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कर्नाटक के चुनाव मे ‘भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस’ का वर्चस्व

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

—–० चुनाव-विश्लेषण०—–

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रमुख राजनेता राहुल गांधी की संसदीय सदस्यता का अपहरण कर लेने के अनन्तर उनका संसदीय क्षेत्र ‘वॉयनाड’ इस समय अति संवेदनशील बन चुका है। मुख्य चुनाव-आयुक्त राजीव कुमार ने कर्नाटक-विधानसभा-चुनाव-उप-चुनावों की तिथि १० मई घोषित कर दी है, जिसका परिणाम १३ मई को घोषित किया जायेगा।

इस समय कर्नाटक मे ५ करोड़ २१ लाख ७३ हज़ार ५ सौ ७९ मतदाता हैं, जो १० मई को २२४ विधानसभा की सीटों के लिए मतदान करेंगे। इतना ही नहीं, १ अप्रैल को १८ वर्ष की अवस्था पूर्ण करनेवाले नागरिक भी मतदान कर सकेंगे।

हम यदि पिछले चुनाव की बात करें तो वर्ष २०१८ के कर्नाटक-विधानसभा-चुनाव मे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को ७८ सीटें मिली थीं; भारतीय जनता पार्टी ने १०५ सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि जे० डी० एस० ३७ सीटें जीती थीं। आगे चलकर, भारतीय जनता पार्टी ने अपनी चिर-परिचित कूटनीतिक चाल चलकर वर्ष २०१९ मे जे० डी० एस० और काँग्रेस-गठबन्धन के विद्रोही विधायकों को शामिल कर अपनी सीटें बढ़ाकर १२३ तक कर ली थी।

हम भारतीय चुनावी परिदृश्य के अन्तर्गत देखते आ रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नेता मुहल्ले-स्तर के चुनावों मे भी ‘मोदी’ का चेहरा दिखा-दिखाकर चुनाव लड़ते आ रहे हैं। ऐसे मे, एक प्रश्न उभर चुका है― इस बार कर्नाटक का विधानसभा चुनाव ‘मोदी’ बनाम सिद्धारमय्या’ होगा अथवा ‘येदियुरप्पा बनाम सिद्धारमय्या’ होगा वा ‘मोदी बनाम राहुल गांधी’ होगा? इसमे भी कोई दो राय नहीं कि यह चुनाव ‘भारतीय जनता पार्टी’ बनाम ‘काँग्रेस’ के रूप मे दिखेगा। एक अन्य दल ‘जे० डी० एस०’ है, जो पिछले चुनाव मे काँग्रेस का सहयोगी दल था, इस बार अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुका है। वहीं ‘आम आदमी पार्टी’ और ‘ए० आइ० एम० आइ० एम० की उपस्थिति चुनावी माहौल को रोचक बना सकती है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता।

अब यहाँ एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है, जिससे हम आँखें नहीं चुरा सकते, और वह यह है― क्या नरेन्द्र मोदी का चुनावी अभियान और उनकी सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर्नाटक-विधानसभा के चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं? उत्तर सुस्पष्ट है― बेशक, दुष्प्रभावित करेंगे; परन्तु इतना नहीं कि वह सरकार बना सके। ‘मोदी और उनके चाणक्य’ कर्नाटक मे ‘हिन्दू’ और ‘हिन्दुत्व’ का गन्दा खेल खेलने से चुकेंगे नहीं; परन्तु अब जनता उनकी चाल समझ चुकी है।

हमने पिछले दिनो हिमाचलप्रदेश के चुनाव-परिणाम को देखा है। वहाँ नरेन्द्र मोदी और उनका सरकारी तन्त्र पूरी तरह से छाया हुआ था; परन्तु वहाँ के मतदाताओं ने पहले से ही भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के पक्ष मे मतदान करने का निर्णय कर लिया था। कर्नाटक मे भी ठीक वही स्थिति दिख रही है। जनता ने अब जागना शुरू कर दिया है।

इस समय कर्नाटक मे मतदाताओं के सम्मुख इतने विषय हैं, जो वर्तमान सरकार के विरुद्ध जाते हैं; जैसे― लिंगायत-वोक्कालिगा-आरक्षण, कावेरी जल-विवाद, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी तथा मुसलमानो के साथ भेद-भाव। जबसे कर्नाटक मे भारतीय जनता पार्टी की सरकार का गठन किया गया है तबसे वहाँ ४० प्रतिशत की कमीशनख़ोरी, हत्या, ग़बन, भ्रष्टाचार, कदाचार चरम पर हैं।

हमने कर्नाटक मे मुसलमानो के अधिकारों के साथ अन्याय करने और उनके मज़्हबी गतिविधियों मे अनावश्यक हस्तक्षेप करने तथा शिक्षण-संस्थानो मे मुसलिम छात्राओं के साथ तथाकथित हिन्दूवादी संघटनो का दुर्व्यवहार देखा है, जो निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी के विरोध मे जायेंगे। स्मरणीय है कि २७ मार्च, २०२३ ई० को कर्नाटक की भा० ज० पा०-सरकार ने मुसलमानो को दिया जानेवाला ४ प्रतिशत का आरक्षण समाप्त कर, उसे आर्थिक रूप से दुर्बल नागरिकों को दिये जानेवाले १० प्रतिशत के आरक्षण मे सम्मिलित कर दिया था; दूसरी ओर, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने मुसलमानो के आरक्षण-लाभ को वापस देने की घोषणा कर दी है। यह वही मुसलमानो का आरक्षण है, जिसे वर्ष १९९४ मे एच० डी० देवेगौड़ा-सरकार ने सामाजिक आधार पर पिछड़ा मानते हुए, मुसलमानो को सरकारी सेवाओं और शिक्षा मे पहली बार उन्हें आरक्षण का लाभ दिया था। इस दृष्टि से राज्य मे मुसलमानो की १२.९१ प्रतिशत की संख्या काँग्रेस के लिए लाभप्रद सिद्ध होती दिख रही है।

कर्नाटक की कुल जनसंख्या ६ करोड़ ११ लाख है, जिसमे हिन्दू ५ करोड़ १३ लाख (८४ प्रतिशत), मुसलमान ७९ लाख (१२.९१ प्रतिशत) तथा ईसाई ११ लाख हैं। वहाँ ४ लाख जैन लोग की संख्या है। अब, जहाँ तक मतदाताओं की संख्या का विषय है तो ५ करोड़ २१ लाख ७३ हज़ार ५ सौ ७९ है, जिनमे पुरुष मतदाताओं की संख्या २ करोड़ ६२ लाख और महिलाओं की २ करोड़ ५९ लाख है।

भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘लिंगायत-समुदाय’ का मत-प्रतिशत लाभकारी रहा है। इस बार भी उसके पक्ष मे जा सकता है। कर्नाटक मे लिंगायत-समुदाय की जनसंख्या १७ प्रतिशत है। ‘लिंगायत-समुदाय’ वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का पक्षधर बना हुआ है; वहीं ‘वोक्कालिगा-समुदाय’ का मत-प्रतिशत भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और जे० डी० एस० मे बँटा दिखता आ रहा है। वहाँ की कुल जनसंख्या मे से १२ प्रतिशत वोक्कालिगा-समुदाय है। इतना ही नहीं, अनुसूचित जाति १७ प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति ७ प्रतिशत तथा कुरुबा-जाति ८ प्रतिशत हैं। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी की कर्नाटक-सरकार ने मार्च-माह, २०२३ ई० मे कर्नाटक के दो प्रमुख समुदायों :– लिंगायत और वोक्कालिगा के आरक्षण-प्रतिशत को क्रमश: ६ और ७ कर दिया है, जो पहले ४ और ५ थे। इसी का दुष्परिणाम है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार-द्वारा अनुसूचित जाति का आरक्षण-प्रतिशत घटाने से ‘बंजारा और भोवी-समुदायों’ के मतदाता आक्रोशित हैं। पहले इन समुदायों को १७ प्रतिशत आरक्षण दिया जाता था, जिसे भारतीय जनता पार्टी ने छिनकर कई हिस्सों मे बाँट दिया है। यही कारण है कि पिछले दिनो कर्नाटक के ‘बंजारा और भोवी-समुदायों’ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता बी० एस० येदियुरप्पा के ‘शिवमोगा’-स्थित घर और कार्यालय मे धावा बोलते हुए, पथराव किया था; आगज़नी की थी, तबसे वह समुदाय लगातार आक्रामक तेवर मे दिख रहा है। हमे नहीं भूलना चाहिए कि कर्नाटक मे इन समुदायों की संख्या २० प्रतिशत है, जो इस बार चुनाव-परिणाम को प्रभावित करनेवाला दिख रहा है।

अब प्रश्न है, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस यदि सरकार गठित करती है तो उसका श्रेय किसे दिया जाना चाहिए― राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अथवा राहुल गांधी को? एक ओर, ‘भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस’ के अध्यक्ष और ज़मीनी नेता मल्लिकार्जुन कर्नाटक के निवासी हैं और वहाँ के लोकप्रिय राजनेता भी। हमे नहीं भूलना चाहिए कि कर्नाटक-राज्य के जिस संसदीय क्षेत्र ‘वॉयनाड’ से राहुल गांधी चुनाव लड़े थे, उसका संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करते हुए, राहुल गांधी की संसदीय सदस्यता का अपहरण करा लिया गया था; क्योंकि भारतीय राजनीति के इतिहास मे ‘मानहानि’ के प्रकरण मे किसी सांसद को अधिकतम सज़ा सुनायी गयी हो; २४ घण्टे के भीतर उसकी संसदीय सदस्यता समाप्त करा दी गयी हो; २४ घण्टे के भीतर उसके पास उसके शासकीय आवास ख़ाली करने की सूचना भेजी गयी हो तथा २४ घण्टे के भीतर उसकी कार को अवैध होने की सार्वजनिक सूचना जारी की गयी हो। विद्युत् की गति मे इतनी त्वरित काररवाई के होने से देश की जनता हतप्रभ है। ये सभी कारण निश्चित रूप से कर्नाटक के मतदाताओं को संवेदनशील बनायेंगे। यही कारण है कि मुख्य चुनाव-आयुक्त ने कर्नाटक के आगामी चुनाव मे वॉयनाड मे संसदीय उपचुनाव कराने की घोषणा नहीं की थी; क्योंकि यदि वहाँ चुनाव कराया जाता तो भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का प्रत्याशी ही जीतता। भारतीय जनता पार्टी के क़द्दावर नेता इसे भाँप चुके थे। ऐसा लगता है कि कर्नाटक के चुनाव-परिणाम को प्रभावित करने मे राहुल गांधी की ८० प्रतिशत और २० प्रतिशत मल्लिकार्जुन खड़गे की भूमिका रहेगी। राहुल गांधी के ‘भारत जोड़ो यात्रा’ मे जिस प्रकार की सद्भावना देश के कोने-कोने मे दिखी थी और राहुल का जनसामान्य के साथ सौजन्यपूर्ण वातावरण दिखा था, वह एक मोहक परिदृश्य को रेखांकित करता रहा। एक अनुमान के अनुसार, आज देश के ७० प्रतिशत नागरिकों की संवेदनशीलता राहुल गांधी के साथ दिख रही है।

  • लेखक भाषाविज्ञानी एवं उन्मुक्त चिन्तक हैं।
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