“जय हो बरहम बाबा; जय हो काली माई! हो निसतनिया के अचके उलटाव!”

इही काहाला असलिका भोजपुरी; एकर माजा लीहीं सभे

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आहि ए दादा! हो टुअरी क देख ना। हो मचनिया पर कौआ क हाँकत-हाँकत का-का कह तीया। बुझाता जइसे केहू सुतला मे बराता।
आईं सभे तनी ओकरा कगरी आ देखलु-समझलु जाइ कि का-का बक तीया।
अरे बबो-रे-बबो! इत केहू क सराप तीया। आच्छा त सुन तानी।”
कह तीया, “देख! बूढ़वा कइले बा अनेत, मुअला पर पनियो ना जुरी। ऊ दुरगतिया होखी ओकर, हेनर-बेनर सब होइ ओकर। ओकरा क जेतना सरापलु जाउ ओतने कम बा। अचक बान आई आ ओकरा क सुता जाई। काहें से कि बाड़ा मनसहकल होइ गइल बा। बूझ ता कि ऊ कौउआ क जिभिया खाइ क आइल बा। दैव कब आपन चक्कर चलइब, जैसे कि उ सार क टिकसवा कटि जाउ”
फेर बकबका तीया, “पँचफेड़वा क क बरहम बाबा आ सतपोखर क कँकार ! तहनी क केने उधियाइल बाड़न स रे? निसतनिया क गरदनिया दाबि क कुल्हि खेलवा क खतम कर, ना त ऊ मटिलगना, जियहूँ ना दीही आ मुअहूँ ना दीही। ओसे पहिले कवनो रतिया ओ सहकल बुढ़वा क छतिया पर हहियाइ क चढ़ स आ जबले ओ सार क पारान ना निकले तब ले धँसकइले रह स।”
उ बाझते नइखे; तबे त गोड़वा क पटकि-पटकि क कहत रह तीया, “पोखरा के टूटाबीर बाबा आ साँप-गोजर, बिच्छी! केने बाड़ू स रे? सेकराहे-सेकराहे ओ रँड़ुआ आ भँड़ुआ क गतर-गतर छिहर क ओमे जहरिया उतारि द स। आ ए मितर कोरोना! ‘कोबिड― १९’ क सोगहग बिसणुआ ओ निरदइया क देहिया मे घुसाई क हमनी क बचाइ ल। जय हो सितालो माई! तहार ओरदाई बढ़ि जाई जब ए कलिजुग क बाड़का पपिया क उठाइ लेबू। का हो बरखा आ बिजुरी रानी! अरे अचके ओ सार क मुड़िया आकासवा क फटाव आ बिजुरी ओकरा देहिया पर गिराव ना। जय हो बइरिया बाबा! अचक बान भेज।”
फेर नकियाइ-नकियाइ के बोले लागलु, “अरे देसवा क गढ़वा-गुढ़इया! बाड़ा दियानत बिगड़लेबा। ओ पपिया क गोड़वो सब दिन खातिर मुरकाइ दँ सँ। जय हो परकिरित महारानी! अँखिया खोल आ आपन चमतकरिया क पिटरिया मे से आपनु खतरनाक-खतरनाक चिजुइया निकाल आ ओ मटिलगना, सुरतवलवा क ‘रामनाम सत कर। जब ले जीही, अनेति आ गजन कइले रही”
ओकर सरपिया सुनि-सुनि हमरो माथा तीन सउ साठि डिगिरिया पर घूमे लागल। ओहि बेरिए पूछि लेहनी, “का रे मटिलगनी! केकरा क सराप तारे?”
त उ कहे लागल, “तें के हवे रे? हम आपनु मुँह पिटाईं। जो होने जाइके आपनु रास्ता नाप।”

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २८ अगस्त, २०२३ ईसवी।)