जाहिलों-मवालियों-अपराधियों का बोझ ‘गणतन्त्र’ पर कब तक?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय –


आज देश में जितने भी राजनीतिक दल हैं, सभी में आपराधिक छविवाले नेता भरे हुए हैं। दु:ख का विषय है, इस समय विविध प्रकार के अपराधों में लिप्त रहे सर्वाधिक नेता वर्तमान सत्ताधारी दल ‘भारतीय जनता पार्टी’ में हैं परन्तु उसके शीर्षस्थ नेताओं को चिन्ता नहीं। सबसे पहले उसे अपने यहाँ से सारे दाग़दारों को अपने दल से बाहर कर ‘दाग़ी नेता हटाओ’ नामक स्वच्छता-अभियान आरम्भ करना होगा। इससे देश के प्रधान मन्त्री के ‘स्वच्छता-अभियान’ को सच्चे अर्थों में बल प्राप्त होगा और देश की जनता स्वतन्त्रता के बाद का ‘भारत के एकमात्र अप्रतिम राजनीतिक प्रतिमान’ का साक्षी बनेगी।
किसी भी चुनाव के प्रत्याशी के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता ‘स्नातक’ करने की आवश्यकता है। कोई किसी भी स्तर का अपराधी क्यों न हो, उसके लिए राजनीति के कपाट बन्द रखने होंगे। इसके लिए देश के प्रधान न्यायाधीश को स्वत: संज्ञान लेते हुए पहल करनी होगी क्योंकि निर्वाचन-आयुक्त ग़ुलाम-से दिख रहे हैं। यह कैसी और कितनी विडम्बना है कि जो लोग अपने पद और गोपनीयता की रक्षा के लिए निर्धारित कतिपय शब्दों का वाचन न कर सकें; कहे हुए वाक्यांश की पुनरावृत्ति न कर सकें, उन्हें फूल-माला से लादकर शीर्ष आसन पर बैठाया जाता है और उनके बायें-दायें वर्षों तक सुशिक्षित होकर प्रतियोगी परीक्षाओं की युद्ध-स्तर पर तैयारी करने के बाद ‘अधिकारी’ कहलानेवाले लोग उनकी ‘अर्दली’ की भूमिका में डरते-सहमते दिखते हैं; अर्थात् नेता की प्रथम योग्यता उसकी ‘अयोग्यता’ है। अयोग्यों और नाना पापाचरण का अधिकांश भाग ‘राजनीति’ के क्षेत्र में ही दिखायी देता है। जब ऐसों को किसी राज्य अथवा देश का मन्त्री बनाया जाता है तब यह लोकतन्त्रात्मक शासन के लिए महा-अपमान का विषय बन जाता है।
देश के शीर्षस्थ पद राष्ट्रपति-पद, मुख्य न्यायाधीश-पद तथा अन्यान्य पदों के प्रत्याशियों के लिए कई प्रकार की योग्यताएँ-निर्धारण कर, उन्हें अनिवार्य बना दिया गया है किन्तु तथाकथित जनसामान्य के प्रतिनिधि ‘जनसेवक’ बनने के लिए कहीं-कोई योग्यता का निर्धारण नहीं, क्यों है ऐसा? हम जन-सामान्य पर गुण्डों-मवालियों, जाहिलो, बलात्कारियों, अपहरणकर्त्ताओं, कालाबाजारियों इत्यादिक गर्हित-कुत्सित-कुण्ठित-लुण्ठित चरित्रों का बोझ क्यों लादा जा रहा है?
क्या उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में एक दिवसीय प्रतियोगिता-परीक्षा ‘नेता अभियोग्यता-परीक्षण’ कराने का औचित्य नहीं बनता है? देश की प्रबुद्ध जनता कब तक सोती रहेगी, विचारणीय है।