क्रोध से छुटकारा

किसी ने पूछा है;
क्रोध अधिक आता है, इस क्रोध से कैसे छुटकारा हो?
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प्रेम ही क्रोध का नियामक है।
जैसे-जैसे प्रेम की वृद्धि होती है क्रोध स्वत: नियन्त्रित होने लगता है।
और जैसे-जैसे ज्ञान की वृद्धि होती है प्रेम स्वतः जागने लगता है।
दुर्ज्ञान से घृणा और सत्ज्ञान से प्रेम का विकास होता है।
दर्शन की शिक्षा ही सत्ज्ञान को जगाती है।

सत्य को जानें, मानें और जियें।
आपका जीवन स्वतः प्रेमपूर्ण हो जायेगा और निरर्थक क्रोध स्वतः समाप्त हो जायेगा।

प्रेमपूर्ण जीवन में क्रोध का दूषित स्वरूप निवास नहीं करता।
प्रेम वह रस है जो क्रोध को भी पवित्र बना देता है।
प्राण ऊर्जा का संचार ही प्रेम को जगाता है।
सुप्त प्राण में प्रेम की अनुभूति नहीं होती।
भावनात्मक विकास इस प्राण की सक्रियता का ही फल है।

जिसे EQ कहते हैं।
The Emotional Quotient….!

सत्य का बोध ही प्रेम को प्रदीप्त करता है।
ह्रदय में प्रेम की अनुभूति ही सत्य के ज्ञान का लक्षण हैं।

वर्ना ….
पोथी पढ़ पढ़ जग मरा, पंडित हुआ न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

दूसरों के प्रति क्रोध तभी आता है जब दूसरों के प्रति अपने ह्रदय में प्रेम के स्थान पर घृणा भरी रहती है।
कुछ लोग कहते हैं प्रेम बड़ी कठिनाई से मिलता है।
किन्तु वास्तव में प्रेम न सरलता से मिलता है न कठिनाई से।
बल्कि ह्रदय में दूसरों के प्रति प्रेम का विकास केवल सत्य के बोध से होता है, यथार्थ के ज्ञान से होता है।

सत्य के दार्शनिक दृष्टिकोण का विकास करते जाएँ, ह्रदय में संवेदनशील भावनाओं का जागरण होता जायेगा।
संवेदना ही प्रेम का प्रथम लक्षण है।
जो क्रोध को भी मधुमय बना देता है।

–राम गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा