
आत्मचिन्तन
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
आज़ादी के बाद से पिछले नौ वर्षों में जिस नीति के अन्तर्गत वर्तमान सरकार ने प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक क्षेत्र मे जिस तरह से खोखला कर आत्म-समृद्धि कर ली है, वह भारत की आज़ादी के बाद के इतिहास में ‘एक घिनौने’ अध्याय का रूप ले चुका है, जो निस्सन्देह, आज नहीं तो कल, लिखित इतिहास के रूप मे सामने आयेगा।
आज देश की कैसी स्थिति है, कभी किसी ने समझने का प्रयास किया है? आहार, घर, स्वास्थ्य, शिक्षा-परीक्षा, निuयुक्तियाँ, दैनन्दिन उपयोग-उपभोग की वस्तुएँ आदिक प्रतिदिन महँगी होती जा रही हैं; खुदरा महँगाई प्रतिमाह लगभग २% बढ़ रही है; सत्ता-प्रतिष्ठान मे कुण्डली मारकर बैठे लोग महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्यरत अधिकारियों से प्रतिमाह अथवा प्रतिवर्ष अवैध वसूली कराकर अपने यहाँ भेजवाते रहने का आदेश-निर्देश कर, योग्य और सत्यनिष्ठ अधिकारियों को भी ‘पापी’ बनाते आ रहे हैं; बहू-बेटियों का मान-मर्दन किया जा रहा है; दलाली और रिश्वतख़ोरी से जनसामान्य ऊब चुका है। देश का नागरिक असुरक्षित है; हमारे शिक्षित बेरोज़गार विद्यार्थी कुण्ठित बना दिये गये हैं; देश का किसान ग़लत सरकारी नीतियों, बिचौलियों से परेशान होकर प्रदर्शन कर रहा है; सरकारी नीतियों के अन्तर्गत लिये गये क़र्ज़ को न चुकाने के कारण दी जा रही धमकियों से परेशान होकर आत्महत्या करता आ रहा है। सरकारी लाभों से देश के शिक्षण-प्रशिक्षण- संस्थानों-आयोगों-समितियों मे ‘दलाल’ पाले जा रहे हैं और उनका संचालन करनेवाले फूल-फल रहे हैं; जातियों-वर्गों मे समाज को विभाजित कर दिया गया है; देश के नागरिकों की संवेदनशील नसें― धर्म-मज़हब- सम्प्रदाय विद्वेषकारी सरकार की नृशंस मुट्ठी में हैं। देश के युवाओं के साथ ग़द्दारी की जा रही है; आये-दिन हमारे जवान सैनिक नृशंसतापूर्वक मारे जा रहे हैं; साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाया जा रहा है।
कल तक विपक्ष मे रहनेवाला सत्तापक्ष तत्कालीन सरकार की जिन नीतियों और योजनाओं का विरोध करता था, संसद् की कार्यवाही स्थगित करा देता था, वही चेहरे अब सत्ता मे आने के बाद उन्हीं नीतियों और योजनाओं का गुणगान करते हुए, नाम बदल-बदलकर क्रियान्वित कर रहे हैं; सरकार की कथनी-करनी मे एकरूपता नहीं दिखती; मनचाहे निर्णय किये जा रहे हैं तथा उद्घाटनबाज़ प्रधानमन्त्री केवल बातों की जुगाली करते आ रहे हैं।
प्रतिवर्ष वर्षाकाल मे लगभग आधा भारत आवृष्टि (बाढ़) के प्रभाव में जलमग्न हो जाता है; परन्तु उसके लिए कोई निरापद व्यावहारिक उपाय तलाशने मे केन्द्र और राज्य की सरकारें पूरी तरह से अपनी अमानवीय भूमिका मे दिखती आ रही हैं। वहीं देश के विपक्षी दल भी बाढ़ से आर्त स्वर कर रहे सम्बन्धित राज्यों के नागरिकों की कोई कारगर सहायता करते नहीं दिखते। ऐसी परिस्थितियों मे, वे दल और केन्द्र का सत्ताधारी दल यह देखता है कि प्रभावित राज्यों मे किस-किस दल की सरकार है, फिर उसके आधार पर राहत कार्य की दिशा निर्धारित की जाती है। यह है, हमारे देश मे सत्तापक्ष और विपक्षी दल के आचरण की बीभत्स सभ्यता!..? भीषण जलप्लावित राज्यों के नागरिकों के प्रति न्यू इण्डिया के सत्ताधारी नेता और विपक्षी दल काँग्रेस, साम्यवादी दल तथा अन्य दलों के प्रमुख नेताओं में गहन संवेदना और स्वस्थ विचार-प्रक्रिया का अभाव दिखता है। प्रधानमन्त्री को अपनी पार्टी की राजनीति करने और शिलान्यास-उद्घाटन करने से अवकाश कहाँ मिल रहा है कि वे बाढ़ की अकथनीय मार झेल रहे, जीवन-मरण के बीच झूल रहे आबाल वृद्ध नर-नारी की व्यथा-कथा के जागरूक श्रोता और दर्शक होते।
देश के विपक्षी दलों मे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं दिख रहा है, जो विपक्षियों को संघटित कर सके; सभी के ढपली से विविध प्रकार के स्वर सुनायी दे रहे हैं। विपक्षी एकता के मार्ग मे सर्वाधिक ख़तरनाक भूमिका मे ‘मायावती’ दिख रही हैं। इसके दो प्रमुख कारण हैं :– पहला, अतिरिक्त महत्त्वाकांक्षा (प्रधानमन्त्री की कुर्सी) और दूसरा, भारतीय जनता पार्टी के अवसरवादी महारथियों-द्वारा मायावती के उत्तरप्रदेश को लूटकर अपने, अपने भाई तथा अन्य स्वजन को भरपूर लाभ पहुँचाने के साक्ष्य ‘उच्चतम न्यायालय’, ‘सी०बी० आई०’ ‘प्रवर्तन निदेशालय’ के पास होने का डर दिखाते रहना। यह सत्य है कि अपने मुख्यमन्त्रित्वकाल मे मायावती ने जिस निरंकुशता और निर्दयता के साथ उत्तरप्रदेश की जनता का पर्याप्त आर्थिक दोहन किया था, उसकी यदि निष्पक्षतापूर्वक जाँच करा दी जाती तो मायावती अपने भाई के साथ लालू प्रसाद यादव की तरह से जेल की हवा खा रही होतीं; किन्तु ‘न्यू इण्डिया’ की ‘मोदी-सरकार’, ताश के खेल मे जिस तरह से ‘ट्रम्प कार्ड’ का इस्तेमाल किया जाता है, ठीक उसी तरह से ‘राजनीति के खेल में’ ‘मायावती’ का इस्तेमाल करने के लिए उन्हें आपसी आवश्यकता और आपसी समझ के आधार पर चुप्पी साधने के लिए मज़बूर कर चुकी है। प्रश्न है, स्वयं को उत्तरप्रदेश का महत्त्वपूर्ण विपक्षी दल कहनेवाली ‘बहन कुमारी मायावती’ उत्तरप्रदेश-सरकार की निरंकुश सत्तानीति और उसके निर्णय के प्रति अभी तक मौन क्यों हैं? कथित मोदी-सरकार के अलोकतन्त्रीय कृत्यों के विरोध मे क्यों नहीं बोल पा रही हैं? विपक्षी दल की मुखरता के नाम पर समूचे देश मे एक राजनेता है, जो देश की जनता के साथ खड़ा होकर ‘न्यू इण्डिया’ सरकार की लोकविरोधी नीतियों का खुला विरोध करता आ रहा है, और वह है, राहुल गांधी। भले लोग राहुल को ‘पप्पू’ कहें, फिर भी वे एक विरोधी दल की भूमिका का प्रभावकारी ढंग से भूमिका का निर्वहण तो करते आ रहे हैं। मोदी-सरकार को यह अच्छी तरह से मालूम है कि देश मे यदि कोई प्रमुख विपक्षी दल है तो वह है, ‘भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस’। यही कारण है कि उस कथित सरकार ने ‘भारतीय जनता पार्टी’ की सरकार बनकर सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के गढ़ मे घुसपैठ कराकर सेंध लगवायी और उसे जर्जर करा दी। इतना ही नहीं, व्यावहारिक रूप से दिख रही ‘भारतीय जनता पार्टी’, ‘विश्व हिन्दू परिषद्’, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’, ‘विद्यार्थी परिषद्’, ‘संस्कार भारती’, ‘प्रमुख उद्योगपतियों’ आदिक के हित और पक्ष मे ‘मोदी-सरकार’ काम कर रही है। यह सबसे पहले इन्हीं की सरकार है, फिर कहीं जाकर ‘देश की सरकार’।
क्या यह किसी से छुपा है― सर्वाधिक विधायक, सांसद, केन्द्रीय मन्त्री, मुख्यमन्त्री, राज्यमन्त्री आरोपित और अपराधी हैं तो वह है, ‘भारतीय जनता पार्टी’ के। ऐसे मे, देश की संवैधानिक संस्थाएँ मौन क्यों हैं? फ़िल्मी दुनिया के लोग के ह्वाट्सऐप, चैट आदिक मे घुसपैठ कर किसने ‘ड्रग’ लिया; कौन ‘ड्रग पैडलर’ है आदिक की जानकारी एकत्र कर-करवा ली जाती है; परन्तु राजनैतिक क्षेत्र के जो ‘गण्यमान्य’ नेता ड्रग लेते आ रहे हैं; बलात्कार, व्यभिचार, अपहरण, छिनैती, हत्या आदिक नाना प्रकार के अपराधों मे लिप्त रहे हैं, उनके प्रति मेहरबानी किस लिए?
सबसे बड़ी बात, केन्द्र और राज्य-सरकारों के पास नौकरियाँ नहीं हैं। हमारे युवावर्ग को सरकारी नीतियों ने बुरी तरह से घायल कर दिया है। अन्नदाता के रूप मे जाने जानेवाले हमारे किसान अपने-अपने राज्यों की सरकारों की विघटनकारी नीतियों के कारण संत्रस्त हो चुके हैं; कहीं-कोई सुननेवाला नहीं।
ऐसे मे, सबसे पहले हमारे-आपके घरों मे जो चोर, बेईमान, भ्रष्ट, उचक्के, बलात्कारी, रिश्वतख़ोर, सामन्तवाद आदिक कुत्सित चरित्र को जीनेवाले गर्हित मानसिकतावाले ‘माँ-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी, भतीजा-भांजा, मामा-मामी, भवह-भौजाई, ननद-ननदोई, बहनोई, दामाद-बहू ससुर-सास, बेटे-बेटी, चाचा-चाची, काका-काकी, नाना-नानी, दादी-दादा आदिक सगे-सम्बन्धी कुण्डली मारकर बैठे हुए हैं, उन्हें अपनी-अपनी समाजविरोधी आदतों मे सुधार करने होंगे। ऐसे मे, अपना देश समृद्धि-सम्पन्नता के मार्ग पर चलता दिखेगा, फिर किसी भी प्रकार के नेता की हिम्मत नहीं होगी कि वह हमारे देश और नागरिक के साथ छल कर सके।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३१ अक्तूबर, २०२३ ईसवी।)