कंझावला-अंजलिहत्याकाण्ड― दिल्ली-पुलिस की कर्त्तव्यहीनता सामने आयी!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

मृतका अंजलि और उसकी कथित सहेली निधि की पृष्ठभूमि और कार्यप्रकृति को भी खंगालने की ज़रूरत है। निधि ने इतनी जल्दी घर कैसे ख़रीद लिया था? वह कौन-सा काम करती है? अंजलि वास्तव मे, कौन-सा काम करती थी? दोनो नये-नये लड़कों के साथ होटलों मे क्या करने जाती थीं? अंजलि ‘इवेण्ट ऑर्गनाइज़र थी वा और कुछ?

अंजलि

अंजलि को छ: माह पहले भी कार से कुचला गया था, तब वह दिल्ली के सफ़दरजंग हस्पताल मे भरती थी और दो दिनो तक बेहोश रही थी। यदि दिल्ली-पुलिस उसी समय सजग रहकर काररवाई की होती तो शायद अंजलि बच सकती थी। उस समय पुलिस की ओर से उसके परिजन तक दुर्घटना की सूचना पहुँचाकर दिल्ली-पुलिस ने अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली थी।

निधि को गिरिफ़्तार कर, उससे पूछताछ करने की ज़रूरत है; क्योंकि घटना की सभी कड़ियों मे ‘निधि’ का ही चेहरा दिख रहा है। अभी तक दिल्ली-पुलिस निधि के साथ कठोरता के साथ पूछताछ क्यों नहीं कर रही है? दिल्ली-पुलिस ने निधि का फ़ोन ‘सर्विलांस’ पर क्यों नहीं लगाया है? उसका मोबाइल फ़ोन क्यों नहीं लिया है?

निधि के मुहल्लेवाले बताते हैं :― निधि का उसकी माँ और भाइयों के साथ १० वर्षों से कोई सम्बन्ध नहीं है। उसे उसके घरवालों ने घर से बाहर कर दिया है। ऐसे मे, प्रश्न है― फिर घटनावाली रात्रि निधि अपनी माँ के घर क्यों पहुँची थी? वह अपने-द्वारा ख़रीदे गये घर मे क्यों नहीं गयी थी? अब निधि की माँ उसके पक्ष मे क्यों आ गयी है?

जब दिल्ली-पुलिस को मालूम हो गया था कि अंजलि और निधि कुछ लड़कों के साथ होटल ‘विवान’ के अलग-अलग कमरों मे थीं और उनका ‘अज्ञात’ विषय को लेकर आपस मे ऐसी लड़ाई हुई थी, जो ‘होटल से सड़क तक’ पहुँच गयी थी और सड़क पर पहुँचते ही अंजलि की हत्या हो जाती है तब पुलिसवाले तत्काल उस कथित होटल मे क्यों नहीं गये थे? उक्त घटना की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी वह होटल है, जहाँ अंजलि और निधि अलग-अलग लड़कों के साथ जाती थीं। ऐसे मे, उस होटल की कार्यपद्धति भी समझने की ज़रूरत है। कहीं ऐसा तो नहीं, उस होटल मे अय्याशी करनेवाले लड़की-लड़कों से शरीर का धन्धा कराया जाता है वा फिर अय्याशी करनेवाले लड़की-लड़कों से एक मोटी रक़्म लेकर कमरे दिये जाते हैं?

ये ऐसे प्रश्न हैं, जो दोनो के वास्तविक चरित्र को उजागर करते हुए, घटना के कारणो का उद्घाटन करते हुए दिखेंगे।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ६ जनवरी, २०२३ ईसवी।)