राज चौहान (ब्यूरो प्रमुख हरदोई)-
आइए पहले दीपावली की शुभकामनाएं दे दें, बाद में कहीं अगर हिंदुत्व को ठेस पहुँची तो शायद कुछ लोगों को स्वीकार न हो।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं, रामलीला से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री की योगी लीला तक की शुभकामनाएं।
मुझे पता है कि कुछ लोग ज़रूर कहेंगे कि आख़िर मुस्लिम के त्यौहारों पर बोलने की हिम्मत क्यों नहीं होती । हिन्दू होकर ही हिन्दू धर्म और त्यौहारों की खुशियां हज़म नही होती, पर मैं मात्र इतने डर से लिखना बंद नही करूँगा।
मैं लिखूंगा,, मैं सोचने पर विवश करूँगा,, ताकि आप भी कहें काश… रामराज होता।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राजारामचंद्र जी का राज कैसा था? उनके युग मे वहां की जनता कैसी थी ? उनका राज्य उनकी सत्ता से कितना सन्तुष्ट था, क्या वाकई वो एक सफल राजा थे ?
हां थे… ये कतई कहना ग़लत नही होगा, तो फिर जब सूबे के मुख्यमंत्री से लेकर कार्यकर्ता तक रामराज लाने की बात कर रहे तो आख़िर वो रामराज क्या त्रेतायुग जैसा ही सभी नागरिक, विद्वान (यानी राज्य का हर एक नागरिक शिक्षित), कार्यकुशल (यानी बेरोजगारी नाम की चीज़ ही नही), सभी धर्म और धार्मिक स्थलों का सम्मान करने वाले नागरिक( यानी हिन्दू- मुस्लिम की राजनीति नाम की भी चीज़ नही।) क्या ऐसा रामराज लाना चाहती है सरकार?
अब शायद कुछ लोग ये भी बोलें वो त्रेतायुग युग था, तब मानव लोभी, लालची, आदि आदि नहीं था।
आखिर क्या उसवक्त की वजह थी । जनता मानवता के केंद्र पर टिकी थी । आज की सत्ता की तरह हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर राजनीति करके मानवता के नाम को ही विलुप्त करने की कवायद या फिर रामराज लाने की बात मात्र राजनीति भर करने के लिए, राम लीला और योगी लीला तक ही सीमित नहीं थी ?
क्या रामराज पर सरकारें करती हैं अमल?
या जनता ने रामराज हिन्दू-मुस्लिम कट्टरपंथी ही समझ लिया?
आख़िर असलियत में रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कैसे रामराज की व्याख्या की, क्या रामराज हम लाएंगे नारा लगाने वालों ने उसे समझा पढा या सुना?
या सिर्फ मुस्लिम विरोधी ही रामराज समझ लिया?
सवाल बहुत हैं, घुमाकर जवाब भी बहुतेरे हैं, पर सामने से सही मायने में जवाब शायद रत्ती भर।
जहां तक मैं समझता हूं कि रामचरित मानस में जिस रामराज की बात हुई उस रामराज में किसी धर्म के प्रति उस राज्य में कोई मतभेद नही था । सभी एक दूसरे के धर्म का सम्मान करते थे, जो कि आज नही है तो कैसे लाएंगे रामराज?
तब शायद ही ऐसा कोई प्राणी राज्य में हो जो रोगी हो बीमार हो । आज- कल तो दिन-प्रतिदिन, साल दर साल आंकड़ें अचम्भित करने वाले आते हैं जिसमें गतवर्ष से मृतकों की संख्या बढ़ती ही जा रही, कैसे लाएंगे रामराज?
उस वक्त का हर एक व्यक्ति शिक्षित होता था बुद्धिमान होता था और अपने रोजगार के साधन खुद उत्पन्न कर लेता था, अब जब राज्य में दब जाने वाली शिक्षा ही इतनी बदतर है साथ ही यह पढे लिखे ही अनपढ़ों की संख्या में वृद्धि कर रहे हैं और रोजगार का तो नाम ही न लें जब लोग शिक्षित ही नहीं तो कैसे खोजेंगे रोजगार के रास्ते? और कैसे आएगा रामराज?
ऐसे कई मुद्दे हैं जो सरकारें आँखे मूदें हैं और त्रेतायुग के रामराज की बात करती हैं, मैं समझता हूं कि धर्म के नाम पर राजनीति करना भी धर्म से खिलवाड़ से कम नहीं।
लिखने को तो शायद रात कम पड़ जाए रामराज लिखते लिखते पर आखिर में इतना ही कहना चाहूंगा कि अगर रामराज होता तो पटना के एम्स के बाहर बच्ची आज जीवित होती।
काश रामराज होता………………