क्या प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) की मृत्यु को स्वाभाविक मान लिया जाए

सुधान्शु बाजपेयी (रिसर्च फेलो)-


कल सुबह अखबार में प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) की त्रासद मृत्यु की खबर देखी तो ऐसे लिखी गई मानो वह स्वाभाविक मौत मरें हो, बगल में ही *प्रधानमंत्री का बेशर्मी भरा बयान कि वह उनकी मौत से दुखी हैं। उफ कितनी बेशर्मी, *112 दिन से अनशनरत, तीन दिन से जल त्याग चुके प्रोफेसर* को सारे डाक्टर्स कह रहे थे , बचाया नहीं जा सकता लेकिन सरकार ने उनकी एक जेनुइन सी मांग कि माँ गंगा की अविरल धारा बनी रहे, तभी हिमालय भी बचेगा और हिन्दोस्तान भी । कारपोरेट्स के मुनाफे के लिए जारी डैम और गंदे नालों बंद हों, लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी । प्रधानमंत्री मोदी को तब एक भी बार दुख नहीं हुआ । यह मौत नहीं हत्या है और हत्यारी मोदी सरकार है , जो अडानी-अंबानी समेत तमाम थैलीशाहों के मुनाफे पर आंच नहीं आनें देगा, भले ही माँ गंगा खत्म हो जाएं, देश खत्म हो जाए।

प्रोफेसर साहब जो आइआईटी में शिक्षक थे, पर्यावरण की दुनियां में में विश्वविख्यात थे उन्होंने ऐशोआराम भरी जिंदगी छोङ माँ गंगा की सेवा का रास्ता चुना, भगवा चोला पहना, पूरे देश में माँ गंगा को बचाने के अभियान चलाये,अब 112दिन से अनशन पर थे, उस दौर में जबमाँ गंगा के नाम पर वोट बटोरने वाला स्वघोषित गंगापुत्र देश का पीएम था, नमामि गंगे के नाम पर 40 हजार करोड़ रुपये माँ गंगा के बजाय भ्रष्टाचार की भेंट चढ चुके थे,उमा भारती जी माँ गंगा साफ न होने पर जलसमाधि का झूठा जुमला फेक रहीं थीं।

यह मृत्यु इसलिए भी त्रासद है कि महात्मा गाँधी का नाम जपने वाली सरकार अंग्रेजी सरकार से भी ज्यादा निष्ठुर हो जाती है, कि उनके रास्ते पर चलने वाले प्रोफेसर की मृत्यु तक हो जाती है लेकिन सरकार को होश नहीं आता।

जनता का आक्रोश भी कितना प्रायोजित है जो साक्षात जीवनदायिनी माँ गंगा के लिए एक बार भी विचलित नहीं होता,जहाँ तय है माँ गंगा नहीं बचीं तो सच में देश भी न बचेगा, हिमालय-पेयजल-खेती सहित बहुत कुछ तबाह हो जाएगा* लेकिन कभी पदमावती कभी अलीगढ़ कभी जेएनयू पर उबाल मारने लगता है।