सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’ के साथ साक्षात्कार :- मजबूत इरादों के शिवांकित खुले आसमान में उड़ने को हैं तैयार

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’ –

उम्र भले ही छोटी है इनकी, मगर इरादे बहुत मजबूत हैं। ये है मध्यप्रदेश के सतना जिले के निवासी शिवांकित तिवारी ‘शिवा’ जिनको बचपन से कविताएं लिखने का शौक रहा है और इसी शौक के कारण आजकल काफ़ी चर्चित हैं और स्तरीय अख़बारों में उनकी रचनाएं आये दिन प्रकाशित होती रहती हैं । हाल में ही उन्हें “ब्लॉगर ऑफ द ईयर 2019” के लिए चुना गया है। आइये जानते है शिवांकित जी के बारे में । IV24 News (indianvoice24.com) से हुई खास बातचीत में इन्होंने सवालों के जवाब बहुत बेहतरीन ढंग से दिये । 

1.आप अपने बारे में बताईये।

मेरा नाम शिवांकित तिवारी ‘शिवा’ है। मैं एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखता हूँ। पिताजी किसान है और माँ गृहणी है। मेरा जन्म मध्यप्रदेश के सतना जिले के गाँव बिधुई खुर्द में एक जनवरी 1999 में हुआ। मेरा पूरा बचपन गाँव में ही एक आम और साधारण लड़के के रूप में व्यतीत हुआ है।

2.अभी आप क्या कर रहें है और आगे क्या करना चाहते हैं ?

अभी मैं ‘विजयाश्री आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज एवं हॉस्पिटल’ जबलपुर से आयुर्वेदिक चिकित्सक की पढ़ाई कर रहा हूँ। इसके साथ-साथ मैं माँ हिन्दी की सेवा में तत्पर हूँ । लगातार हिन्दी भाषा को पहचान दिलाने के लिये काम कर रहा हूँ। मैं आगे एक सफल चिकित्सक के साथ एक सफल कवि, लेखक और एक प्रेरणास्पद वक्ता बनकर अपने गाँव, शहर, परिवार और देश का नाम रोशन करना चाहता हूँ।

3.कविता लिखने की शुरुआत कब और कैसे हुई ?

इसकी कहानी तो बड़ी लम्बी है, मगर संक्षिप्त: जहाँ तक मुझे याद है जब मैं कक्षा 9वीं में था, तब मैनें 10 पँक्तियाँ माँ के लिये लिखी थी जो कविता जैसी तो नहीं थी मगर वह मेरी पहली कविता थी जिसने मुझे लिखने के लिये प्रेरित किया और उसके बाद मैं कभी रुका ही नहीं बस लिखता गया।

4.अभी तक कितनी कवितायें लिखी हैं और कितनी बार मंच साझा किया हैं ?

ऐसे तो कभी कोई गिनती नहीं की है, हां मगर बहुत सी कवितायें लिख चुका हूँ। जैसे- माँ और पिता के ऊपर मैनें अनगिनत कवितायें लिखी हैं। ‘जुल्म और जुर्म’, ‘इश्क़ है तुमसे’, ‘सुनो न आज भी सिर्फ तुमसे ही प्यार करते हैं’, ‘अधूरा चाँद’ , ‘दिल की बातें’, ‘मोहब्बत-ए-दास्ताँ’, ‘वजह तुम हो’, ‘नारी तुम अभिमान हो’ इत्यादि बहुत सी कवितायें लिखी हैं। समय के अभाव के कारण मैं मंचों पर बहुत कम उपस्थित हो पाता हूँ।  मगर कुछ मंचों में अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराई हैं मगर अभी बड़े मंचों की तलाश में हूँ। नेक इरादों के साथ आगें बढ़ने की जद्दोजहद जारी हैं।

5.अपनी खूबियों के बारें में बताइये

अपनी खूबियों का बखान मैं स्वयं नहीं कर सकता क्योंकि मुझे लगता है खुद के बारे में खुद ही प्रसंशा करना भी एक निंदनीय कृत्य है। हां, मगर लोगों की नजरों से कहूं तो लोग मुझसे यही कहते हैं कि शिवांकित तुम किसी भी पॉजिटिव चीज को बहुत जल्दी पकड़ते हो, तुम अच्छा बोलते हो, तुम अच्छा लिखते हो और तुम्हारी तार्किक क्षमता गजब की है।

6.आपका अगला कदम हिंदी साहित्य के लिए क्या होगा जिससे आपकी ख्याति पूरे देश में फैले ?

वैसे तो मैं प्रतिदिन, प्रत्येक क्षण मां हिंदी से जुड़ा हूं । मां हिंदी की सेवा और साधना में रत हूं। अगर मैं अपने संबंध की बात करू तो हिंदी के साथ बिल्कुल मेरा संबंध मां – बेटे जैसा ही है। मेरा अगला कदम जो कि हिंदी साहित्य को नवीन दिशा की ओर ले जायेगा मैंने हिंदी में हस्ताक्षर करने के लिए “हस्ताक्षर अभियान” से करीब हजारों लोगों को जागरूक किया है । उन्हें हिंदी भाषा के महत्व से अवगत कराया है। प्रत्येक दिन मैं स्वयं को मां हिंदी के लिए समर्पित करता हूं। साथ ही साथ मेरी स्वयं की पुस्तक जो बहुत जल्द लॉन्च होने वाली है; जो कि ख्याति अर्जित करने में बहुत मददगार साबित होगी। मेरी इस पुस्तक का शीर्षक “धुत्त” है जो कुछ महीनों में आपके सामने होगी। इसकी दो लाइनों से मैं आपको रूबरू कराता हूं…अतीत  को  अपने  हमेशा   करता  मैं   आवृत्त  हूं, मैं शून्य से उठकर शिखर तक के सफर में “धुत्त” हूं

7.परिवार का कितना सपोर्ट मिलता है ?

परिवार का काफ़ी सहयोग मिलता है। ख़ासकर मां का वो मुझे काफ़ी हिम्मत देती है। एक पिता होने के नाते पापा थोड़ा असहज रहते है मगर फिर भी वो आंतरिक रूप से सहयोग करते है। मेरे बड़े भाई अभिलाष, ओम, अभिषेक ये काफ़ी सहयोग करते है और सदैव मुझे बढ़ावा देते रहते है। आज इन भाइयों की वजह से ही मैं यहां तक पहुंचा हूं।

8.आपकी हमउम्र के कितने साथियों का हिंदी साहित्य के प्रति रुझान बढ़ा है और क्या वो आपको सपोर्ट करते हैं ?

सर्वप्रथम तो मेरे आदर्श बड़े भैया और मेरे साहित्यिक गुरु आदरणीय संदीप द्विवेदी जी का दिल से धन्यवाद करता हूं जिन्होंने मुझे हर कदम पर निखारा और भरपूर सपोर्ट किया। उसके बाद अगर मेरे उम्र सदृश साथियों की बात की जाए तो ऐसे बहुत से लोग है जिन्होंने मुझे देखकर हिंदी साहित्य की ओर रुख किया और हिंदी साहित्य के प्रति अपनी गहरी आस्था बना ली है । जहां मुझे सपोर्ट करने की बात आती है तो मेरे कुछ साथी जो एक कुशल मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते है, उनमें सबसे पहले श्रेया गौतम जिससे मैं अपनी सारी साहित्यिक चर्चाएं करता हूं और वो हमेशा मुझे सुनती और सपोर्ट करती है। मेरे चुनिंदा दोस्तों में से जो हिंदी साहित्य से प्यार करते है और मुझे हरसंभव सपोर्ट करते है उनमें शिवांश, नियंता, योगेश, गौरव, नागेन्द्र दादा, विजय भैया, अंकित, समित भाई, वरुनेंद्र, आशीष ‘निर्मल’ के साथ ही बहुत सारे साथी और बड़े भाई जो कि सदैव मुझे सपोर्ट करते है । आपके चैनल के माध्यम से आज उन सभी का शुक्रिया अदा करता हूं ।

9.आपकी रचनाएं आजकल बहुत सारे अख़बारों में आती है तब आपको कैसा महसूस होता है ?

अब तो ज्यादा समय नहीं मिलता अख़बार पढ़ने का पर जब पहले लोगों को अख़बार में देखता था तो मन में एक कसक उठती थी कि काश कभी मैं भी अख़बार में आ पाऊं। कभी मुझे भी लोग अख़बार में देखे और पढ़े । आज ये भी दिन है की राष्ट्रीय स्तर के सारे अख़बारों में मेरी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं और कई ख्याति प्राप्त पत्रिकाओं में भी मेरी रचनाओं को स्थान मिलता रहता है। मुझे आज भी काफ़ी प्रसन्नता होती है और जब लोगों की प्रतिक्रियाएं मिलती है तब और ज्यादा खुशी होती है।

10. आप हिंदी साहित्य की नि:स्वार्थ सेवा में तत्पर है,आप आने वाले नये कलमकारों को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?

देखिए सर्वप्रथम यह कहूंगा कि अगर आप हिंदुस्तान में निवास करते है तो आपका प्रथम आकर्षण मां हिन्दी के प्रति होना चाहिए । बाद में अन्य भाषओं को महत्व देना चाहिए । क्योंकि हमारी पहचान सिर्फ और सिर्फ हिंदी भाषा से है । यदि हमारा वर्चस्व कायम हो सकता है तो सिर्फ हिंदी भाषा को आगे लाकर । इसलिए मेरी अपील है कि सभी हिंदी भाषा से जुड़े और इसे इतना ही महत्व दे जितना आप अपनी मां को देते है। नवोदित कलमकारों से बस इतना ही कहूंगा “लिखो क्योंकि कलम आजाद है”, लेकिन अर्थपूर्ण लिखो और मां हिंदी का सम्मान और नाम बढ़ाते रहो। कभी भी किसी रस या विधा में बंधकर मत रहो । आप स्वतंत्र हो आपकी कलम स्वतंत्र है । बस लिखो और तब तक लिखते रहो जब तक तुम्हारे तन में सांस है।