‘अक्षयवट’ की ओर से आयोजित काव्यपाठ सम्पन्न

‘बादल प्रयागवासी’ एक स्वाध्यायी साहित्यकार थे

आज (१२ फ़रवरी) ‘अक्षयवट’ की ओर से राजरूपपुर, प्रयागराज मे स्मृति-शेष काव्यशिल्पी माताबदल श्रीवास्तव ‘बादल प्रयागवासी’ की पुण्यतिथि के प्रथम वार्षिक समारोह का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता भाषाविज्ञानी और समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने की। दोहाकार डॉ० प्रदीप चित्रांशी मुख्य अतिथि थे। समारोह मे बादल प्रयागवासी की सुपुत्री प्रतिभा श्रीवास्तव ने सरस्वती-वन्दना की। इसी अवसर पर काव्यपाठ का आयोजन किया गया था। रामकैलाश पाल प्रयागी ने सुनाया– हर धर्म के इंसान का, सम्मान होना चाहिए। लागू सभी पर एक संविधान होना चाहिए। एस० पी० श्रीवास्तव ने सुनाया– भोर है बचपन और दोपहर तपती हुई जवानी है, शाम बुढ़ापा, रात मौत है, सबकी यही कहानी है।

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन मे कहा– बादल प्रयागवासी जी एक स्वाध्यायी साहित्यकार थे। उसके बाद उन्होंने ग़ज़ल पेश की– मासूम थी दीवानगी, कतर दिये क्यों पंख? उठिए जनाब! दर से, अब न ज़ह्र घोलिए।

डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने कहा– प्रयागवासी जी का स्मरण करते हुए हमे गर्व है। उसके बाद उन्होंने अपनी रचना पढ़ी– कह रहा ‘परदीप’ ख़ामोश क्यों तुम हो गये,आदमी यदि साँप है तो फन कुचलना चाहिए। केशव सक्सेना ने पढ़ा– चमन खिले, ऐसे देश खिले, हम धर्म यही अपनाते हैं। अजय पाण्डेय ने सुनाया– बहुत दूरियाँ हैं, बहुत सोचता हूँ, आवाज़ देकर तुम्हें रोक लूँ। राजेन्द्र श्रीवास्तव ने सुनाया– न रुकी वक़्त की गर्दिश, न ज़माना बदला, सूखा पेड़ तो परिन्दो ने ठिकाना बदला।

बादल प्रयागवासी के नाती दीपक श्रीवास्तव ने अपने नाना से सम्बन्धित मार्मिक संस्मरण पढ़ा था। समारोह का संचालन ‘अक्षयवट’ के महासचिव अजय कुमार पाण्डेय ने किया।