जन-जन को ग्रीष्म की तपन से बचने का उपाय खोजना होगा

'विश्वपर्यावरण-दिवस' के अवसर पर 'सर्जनपीठ' की विशेष प्रस्तुति

‘वैश्विक ग्रीष्म-तपन’ का अर्थ है, धरती का आवश्यकता से अधिक गरम होते रहना। विश्व-विज्ञानियोँ का मानना है कि विगत १४० वर्षोँ मे धरती के तापमान मे एक डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो चुकी है। विज्ञानियोँ का मत है कि यही स्थिति बनी रही तो जड़-चेतन के लिए इसके परिणाम अतीव घातक हो सकते हैँ। इन दिनो समस्त जड़-चेतन जिस भीषण गरमी से व्याकुल है, उससे रक्षा पाने के लिए विचार-स्तर पर भी सहयोग आवश्यक है, ताकि उसका व्यवहारिक निदान खोजा जा सके।

इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए ‘सर्जनपीठ’, प्रयागराज की ओर से एक समीचीन आन्तर्जालिक (‘ऑन-लाइन) राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन ‘सारस्वत सदन’, प्रयागराज की ओर से विश्वपर्यावरण-दिवस (५ जून) की पूर्व-संध्या मे (‘संध्या पर’ अशुद्ध शब्द है।) किया गया था, जिसमे देश के अनेक वक्ताओँ ने अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये थे, जिसके केन्द्र मे केवल कारण का निवारण रहा।

बेंगलुरु से शिक्षाविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ० अनीता पण्डा ‘अन्वी’ ने बताया, “हम वर्षा के शुद्ध जल को वर्षभर के लिए संरक्षित कर सकते हैँ। घर की छतोँ पर पानी के टैंक मे पानी एकत्र किया जा सकता है। एक पाइप के माध्यम से ज़मीन के नीचे बड़े गड्ढोँ मे वर्षाजल एकत्र किया जा सकता है, जिसका हम सिँचाई और घरेलू कार्योँ के लिए उपयोग कर सकते हैँ। अपने घर के सामने का हिस्सा पूरा पक्का न करके, चारोँ तरफ़ थोड़ी खुली ज़मीन रखेँ, जिसमे पीपल, नीम, बरगद, पाकड़ इत्यादिक के पौधे लगाएँ। खुली ज़मीन होगी तो वर्षा का जल इनसे होता हुआ भूमिगत जलस्तर मे वृद्धि करेगा। सार्वजनिक सूखे तालाब, कुएँ इत्यादिक का जीर्णोद्धार आवश्यक है। इसके चारोँ ओर पौधारोपण करना होगा। अपने जन्मदिनांक तथा विशेष अवसर पर एक पौधा अवश्य लगायेँ और उसकी देखभाल भी करेँ। फ्लैट में रहने वाले भी मिट्टी से प्यार करेँ और पौधे लगायेँ।”

टैगोर पब्लिक स्कूल, प्रयागराज मे रसायनशास्त्र के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने बताया, ”ग्रीष्म की भीषण तपन से बचने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड गैस के उत्सर्जन की दर को कम करना होगा, जिसके लिए पौधारोपण सर्वोत्तम विकल्प है। ऐसा इसलिए कि वातावरण मे उत्सर्जित गैसोँ को पौधे ही अवशोषित करके वैश्विक तपन को कम कर सकते हैँ। हम हरित गृह गैसोँ के उत्सर्जन मे वृद्धि करनेवाले प्लास्टिक, विद्युत, ए० सी०, कूलर, फ्रीज आदिक उपकरणो का कम-से-कम उपयोग, जीवाश्म ईंधन का न्यूनतम उपयोग करके इस भीषण गरमी के दुष्प्रभाव से बच सकते हैँ।”

प्रयागराज से आयोजक, भाषाविज्ञानी एवं समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपने सूचनात्मक वक्तव्य मे कहा, “इस भीषण गरमी से समस्त जीवधारियोँ की रक्षा करने के उद्देश्य से इन दिनो विश्वविज्ञानियोँ ने दो उपाय विकसित की हैँ, जिनमे से एक का नाम है, ‘स्पेस सनशेड’, जिसके अन्तर्गत अन्तरिक्ष मे दर्पण-जैसी किसी वस्तु के द्वारा सूर्य की किरणो को परावर्तित करके दूसरी दिशा मे मोड़ दिया जायेग। एक अन्य व्यवस्था ‘क्लाउड सीडिँग’ है, जिसमे हवा मे लगातार समुद्री जल से बादल बनाकर वातावरण मे नमी बनायी जायेगी। तीसरी व्यवस्था ‘सोलर जियो-इंजीनियरिंग है, जिसमे विज्ञानी बड़े-बड़े गुब्बारोँ के माध्यम से वायुमण्डल के ऊपरी भाग (स्ट्रैटोस्फ़ीअर) पर सल्फ़र-डाइऑक्साइड का छिड़काव करेँगे; क्योँकि सल्फ़र अपने गुण से सूर्य की तीव्र किरणो को परावर्तित कर देता है।”

‘महर्षि विवेकानन्द-ज्ञानस्थली’, हरदोई के अध्यक्ष आदित्य त्रिपाठी ने बताया, ”वैश्विक सूचकांक के आधार पर प्रति व्यक्ति 450 पेड़ आवश्यक हैँ; किन्तु भारत मे यह आँकड़ा 200 से नीचे है। पिछले दो वर्षोँ के दौरान हरदोई मे गंगा एक्सप्रेस-वे और राष्ट्रीय राजमार्ग के लखनऊ-पुलिया खण्ड-निर्माण मे अनुमानतः पाँच लाख छोटे-बड़े पेड़ काटे गये थे। नगरविस्तार, ग्रामीण आबादीविस्तार के साथ कृषिक्षेत्र-विस्तार और औद्योगिक इकाइयोँ की स्थापना के नाम पर भी प्रति वर्ष 10 लाख से 15 लाख वृक्षोँ के काटे जाने का अनुमान है। जब तक सरकार अपनी ज़िम्मादारी तय नहीँ करती, पर्यावरण तिल-तिल कर मरता रहेगा और मनुष्य अभिशप्त बना, बीमारियोँ को लादे चलती-फिरती लाश बना रहेगा।”

‘ह्यूमन वेलफेअर सोसाइटी’, हरदोई के अध्यक्ष डॉ० राघवेन्द्रकुमार त्रिपाठी ‘राघव’ ने कहा, ”मैदानी इलाकोँ मे पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिहाज से नदियोँ की उपयोगिता स्वयंसिद्ध है। उत्तर प्रदेश की एक मृतप्राय नदी सई मे घुमावोँ के कारण प्राकृतिक रूप से बड़ी संख्या मे गहरे कुण्ड थे। कुण्डो मे जल के ठहराव के साथ-साथ तलछट मे दरारेँ होँ, तो भूजल-पुनर्भरण के लिए इससे बड़ा वरदान और क्या हो सकता है? खेद है! इन सारी विशेषताओँ के बाद भी सदानीरा सई पहले विषैली की गयी और अब ‘जलरहित’ हो गयी है। ऐसी स्थिति मे, पर्यावरण-संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास होने चाहिए।”