इंसानियत को खा गयी है, भूख आपकी

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

घड़ियाली आँसू, न अब बहाइए हुजूर!
मन में हमारे क्या है, अब सुनाइए हुजूर!
बातें मन की सुनाते हुए, सुला दिये हमें,
चेहरा-पे चेहरा, अब न लगाइए हुजूर!
तिकड़मी चाल आपकी, सब जान चुके हैं,
रुख़ से पर्दा अपना, अब हटाइए हुजूर!
छल-कपट की आड़ में, सत्ता पाये आप,
बेवजह मुखौटा, न अब लगाइए हुजूर!
इंसानियत को खा गयी है, भूख आपकी,
ख़ैरियत इसी में, अब चले जाइए हुजूर!

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ मई, २०२१ईसवी)