डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
केन्द्र-सरकार को चलानेवाले लोग आम जनता की कमर तोड़ रहे हैं, फिर भी सत्तालोलुपों का जयगान करती अधिकतर जनता थकते-नहीं-थकती।
आर्थिक और सामाजिक स्तर पर वर्तमान सरकार पूरी तरह से विफल सिद्ध हो चुकी है। पिछलग्गू तो गुण गायेंगे ही; क्योंकि उनका निहित स्वार्थ जो सिद्ध हो रहा है; फिर जीने-खाने के लिए उनके पास अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं है।
पेट्रोल, डीजल तथा गैस सिलिण्डर के मूल्य मनमाने तरीक़े से बढ़वाये जा रहे हैं; जी०एस०टी० और नोटबन्दी के नाम पर देशवासियों के साथ क्रूर छल किया जा चुका है; खुदरा महँगाई वृद्धि-दर प्रतिमाह लगभग २% बढ़ती जा रही है। ऐसे में, दूर-दूर तक सरकार की ऐसी कोई भी स्पष्ट नीति दिख नहीं रही है, जिसके अन्तर्गत देश के करोड़ों शिक्षित बेरोज़गारों को नियोजित किया जा सके; देश की आयात-निर्यात-नीति पूरी तरह से असन्तुलित हो चुकी है। महँगाई वृद्धिदर और विकास-दर के मध्य बहुत अधिक अन्तर है तथा जिन-जिन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चालू ‘पंचवर्षीय योजना’ में धनराशि आवण्टित की गयी थी, वे सभी ‘दूर की कौड़ी’ दिख रहे हैं। अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में रुपया डॉलर की तुलना में ७२ रुपये से भी अधिक बढ़ चुका है।
खाने-पीने की वस्तुएँ आसमान छू रही हैं; स्वास्थ्य-उपचार, औषध, शिक्षा-परीक्षा के मूल्य बढ़वाकर जनसामान्य को शोचनीय स्थिति में डाल दिया गया है, ताकि लोग अपनी ही आर्थिक दुरवस्था में उलझे रहकर सरकार की “बाँटो और शासन करो” की गर्हित नीति और नीयत के विरोध करने का विचार तक मन में न ला सकें।
सरकार के ठीकेदार कहते हैं— हमने जनता के लिए मकान सस्ता कर दिया है। जवाब दो, ठीकेदारो! बालू के मूल्य में तीनगुणे की बढ़ोत्तरी हो चुकी है; ईंटें-सीमेण्ट महँगी कर दी गयी हैं; लोहा महँगा कर दिया गया है मज़दूरी बढ़ा दी गयी है।
सरकार की ग़लत नीतियों और अपरिपक्व आर्थिक नियोजन के कारण भारत पर अनेक देशों के साथ अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक इत्यादिक पर बहुत अधिक क़र्ज़ चढ़ चुका है। वह क़र्ज़ कितना है, सरकार इसे सार्वजनिक करे। यही नहीं, प्रत्येक भारतवासी पर कितना ऋण है, इसे भी सामने लाये।
कितना आश्चर्य होता है, हमारे ‘करों’ पर पलने-बढ़नेवाली सरकार हमें ही मुँह चिढ़ा रही है और हम कूपमण्डूक की स्थिति में ‘व्यक्ति-विशेष’ की स्तुति कर रहे हैं; और वह भी उसकी जो ‘नख-शिख’ सत्य का चोला पहने हुए, व्यक्तिवादिता को प्रश्रय देते हुए, ‘असत्य’ को भोगता और जीता है; परन्तु बताता है कि वह तो सत्य का अनुगामी है।
देशवासियो! आँखें खोलिए और अपनी-अपनी साधन-सुविधा के अनुसार सड़कों पर उतर कर समग्र व्यवस्था के विरुद्ध ‘शंखनाद’ कीजिए, वरना अत्यधिक विलम्ब हो जायेगा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १४ सितम्बर, २०१८ ई०)