केन्द्र की मोदी सरकार एवं प्रदेश की योगी सरकार जहाँ किसानों की आय दोगुनी करने व उनके जीवन स्तर को सुधारने हेतु कृत संकल्प होते हुए कृषकों के हित में अनेक योजनाएँ ला रही है वही दूसरी तरफ कुछ चंद स्थानीय वोट बैंक की राजनीति के लिए तुष्टिकरण करते हुए किसानों की फसल मटियामेट करने वालों को सरक्षण देते हैं। कैसे पूरा होगा भाजपा व मोदी-योगी का किसानों की खुशहाली का सपना? आज आपको बताएँगे ऐसी हकीकत कि कैसे रुलाया जाता है किसानों को खून के आँसू और क्यों किया जाता है उनकी फसल को नष्ट कराने वालों का खुला सरक्षण? क्यों हो चुके हैं किसानों का नुकसान कराने वाले इतने मनबढ़ और बेलगाम कि स्थानीय पुलिस प्रशासन की चेतावनी का भी नही होता इन पर असर? दिल थाम कर पढ़िए नगर पंचायत अझुवा जनपद कौशाम्बी के दिव्याँग विजय कुमार और उनके जैसे सैकड़ों किसानों की दुःखद कहानी। पूरी समस्या समझने के लिए अतीत से लेकर वर्तमान तक की स्थिति से अवगत कराने का सच्चा प्रयास करते हैं। लगभग चार दशक पहले घुमंतू जाति व जानवरों का व्यापार करने वाले किंघिरिया (बैद व टपरिया) जाति के दो परिवार अजुहा गाँव (उस समय अजुहा एक गाँव था) में घर बनाकर रहने के उद्देश्य से स्थानीय एक किसान के पास जमीन की तलाश करते पहुँचे उस समय ये लोग मुख्यतः भिक्षावृत्ति द्वारा अपना जीवकोपार्जन करते थे। महज चंद रुपयों मे उन पर दया दिखाते हुए किसान ने वार्ड नं. 2 अंबेडकर नगर अजुहा में स्थित अपनी भूमिधरी कृषि योग्य जमीन का छोटा सा टुकड़ा उन्हे झोपड़ी बनाकर रहने के लिए दे दिया। कालान्तर में लगभग एक दशक बीत जाने पर वे धीरे धीरे आबादी बढ़ने पर स्वयं और अपने कुनबे के और लोगों को बुलाकर उनके बाँकी बड़े भू भाग पर अन्य झोपड़ियों का विस्तार करने लगे। मना करने पर अनुनय विनय और अपने को घुमंतू बताकर कुछ समय में कहीं और चले जाने का हवाला देकर उनकी जमीन पर झोपड़ियाँ बढ़ाते गये।कालचक्र चलता रहा और इनकी आबादी बेहद तीव्र गति से बढ़ती गई। धीरे धीरे इन्होने अझुवा मे लगने वाले पशु बाजार के दृष्टिगत गाँव गाँव से किसानों से पशु खरीदकर स्थानीय बाजार में बेचने का व्यापार करने लगे जिसमें इन्हे काफी मुनाफा मिलने लगा तो इस व्यवसाय को विस्तार देने लगे। यहीं से शुरु हुई स्थानीय कृषकों की दुःखद कहानी। खुद के रहने के लिए जगह तक नहीं और ऊपर से बड़े पैमाने पर पशुओं का पालन और उनको रखने के लिए ये धीरे धीरे उस किसान की कई बीघे की पूरी जमीन कब्जाते हुए ग्राम समाज की उससे लगी बहुत बड़ी जमीन पर इनका कब्जा शुरु हो गया। तब तक अजुहा गाँव भी कस्बा बन चुका था। समय के अनुसार इनकी बढ़ती आबादी देखकर वोट बैंक की राजनीति के लिए तुष्टीकरण करने वाले स्थानीय नेताओं की भी इन पर मेहरबानी शुरु हो गयी और समय समय पर तत्कालीन सभासद और अजुहा के नगर पंचायत अध्यक्ष आदि भी वोट और चंद पैसों के लालच में कस्बे की खाली जमीनों पर इन्हे कब्जा करवाते गये और ये घर बनाते गये और बसते गये। इनका पशुओं का व्यापार भी बढ़ता गया। राजनीतिक संरक्षण पाकर ये सशक्त होते गये और बेलगाम होते हुए क्षेत्र के सैकड़ों किसान की फसल को अपने पशुओं से खुले आम चरवाकर उन्हे बड़ी आर्थिक चोट पहुँचाने लगे। किसान तो बेचारा वैसे भी लाचार और गरीब होता है। कर्ज लेकर और अपना व अपने परिवार का पेट काटकर खेती में रुपये लगाता है और हाड़तोड़ मेहनत करता है लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी फसल कैसी हो उसे कुछ लाभ होगा या हानि इसकी कोई गारंटी नही ऐसी परिस्थिति में भी ऐसे आततायियों की मार झेल झेलकर लगभग पिछले दो दशक से वे बुरी तरह बर्बाद होते रहे। ऐसा नहीं कि उन्होने समय समय पर इस अत्याचार का विरोध न किया हो? किसानों ने इनकी शिकायत हजारोंं बार की होगी पर कभी कोई वाजिब कार्यवाही नही हो पाती न ही इन पर कोई अंकुश या नियंत्रण लग पाता है कारण वही वोट बैंक की तुष्टीकरण की राजनीति मे अपने लाभ के लिए वही स्थानीय नेता पीठ पीछे इन्हे सरक्षण देते रहे और इनकी मदद करते रहे।
बड़ा सवाल- आखिर कैसे मिलेगा किसानों को प्रोत्साहन व संरक्षण ?
विजय कुमार-
एक बार इसी तरह बहुत से किसानों ने रोज रोज के अपने नुकसान से आजिज आकर इन पर कार्यवाही व नियंत्रण के लिए सामूहिक प्रयास किया परंतु मनबढ़ और स्थानीय नेताओं से शरण पाए ये लोग अराजकता पर उतरते हुए उन्हे काफी मारा पीटा। अब तो ये तथाकथित स्थानीय नेता इन्हे खुला संरक्षण देने लगे और इनकी आबादी बढ़ते हुए लगभग हजार में पहुँच जाने के कारण ये खुलेआम गुंडई करते हैं और किसानों की खड़ी फसल जबरदस्ती सैकड़ो जानवरों से खुल्लम-खुल्ला चरवाकर नष्ट कर रहे हैं किसान यदि विरोध करते हैं तो उन्हे मारपीट की धमकी के साथ कभी कभार मार पीट तक देते हैं। इन पर कोई नियंत्रण नही क्योंकि वोट बैंक के चक्कर में इनके तमाम मददगार व संरक्षण देने वाले स्थानीय नेता इनकी हरसंभव सहायता को तत्पर रहते हैं। किसान सिर्फ अपनी हाड़तोड़ मेहनत व ढ़ेरों रूपये लगाकर अपनी बर्बाद होती हुई फसल को देखदेख कर खून के घूँट पीने हेतु विवश है।वर्तमान स्थिति यह है कि इस अनाचार के कारण सोने जैसी फसल उपजाने वाले किसानो की खड़ी खेती काफी हद तक इनके द्वारा जानवरों से चरवा चरवा कर नष्ट करवा दी गई और शेष नष्ट होने की कगार पर है । किसान दिन में तो किसी तरह पहरेदारी करके अपनी फसल बचाने की कोशिश करता रहता है । परंतु यदि किसी समय वह किसी अन्य कार्य या भोजन करने कही चला गया या फिर रात में जानबूझकर ढ़ेरों जानवर खुल्ला छोड़कर इनके द्वारा खेती चरवाई जाती है। अब तो इध पर स्थानीय पुलिस प्रशासन की चेतावनी का भी असर नहीं होता और इनका बचाव व संरक्षण देने नगर पंचायत अजुहा की नगर अध्यक्षा के प्रतिनिधि व उनके सपा नेता पति स्वयं आ जाते हैं और नुकसान कराने वाले के सामने ही किसान द्वारा उसकी फसलों में बुरी तरह नुकसान करवाने वाले के विरुद्ध पुलिस में एफ. आई. आर. करवाने की बात कहने पर किसान को ही धमकाते हैं कि जाओ जहाँ एफ. आई. आर. करवानी हो करवाओ। जो करना हो करो हम देख लेगे। वकालत पढ़े ये व्यक्ति बताते हैं कि भारत में कोई ऐसा कानून नहीं कि वह किसानों के हितों की रक्षा कर सके। भ्रष्टाचारी लोग हर तरह से परेशान कर रहे हैं और भ्रष्टाचार के द्वारा लूटा गया कई करोड़ सरकारी रूपया और हनक सिर चढ़कर बोल रहे हैं।