
राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’—
सारी दुनिया में आतंक का पर्याय माने जाने वाले गजनवी, गौरी, बाबर, ओसामा बिन लादेन और गद्दाफी सरीखे लोगों को भी मुस्लिम आतंकवादी और मानवता का हत्यारा नहीं बल्कि अपना आदर्श मानते हैं। मुस्लिम तो सार्वजनिक रूप से निर्दोषों की हत्या करने वाले अजमल कसाब को भी हत्यारा नहीं बल्कि एक जिहादी ही मानते हैं ।
कुछ दोगले और वर्णसंकर किस्म के लोग (जिन्हें आधुनिक बोलचाल की भाषा में सेक्युलर भी कहा जाता है) भी मुस्लिम आतंकवादियों की तरफदारी करते हुए आतंकवाद को धर्म से न जोड़ने की सलाह देते नजर आ जाते हैं। ऐसे सेक्युलर; इस्लामी आतंकवाद का कारण मुसलमानों पर किये गये अन्याय, अत्याचार, भेदभाव और उपेक्षा को बताते हैं। ईरान के मुल्ला आयातुलाह खुमैनी ने भी कहा है – “इस्लाम का असली आनंद लोगों की हत्या करना और अल्लाह के लिए मर जाने में है” ।
परिवर्तन प्रकृति का कानून है और इस्लाम परिवर्तनों का विरोध करता है । पवित्र कुरान में जो लिखा है इस्लाम अक्षरशः उसी का पालन करता है । समय के साथ न जाने कैसी-कैसी परिस्थितियाँ आती हैं, इन सबसे निबटने के लिए ज़रूरी नहीं कि दो हजार साल पुराने तौर-तरीके कारग़र ही साबित हों । हमें प्रकृति के साथ सन्तुलन साधने की आवश्यकता होती है किन्तु इस्लाम सारी मर्ज़ों का इलाज उसी एक किताब में ढूँढता है। अगर हिन्दू सारे नियम और कानून मनुस्मृति के आधार पर बनाने लगे तो सनातनी सभ्यता के ख़त्म होने मे समय ही नहीं लगेगा। शायद यही कारण रहा कि धीरे-धीरे मनुस्मृति की सनातन धर्म में उपयोगिता नहीं के बराबर हो गयी; जबकि मनु-स्मृति के विधान कुरान की अपेक्षा आज भी श्रेष्ठ हैं। मनुस्मृति न्यायशास्त्र और दण्डविधान का आधार है। फिर भी आज के समाज मे उपयोगी नहीं। जो समाज वर्तमान के साथ क़दमताल नहीं करता; पिछड़ जाता है और उसकी कोई सामाजिक उपयोगिता नहीं रहती। कुछ ऐसी ही हालत इस्लाम की भी है।
दुनिया के 57 मुस्लिम देशों ने इस विश्व की भलाई के लिये क्या किया है? कुछ भी तो नहीं! हाँ आतंक की खोज करके विश्व को आतंकवाद की विभीषिका ज़रूर दी है।
इस्लामी विचारधारा का दर्शन “एकोऽहम द्वितीयो नास्ति” का है। इस्लाम ख़ुद को अच्छाइयों का और अन्य धर्मो को बुराइयों का प्रतीक बताता है। अब हर भारतीय को जाति-धर्म से परे जाकर भारतीय अक्षुण्णता को सलामत रखने की शपथ लेनी होगी। वर्तमान स्थितियों मे भारत सबसे ज्यादा कमज़ोर सामाजिक स्तर पर ही नज़र आता है। आज समाज; देश से ऊपर स्वहित को देख रहा है और राष्ट्रीयता के साथ-साथ देशप्रेम का जनाज़ा उठाने को कमर-कसकर तैयार बैठा है ।