया जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार की साफ़ लापरवाही दिख रही है, इसलिए इस कथित जिलाधिकारी को निलम्बित कर, ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी की जानी चाहिए। रविन्द्र कुमार को अब चिकित्सालयों मे पंखे, कूलर, ए० सी०, पेयजल की समस्या दिख रही है? यदि यही आरोपित जिलाधिकारी और उसके मातहत उप-प्रभागीय न्यायाधीश (एस० डी० एम०), उप-जिलाधिकारी, अतिरिक्त जिलाधिकारी, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, चिकित्सक, सेविका-सेवक, कम्पाउण्डर आदिक अपने लोकसेवक की भूमिका मे दिख रहे होते तो बलिया मे मरे सैकड़ों रोगियों मे से अधिकतर की जान बचायी जा सकती थी। एक तरह से बलिया जनपद मे रोगी मरे नहीं हैं, बल्कि उन्हें मारा गया है। यहाँ पर सम्बद्ध मण्डलायुक्त की भी ज़िम्मादारी बनती है। उत्तरप्रदेश-शासन के मुख्य सचिव को चाहिए कि वे बलिया के ज़िलाधिकारी-सहित सभी अधिकारियों को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी करे। इस पूरे प्रकरण की जाँच ‘सी० बी० आइ० से कराने की आवश्यकता है, ताकि “दूध-का-दूध और पानी-का-पानी” हो सके।

सैकड़ों लोग की मौत हो जाने के बाद कर्त्तव्यविहीन मुख्य चिकित्सा-अधीक्षक दिवाकर सिंह को उसके पद से हटा दिया गया है। जब वह पद पर था तब उसकी कार्यपद्धति पर निगरानी क्यों नहीं की जा रही थी? जब दिवाकर सिंह पदस्थ था तब वह चिकित्सालयों मे मरीज़ों के मरने का कारण ‘हीट-स्ट्रोक’, ‘मल्टिपल ऑर्गन फेल्योर’, ‘मरीज़ों का उम्रदराज़ होना’, ‘किसी-न-किसी बीमारी से ग्रस्त (‘ग्रसित’ अशुद्ध शब्द है।) होना बताया था। जब दिवाकर सिंह से पूछा गया था, “हीट-स्ट्रोक’ से कितने लोग मरे हैं?” तब उसका उत्तर था, “मै मौत का कोई आँकड़ा नहीं दे सकता।” प्रश्न है, उसने मौत का आँकड़ा देने से साफ़ इन्कार क्यों कर दिया था? क्या उसके ऊपर जनपद-प्रशासन का दबाव था वा मुआमला (‘मामला’ अशुद्ध है।) कुछ और है? यहाँ एक और प्रश्न है :– उस प्रमुख चिकित्सा-अधीक्षक के साथ सम्बन्धित चिकित्सकों, परिचारिका-परिचारकों कम्पाउण्डरों आदिक को क्यों नहीं हटाया गया था? घोर लापरवाही के चलते, बलिया-जनपद के सरकारी चिकित्सालय मे काम करनेवाले सभी कर्मचारियों को निलम्बित कर, उनके विरुद्ध काररवाई करानी होगी।

उस जनपद के प्रमुख क्षेत्रों :– बलिया, बाँसडीह, बैरिया, रसड़ा, बेल्थरा रोड, सिकन्दरपुर के सभी सरकारी चिकित्सालयों का अकस्मात् निरीक्षण कर, वास्तविकता से अवगत होना चाहिए था, जो कि नहीं हुआ है। कौन-कौन अधिकारी-कर्मचारी इसके लिए उत्तरदायी हैं, इसकी गहन और पारदर्शी जाँच बहुत ज़रूरी हो चुकी है। इन चिकित्सालयों मे परिचर्या करने के नाम पर ऐसे-ऐसे चोट्टे-बेईमान चिकित्सक, कम्पाउण्डर तथा अन्य परिचारिका-परिचारक हैं, जो दवाएँ बेच देते हैं; मरीज़ों को अनिवार्य रूप से दी जानेवाली निश्शुल्क सुविधाएँ उनके तीमारदार से रुपये लेकर प्रदान की जाती हैं। सभी के मुँह मे रिश्वत का ख़ून लग चुका है।

बलिया-जनपद के सांसदों, विधायकों, टाउन एरिया चेअरमैनो, ग्रामप्रधानों आदिक को साँप सूँघ गया है। चुनाव के समय तो सब घर-घर जाकर कटोरे लेकर भीख माँगते हैं; मगर जब वहाँ की जनता के स्वास्थ्य पर संकट आता है तब सब ”गधे की सींग” बन जाते हैं। इन सभी को एक सिरे से धिक्कार है। सबके मुँह पर ताले इसलिए लग गये हैं वा लगा दिये गये हैं कि वहाँ ‘भारतीय जनता पार्टी’ के सांसद और विधायक हैं और उनकी योगी-सरकार की बदनामी न हो, इसलिए सब “गान्धी के तीन बन्दर” बने हुए हैं।

बलिया के भारतीय जनता पार्टी का बड़बोला विधायक और राज्यमन्त्री दयाशंकर सिंह का विवादास्पद बयान सामने आ चुका है। उसने कहा है, “गरमी के मौसम मे मृत्युदर बढ़ जाती है। ऐसा पहले भी हो चुका है। गरमी है; लू है, जो कमजोर लोग हैं, उनको दिक्कत हो रही है। मृतकों मे अधिकांश (यहाँ ‘अधिकतर’ शुद्ध है।) बुज़ुर्ग हैं।” ऐसे मे, दयाशंकर सिंह से सवाल है, केवल बलिया मे ही इतनी अधिक मृत्युदर कैसे बढ़ रही है?

इस बार की गरमी का प्रभाव और सरकारी चिकित्सालयों की बदतर व्यवस्था के चलते, देवरिया मे लगभग ६० रोगियों की मृत्यु हो चुकी है। गोरखपुर, कुशीनगर, आज़मगढ़, बस्ती, महाराजगंज-सहित पूर्वांचल के कई जनपद के रुग्ण लोग समुचित स्वास्थ्य-उपचार के अभाव मे मृत्यु को प्राप्त करते आ रहे हैं और उन्हें सरकारी स्तर पर आधिकारिक रूप से कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। यदि सुविधा दी गयी रहती तो बलिया के सरकारी चिकित्सालयों मे सैकड़ों की संख्या मे लोग दम नहीं तोड़े होते।
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सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २२ जून, २०२३ ईसवी।)