इश्क़ की गलियों में जाना सोच कर, रह गए कितने ही हो बदनाम से

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ-


दिल दहल जाएगा मेरे नाम से |
सब बदल जाएगा मेरे काम से ||

दुश्मनों से जा के कह दो आज तुम |
मैं नहीं डरता हूँ अब अंजाम से ||

इस क़दर चाहूँगा मैं तुमको सनम |
तुम मुझे सोचोगी ज़ौ तक शाम से ||

मंज़िलें पाने की ख़ातिर है सफ़र |
मैं गुज़रता राहों पर अय्याम से ||

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इन दिनों वो मुझसे मिलता है नहीं |
रात ये बीतेगी कब आराम से ||

‘मन’ अगर हो तुम को मेरा देखना |
तुम मिलो इस दिल में आ ख़य्याम से ||