डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
कोई कट गया उनकी नज़रों से,
परदा हट गया उनकी नज़रों से |
झुकीं निगाहें क़हर बरपाती रहीं,
मन फट गया उनकी नज़रों से |
ग़ैरों में शामिल थे और अपनों में,
अपना बँट गया उनकी नज़रों से |
बज़्मे महफिल सजी, उखड़ गयी,
सपना छँट गया उनकी नज़रों से |
ताउम्र परायों के दामन थामे रहे,
अपना घट गया उनकी नज़रों से |